विभिन्न समूहों के लोगों द्वारा आकस्मिक अवकाश के लिए दिए 30 आवेदनों में से 24 का एक ही कारण था- ‘मेरी पत्नी/मां की तबीयत ठीक नहीं थी और मुझे उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा।’ कुछ साल पहले जब मैंने एक फार्मा फैक्ट्री में पुरुष कर्मचारियों की अचानक अनुपस्थिति पर सर्वे किया तो यह पता चला। जब मैंने ये निष्कर्ष निर्देशक के ध्यान में लाया, तो उन्होंने बस अफसोस जताया कि ‘मुझे नहीं पता वे अक्सर बीमार क्यों पड़ती हैं। मेरे घर में भी मां-पत्नी अक्सर बीमार रहती हैं। घर पर मेरी मदद करने वाले कई लोग हैं, इसलिए मैं बिना बताए छुट्टी नहीं लेता।’ और तब हमने कर्मचारी के परिवार व उनके स्वास्थ्य पर जानकारियां लेने का निर्णय किया। पर उससे कर्मचारियों के अनुपस्थिति की समस्या में मदद नहीं मिली। इसलिए नतीजे ठंडे बस्ते में डाल दिए। बीते सप्ताह इसी मुद्दे पर लांसेट जर्नल ने भी पाया कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में भले अधिक समय तक जीवित रहती हों, पर वे पुरुषों की तुलना में अधिक बीमार पड़ती हैं। इसी प्रकार वैश्विक लैंगिक स्वास्थ्य विश्लेषण भी महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल की तत्काल जरूरत को रेखांकित करता है। रिपोर्ट में दिखाया गया कि पिछले 30 वर्षों में स्वास्थ्य पर वैश्विक प्रगति असमान रही है और महिला-पुरुषों के बीच पर्याप्त अंतर हैं। रिपोर्ट में बीमारियों के 20 प्रमुख कारणों और उनके प्रभावों का अध्ययन किया गया है। महिलाओं को तकलीफ देने वाली सबसे बड़ी बीमारियों में पीठ के निचले हिस्से में दर्द, अवसाद, एंग्जाइटी व उससे जुड़े विकार, सिरदर्द, अल्जाइमर से जुड़ी बीमारियों सहित हड्डी व मांसपेशियों के रोग शामिल हैं। स्टडी में पाया कि जहां पुरुषों की असामयिक मृत्यु अधिक होती है, वहीं महिलाओं में ये रोग जीवन भर की बीमारियों व अक्षमताओं में अधिक योगदान देते हैं। ऐसी गैर-घातक स्थितियां- जो बीमारी व विकलांगता की समस्या पैदा करती हैं- विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करती हैं। वहीं पुरुष समय से पहले मौत का कारण बनने वाली बीमारियों जैसे हृदय, सांस, लिवर की समस्या से ज्यादा प्रभावित होते हैं। महिला व पुरुषों में कई जैविक-सामाजिक फैक्टर्स के कारण भिन्नताएं होती है, जिनमें उतार-चढ़ाव होता है व समय के साथ बढ़ती हैं। मैंने अपनी मां व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हमेशा ऐसा होते देखा है। बीमारियां उन्हें चक्रीय पैटर्न में असर करती हैं। मेरे डॉक्टरों ने उन्हें बुनियादी तौर पर चार बदलावों की सलाह दी है :
1. फिजिकल थेरेपी-घरेलू व्यायाम : उनके विशिष्ट लक्षणों, स्थिति और कम्फर्ट के स्तर के अनुरूप निर्धारित व्यायाम होने चाहिए। व्यायाम की दिनचर्या महत्वपूर्ण है।
2. माइंडफुलनेस व मेडिटेशन : नर्वस सिस्टम व गतिविधियों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया पर सचेत नियंत्रण के लिए योग, कॉग्निटिव, रिलैक्सेशन युक्तियों का अभ्यास।
3. जीवनशैली में बदलाव : शरीर के संकेत समझने के लिए प्रशिक्षित करें, खुद को सक्रिय रखने में उनकी मदद करें। उन्हें इस पर ध्यान देने के लिए कहें कि जब वे ब्रेक लेती हैं या कोई कठिन काम करती हैं, तब शरीर क्या संकेत देता है।
4. आहार परिवर्तन : कुछ आहार अत्यधिक इंफ्लैमेटरी होते हैं, विशेष रूप से वे जिनमें ट्रांस फैट्स, रिफाइंड शुगर और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ अधिक होते हैं। यह देखने के लिए डॉक्टर से परामर्श लें कि क्या घर का आहार उनकी बीमारियों का कारण बन रहा है। फंडा यह है कि ये ज्ञात वैज्ञानिक तथ्य है कि बड़े पैमाने पर महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां झेलती हैं, इसलिए हम सभी के लिए आवश्यक है कि हम उन्हें अपने शरीर की बात सुनने व खुद के साथ तालमेल बिठाने का प्रशिक्षण देकर उनकी फिटनेस पर ध्यान केंद्रित करें।