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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:वृद्धावस्था में संबंधों को नई दृष्टि देने की जरूरत

देश में वृद्धों के बनिस्बत, बच्चों और युवाओं की संख्या ज्यादा है। जब कभी देश के कर्णधार नारा देते हैं, व्याख्यान करते हैं, तो कहते हैं ये युवाओं का देश है। पूरी दुनिया की नजर हमारे देश पर है। आने वाले समय में हम कुछ अनूठा करेंगे। लेकिन इस महकती हुई हवा के नीचे एक दृश्य और है। और वो यह है कि भारत आने वाले समय में बूढ़ा भी होता जाएगा। वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आज से तीन साल पहले सौ बच्चों पर लगभग 40 बूढ़े थे। सोचिए, जब इसका उल्टा होगा। जो लोग रेल यात्रा करते हैं, वो लोग ‘आरएसी’ जानते होंगे, मतलब रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसलेशन। इसका मतलब यात्रा तो तय है, लेकिन बर्थ तय नहीं है। बुढ़ापे में वृद्धों को आरएसी की व्यवस्था समझना चाहिए। बूढ़ा व्यक्ति जिसकी आरएसी हो चुकी है, कब क्लियर हो जाए कह नहीं सकते। इसका मतलब है ‘रिलेशन-अवेयरनेस-कांट्रिब्यूशन’। वृद्धावस्था में संबंधों को नई दृष्टि दें। होश जगाएं और समाज में आपके योगदान को भी नया रूप दें।

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