यज्ञ में जिस अग्नि का उपयोग होता है, उसे अरणी लकड़ी से उत्पन्न किया जाता है। यह शमी की लकड़ी का एक तख्ता होता है, जिसमें एक हल्का छेद रहता है और दूसरी लकड़ी को उसमें रगड़ कर अग्नि पैदा की जाती है। तुलसीदास जी ने कथा के लिए अरणी लकड़ी और अग्नि का बड़ा सुंदर रूप बताया है। उन्होंने एक जगह लिखा है, ‘राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी’। तुलसीदास जी कहते हैं, अगस्त्य ऋषि राम कथा कहते थे और जो राम जी की कथाएं हैं, वह ज्ञान उत्पन्न करने में उसी प्रकार समर्थ हैं जैसे अरणी लकड़ी से अग्नि उत्पन्न होती है। हम भी अपने जीवन में कई कथाएं सुनते हैं। कथा का मतलब ही होता है वास्तविकता और कल्पनाशीलता का एक पौराणिक आख्यान, जिसके माध्यम से उपदेश दिया जाता है। तो हम अपने जीवन में जब भी किसी कथा से जुड़ें, हमारा उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना होना चाहिए। जैसे इज्जत खरीदी नहीं कमाई जाती है, ऐसे ही ज्ञान खरीदा नहीं, अर्जित किया जाता है। और उसका एक माध्यम है- ईश्वर की कथाएं। कथाओं को सुनें या पढ़ें, चिंतन करके अपने मस्तिष्क के किसी कोने में सुरक्षित रख लें। पता नहीं किस मोड़ पर इन कथाओं का कोई संदेश आपके काम आ जाए।