आज परशुराम जी की जयंती है। इसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं। तीन बातों के लिए परशुराम जी एकदम अलग थे। पहला, उन्होंने पिता की आज्ञा पर अपनी माता का वध किया था। दूसरा, उन्होंने धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन किया। और तीसरी खास बात ये है कि सीता जी के स्वयंवर में वे श्रीराम और लक्ष्मण से भिड़े थे। परशुराम जी के चरित्र में कई विरोधाभास हैं, लेकिन एक बात पर सब सहमत हैं कि उन्होंने यह सिखाया था कि सत्ता के दुरुपयोग पर सत्ताधीशों को कैसे दंड दिया जाता है। वो पूरे संसार में अनूठे हो गए थे। उन्होंने बताया कि जब खोने के लिए कुछ भी ना हो तो पाने के लिए सारी दुनिया होती है, जिसको फक्कड़पन कहते हैं। इसको अपने कर्तव्य पर टिकना कहते हैं। इसको निज हित से ऊपर उठकर परहित के लिए जीना कहते हैं। आज हमें परशुराम जैसे व्यक्तित्व की इसलिए जरूरत है क्योंकि समाज बड़े विरोधाभासी तरीके से जीने लगा है। जिनसे हम छांव की उम्मीद करते हैं, वो अंगारे बरसाते हैं। ऐसे समय परशुराम का चरित्र एक कवच बनेगा।

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