इन दिनों हमारा देश लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व से गुजर रहा है। कुछ बातें दांव पर भी लग गई हैं- धर्म, सत्ता, चरित्र और इन सबके ऊपर सत्य। समय ऐसा आ गया है कि सत्य को भी सत्य होना साबित करना पड़ता है। झूठ को सुविधा है। अगर आपको सत्य को सत्य बनाना है तो दो लोगों की आवश्यकता होगी। पहला वो, जो सच बोल सके और दूसरा वो, जो सच सुन सके। अब तो लोग सच सुनने को भी तैयार नहीं हैं। और जब लोग सच सुनना नहीं चाहते तो बोलने वाला भी गड़बड़ा जाता है। ऐसा कहते हैं कि बड़े सपनों को पूरा करने में कदम छोटे-छोटे उठाना चाहिए। इसी तरह से सत्य के लिए छोटे-छोटे, लेकिन मजबूत कदम उठाइए। झूठ हमेशा छलांग में जीता है। कई लोगों का आज भी मानना है कि सच बोलो तो अशांति आती है, लेकिन शास्त्रों में सत्य और शांति दोनों को भगवान का स्वरूप बताया है और ईश्वर जीवन में आएं तो कोई अशांत हो नहीं सकता। इसीलिए हमारे यहां सत्य को नारायण से जोड़ा है और एक सत्यनारायण व्रत कथा ही है। तो सत्यव्रत को इस दौर में जितना खंडित किया जा रहा है उतना ही हम संजीदा होकर उसे बचाएं। राजनीति करने वाले सत्य के साथ जो भी करें, ये उनका भाग्य है, लेकिन हम धर्म नीति वालों को सत्य अपने जीवन में बचाना चाहिए।