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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:अपने लिए जीना और खुद को खुश रखना भी जरूरी है

दूसरों को खुश रखिए, लेकिन खुद भी खुश रहिए। दूसरों के लिए जिएं, लेकिन अपने लिए भी जिएं। बहुत सारे लोगों को दूसरों के लिए जीने, उन्हें खुश रखने की आदत हो जाती है। इस बात को य भी कह सकते हैं कि हम दुनिया में रहें, लेकिन दुनिया हमारे भीतर न रहे। हम दुनिया में रहेंगे, जो कि जरूरी है। ऊपरवाले ने दुनिया बनाई ही इसलिए है। झंझट तब शुरू होती है, जब हमारे भीतर हम दुनिया ले आते हैं। कृष्ण जी ने एक प्रयोग किया था। वे सबके काम आते थे, लेकिन अपनी आंतरिक प्रसन्नता को भंग नहीं होने देते थे। अपने लिए भी जीते थे। कुरुक्षेत्र के रणांगन में वे भी उतरे थे, लेकिन उनके भीतर रण नहीं उतरा। वे बिल्कुल सहज और सरल रहे। यह हम उनसे सीख सकते हैं। हमें दुनिया में सारे काम करना है, लेकिन भीतर ईश्वर रहना चाहिए। ताकि जब भी अपने भीतर मुड़ें, अपने परमात्मा से मुलाकात हो जाए और इसका सीधा मतलब होगा कि सबके लिए जिएंगे, सबके लिए करेंगे, सबको खुश रखेंगे लेकिन खुद भी खुश रहेंगे। अपने लिए भी जीएंगे।

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