‘साहब, मेरा बैल चोरी हो गया। मैं बर्बाद हो जाऊंगा। अभी पूरा खेत जोतना है, कैसे क्या करूंगा। पाई-पाई जोड़कर बैल खरीदा था। आपकी मेहरबानी होगी, अगर बैल वापस करा देंगे।’ यह शिकायत एक 75 साल के किसान ने थाने में की। पहले तो पुलिस वालों ने किसान को इंतजार करवाया। फिर शिकायत लिखने से साफ मना कर दिया। बेबस किसान थाने से लौटने लगा। तभी पीछे से एक पुलिस वाले ने आवाज दी- सुनो, शिकायत लिख दी जाएगी, लेकिन खर्चा-पानी करना पड़ेगा। दोनों के बीच समझौता हुआ। पुलिस वाला किसान को थाने ले गया। यहां FIR के ड्राफ्ट का एक पेपर किसान की तरफ रखा गया। मुंशी ने कहा- अंगूठा लगाओगे या सिग्नेचर करोगे। किसान ने पेन उठाते हुए कहा- सिग्नेचर करूंगा। शिकायत लिखी। नीचे प्रार्थी का नाम- चौधरी चरण सिंह लिखा। इसके साथ ही कुर्ते की जेब में हाथ डालते हुए एक मुहर निकाली। इसे सिग्नेचर के नीचे लगा दिया। मुहर पर लिखा था- प्रधानमंत्री, भारत सरकार। मुंशी ने जैसे ही नाम-सिग्नेचर और मुहर देखी, उसके माथे से पसीना आ गया। शरीर कांपने लगा। आसपास के पुलिस वाले इकट्ठा हो गए। थाने में पुलिस वालों के होते हुए भी सन्नाटा फैल गया। कुछ ही देर में पूरा थाना सस्पेंड कर दिया गया। भारत रत्न चौधरी चरण सिंह से पुलिस वाले ने कितनी रिश्वत ली? उन्होंने यह कदम क्यों उठाया? दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज चुनावी किस्सा में आज जानेंगे… बात 1979 की है। प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह इटावा दौरे पर थे। उनका निजी सचिव (PS) लोगों की समस्याएं नोट कर रहा था। शाम करीब 6 बजे समस्याओं का लेखा-जोखा चौधरी साहब की टेबल पर रखा गया। चौधरी चरण सिंह ने इसे पढ़ते हुए पेन हाथ में उठा लिया। गिनती करते हुए बोले- एक-दो तीन…8। कुल 8 समस्याएं एक जैसी हैं। तभी, वहां एक आदमी पहुंचा। उसने कहा- चौधरी साहब, यहां पुलिस बहुत परेशान करती है। चोरी हो या छिनैती, हमारी समस्या नहीं सुनी जाती। बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता। थक-हार कर आपके पास आया हूं। उसकी समस्या सुनते ही चौधरी साहब बोले- यह देखिए, अब 9वां मामला हो गया। क्या चल रहा है? कौन हैं वो लोग, जो कानून व्यवस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं? चौधरी साहब के पास खड़े अधिकारी सहम गए। उन्होंने पीएम की बात का जवाब देते हुए कहा- साहब हम लोग देखते हैं। एक्शन लिया जाएगा। यह सुनते ही चौधरी चरण सिंह भड़क गए। उन्होंने कहा- एक्शन लिया जाएगा, क्या एक्शन लिया जाएगा। अभी चलिए थाने… उन्होंने शिकायत करने वाले आदमी से पूछा किस थाने का मामला है? जवाब मिला- साहब ऊसराहार थाने का। फटेहाल-मजबूर किसान की तरह थाने पहुंचे
चौधरी चरण सिंह तुरंत थाने की ओर निकल गए। उन्होंने कुछ ही दूर पर साथ गए सुरक्षाकर्मियों और अधिकारियों को रोक दिया। धोती-कुर्ता पहने पीएम थाने के अंदर दाखिल हो गए। वह ऐसे लग रहे थे, जैसे कोई फटेहाल और मजबूर किसान हो। यही वजह थी, थाने में तैनात पुलिस वाले उन्हें बिल्कुल नहीं पहचान पाए। उन्होंने सबसे पहले पुलिस वालों से पूछा- दरोगा साहब हैं? जवाब मिला, वो तो नहीं हैं। पुलिस वालों ने पूछा- क्या काम है दरोगा जी से। कौन हो, कहां से आए हो? हमें बताओ। जवाब देते हुए चौधरी चरण सिंह ने कहा- रपट लिखवानी है। मेरा बैल चोरी हो गया है। मेरठ का रहने वाला हूं। यहां बैल खरीदने आया था। बैल खरीद भी लिया और वापस जा रहा था। रास्ते में जलपान के लिए रुका था। अपने बैल को पेड़ से बांध दिया था। जलपान कर लौटा, तो देखा बैल नहीं है। साहब, मेरा बैल दिलवा दीजिए। ऐसे कैसे लिख दें रपट, तुम यहां के नहीं हो
चौधरी चरण सिंह का बयान सुनते ही पुलिस वालों ने कहा कि ऐसे कैसे तुम्हारी रपट लिख दें। तुम यहां के नहीं हो, जाओ नहीं लिखी जाएगी रपट। तुम्हारी ही लापरवाही थी। बैल खरीदा था, तो उसका ध्यान रखना था। अब कहीं भी बांधकर निश्चिंत हो जाओगे क्या? चौधरी चरण सिंह ने गुहार लगाई- साहब मैं बर्बाद हो जाऊंगा। अभी खेत जोतने हैं, कैसे क्या करूं, कार्रवाई करिए। गाड़ी से चलेंगे, तो बैल मिल जाएगा। इतने में, थानेदार भी वहां आ गए। वो भी रपट लिखने को तैयार नहीं हुए। पुलिस वालों ने चौधरी चरण सिंह की बात को पूरी तरह अनसुना कर दिया। तब वह थाने से बाहर निकलने लगे। अभी वो गेट तक पहुंचे ही थे कि एक सिपाही को उन पर रहम आ गया। उसने पास आकर कहा- रपट लिखवा देंगे, खर्चा-पानी लगेगा। 100 रुपए मांगे गए, 35 रुपए में मान गया सिपाही
चौधरी साहब ने पूछा- कितना लगेगा। जवाब मिला-100 रुपए। चौधरी साहब बोले- यह तो बहुत ज्यादा है। इतने रुपए मेरे पास नहीं हैं। सिपाही ने कहा- अच्छा चलो 90 रुपए दे देना। उन्होंने इस पर भी असहमति जताई। सिपाही ने फिर कहा कि चलो अच्छा 75 रुपए दो और रपट लिखवा लो। इस पर पीड़ित बने प्रधानमंत्री ने कहा- साहब, मेरे पास 50 रुपए ही हैं। 15 रुपए घर जाने में खर्च हो जाएंगे। 35 बचेंगे, वही ले लीजिए। चौधरी चरण सिंह ने भावुक होकर कहा- गरीब पर रहम कीजिए साहब। सिपाही ने उनकी बात सुनते ही हामी भर दी और रपट लिखवाने अंदर चला गया। बतौर किसान चौधरी साहब खुश होकर उसे दुआ देने लगे। सिपाही ने अंदर जाकर सीनियर अफसर से सेटिंग की। अफसर ने किसान को रपट लिखवाने के लिए बुला लिया। चौधरी चरण सिंह, प्रधानमंत्री-भारत सरकार
किसान चौधरी चरण सिंह ने रपट के नीचे साइन कर दिए। साथ ही टेबल पर रखे स्टैंप पैड को भी खींच लिया। इसके बाद थाने का मुंशी सोच में पड़ गया। हस्ताक्षर करेगा, तो अंगूठा लगाने की स्याही का पैड क्यों उठा रहा? किसान बने प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अपने हस्ताक्षर में नाम लिखा- ‘चौधरी चरण सिंह’ और मैले कुर्ते की जेब से मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक दी। इस पर लिखा था ‘प्रधानमंत्री-भारत सरकार’। यह देखकर पूरे थाने में हड़कंप मच गया। आवेदन कॉपी पर पीएम की मुहर लगा देख पूरा का पूरा थाना सन्न रह गया। कुछ ही देर में पीएम का काफिला भी वहां पहुंच गया। जिले और कमिश्नरी के सभी आला अधिकारी धड़ाधड़ थाने आ गए। थाने के पुलिस वालों सहित डीएम, एसपी, डीएसपी सभी अधिकारियों के हलक सूख गए। सभी सोचने लगे, अब क्या होगा? प्रशासन में किसी को पता नहीं था कि पीएम चौधरी चरण सिंह खुद इस तरह औचक निरीक्षण करेंगे। प्रशासनिक अमले को परेशान देख पीएम चौधरी चरण सिंह ने शांति से काम लिया। उन्होंने ऊसराहार थाने के सभी कर्मचारियों को सस्पेंड करने का आदेश दिया और चुपचाप चले गए।