एमबीए पूरा करके पास होने वाले बड़े-से बैच को उनके आखिरी दिन नाटक दिखाने की परंपरा का मैं कई साल से पालन करता आ रहा हूं। इसका एक उद्देश्य तो उनका कहानी कहने और नाट्य कौशल से परिचय कराना है। दूसरा उद्देश्य, उन्हें अंतिम सलाह देना है कि कैसे फिल्मों से उलट, नाटक के कलाकारों को छोटी-सी भी गलती करने की इजाजत नहीं होती और जैसा फिल्म बनाने में होता है, वे नाटक में रीटेक भी नहीं ले सकते। इसके अलावा मेरा शिद्दत से मानना है कि नाटक आपदा प्रबंधन, त्वरित सोच और निर्णय लेने की क्षमता से भी परिचय कराता है। आम तौर पर सबसे अच्छे थिएटर अनुभव के लिए हम न्यूयॉर्क के ब्रॉडवे या लंदन के वेस्ट एंड के बारे में सोचते हैं। पर इस साल पासआउट के दिन शनिवार को इत्तेफाक से हिंदी दिवस था, इसलिए हमने मुंबई के बांद्रा में सेंट एंड्रूय ऑडिटोरियम जाने का तय किया, जहां गौरव भारद्वाज के निर्देशन में ‘हमारे राम’ नाटक का मंचन था, इसने सदियों पुराने महाकाव्य रामायण में नई जान फूंकी, और इस महान रचना के कम चर्चित प्रसंगों को बुनने की कोशिश की। जैसे ही दोपहर के 2.30 बजे इस नाटक का 83वां मंचन शुरू होने वाला था कि न सिर्फ लाइट चली गई बल्कि तलवार जैसी एक्सेसरीज लटका तार भी टूटकर गिर गया। खुशकिस्मती से जब तार सीधा नीचे गिरा, तो इसके नीचे कोई नहीं था, हालांकि मुझे नहीं पता कि यह सामान कितना नुकीला था। अप्रत्याशित कारणों के चलते 52 मिनट हुए विलंब के लिए यहां तक कि खलनायक सह नायक ने भी माफी मांगी- खलनायक इसलिए क्योंकि उन्होंने रावण की भूमिका निभाई थी और सैकड़ों की संख्या में लोग उन्हें देखने आए थे क्योंकि वह किसी नायक से कम नहीं थे, वह आशुतोष राणा थे। इस वाकिए ने विद्यार्थियों को दो बातें सिखाईं, जब आप किसी संस्था में शीर्ष पद पर हों, तो आपदापूर्ण स्थिति संभालने के अलावा आपके अपने ग्राहकों से माफी मांगने में भी तेजी दिखानी होगी। नाटक के सबसे मार्मिक दृश्यों में से एक था, जब भगवान राम के दूत बनकर जामवंत लंका जाते हैं और रावण को रामेश्वरम में भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रण देते हैं, जहां रावण, भगवान शिव के एक विद्वान शिष्य के रूप में चित्रित किया गया है और प्रभु श्री राम के निमंत्रण पर वह आचार्य पद स्वीकार कर लेता है। जिस तरह से जामवंत ने रावण से बातचीत की, उनकी हाजिरजवाबी में भी सबक छिपा था कि बातचीत की टेबल पर ऐसा ही होना चाहिए। एमबीए छात्रों के लिए यह वाकई बहुत अच्छा सबक था। कुछ लोग रामायण के इस हिस्से या ऐसे कई प्रसंगों की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठा सकते हैं, पर मेरा यकीन करें, आज हजारों साल बाद भी अगर यह काव्य हमारे बीच मौजूद है, और इस पर आधारित मंचन (रामलीला) को हम बार-बार, साल-दर-साल देखते आ रहे हैं, तो इस पर भरोसा करने का ठोस कारण है। अगर ऐसा नहीं होता, तो आखिर क्यों बॉलीवुड एक नई रामायण कहानी ला रहा होता, जिसमें रणबीर कपूर भगवान राम, साई पल्लवी सीता और सन्नी देओल हनुमान का किरदार निभा रहे हैं! नाटक में जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती है, भगवान राम और सीता के जीवन की कठिनाइयों के जरिए दर्शक एक अनोखी यात्रा पर निकल पड़ते हैं और लव-कुश के तीक्ष्ण सवालों के जवाब मिलते हैं। 3 घंटे 20 मिनट के उस नाटक का सबसे यादगार दृश्य उसका समापन होता है, जहां अपनी मृत्युशैय्या पर लेटा रावण लक्ष्मण को अमूल्य सबक देता है और धर्म और सही-गलत का सार बताता है। तभी वह लक्ष्मण से कहता है, ‘तुम्हें पता है कि रावण क्यों हारा? क्योंकि रावण को अपने ज्ञान का घमंड था और प्रभु रामचंद्र को घमंड का ज्ञान था।’ फंडा यह है कि लिखाई-पढ़ाई से कोई कितना ही बुद्धिमान हो, अनुभव, धन-संपत्ति और शारीरिक बल या लोगों की ताकत भी क्यों न हो, लेकिन जीतने के लिए और इस धरती पर अपनी छाप छोड़ने के लिए ‘घमंड का ज्ञान’ होना बहुत जरूरी है।

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