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बलरामपुर की महारानी ने चुनाव हारने पर गिफ्ट किया महाराजगंज:कहा था- जनता ने हमारा नमक खाया, वोट हमें ही देगी, मगर नानाजी से हार गईं

महारानी जी, आपके सामने चुनावी मैदान में हूं। अब विरोधी आपके लेवल का ना हो, तो जनता में गलत मैसेज जाएगा। कहा जाएगा कि मुकाबला टक्कर का नहीं था। नानाजी देशमुख की यह बात सुनते ही महारानी राजलक्ष्मी मुस्कराईं। बोलीं- आपकी बात सही है। उन्होंने पास खड़े कोषाध्यक्ष की तरफ इशारा किया। चाय की चुस्की के बीच एक बंद लिफाफा नानाजी देशमुख को दिया। बतौर चुनावी फंड लिफाफे में 50 हजार रुपए थे। महारानी राजलक्ष्मी को अंदाजा नहीं था कि नानाजी देशमुख उन्हें हरा देंगे। वोटिंग हुई, पहले से लेकर अंतिम रुझान तक नानाजी देशमुख आगे रहे। इतना आगे कि रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की। इस हार के लिए महारानी का एक बयान वजह बताई जाती है। उन्होंने कहा- बलरामपुर की जनता ने हमारा नमक खाया है, हमें ही वोट देगी। इसके बाद जनता ने उन्हें हरा दिया। भारत रत्न नानाजी देशमुख का यह पहला और आखिरी चुनाव था। उन्होंने किन परिस्थितियों में चुनाव लड़ा? कैसे रिकॉर्ड बनाया? दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज चुनावी किस्सा में आज पढ़िए… नानाजी देशमुख महाराष्ट्र के रहने वाले थे। लेकिन, उनकी कार्मभूमि राजस्थान और उत्तर प्रदेश रही। इमरजेंसी के बाद 1977 में लोकसभा चुनाव का ऐलान हो चुका था। नानाजी देशमुख जेल में बंद थे। सभी राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस के खिलाफ गोलबंद होने लगीं। चुनाव की तैयारी के लिए फंड चाहिए था। नानाजी देशमुख के बिजनेसमैन और राजघरानों में अच्छे संबंध थे। उनको करीब से जानने वाले राम कृपाल शुक्ल बताते हैं- इमरजेंसी के वक्त नानाजी देशमुख ने अंडरग्राउंड रहते हुए कई बड़े काम किए। वह आरएसएस में थे। जब जय प्रकाश नारायण पर लाठीचार्ज हुआ, नानाजी देशमुख ने लाठियां खाईं। जेपी पहले उन्हें संघ के नजरिए से देखते थे। लेकिन, इसके बाद उनकी सोच बदल गई। उन दिनों शर्त यह थी कि जो चुनाव लड़ेगा, उसे बेल मिल जाएगी। इसलिए सभी नेता नानाजी देशमुख से मिलने जेल पहुंच गए। उनसे चुनाव लड़ने की अपील की गई। पहले तो नानाजी देशमुख ने मना किया, लेकिन जब चुनावी मैनेजमेंट की बात सामने आई तो मान गए। ​​​​ नानाजी देशमुख ने ही हलधर चुनाव चिह्न चुना
राम कृपाल शुक्ल बताते हैं- जब कई पार्टियों को मिलाकर जनता पार्टी बनी, तब इसके संस्थापक सदस्यों में नानाजी देशमुख भी शामिल थे। पार्टी का चुनाव चिह्न हलधर उन्होंने ही चुना था। इस पर सभी की सहमति बनी। अब बारी थी कि नानाजी को कहां से चुनाव लड़वाया जाए? इस पर मंथन हुआ। उन दिनों यूपी की कई लोकसभा सीटें ऐसी थीं, जहां से जनता दल को प्रत्याशी नहीं मिल रहे थे। इधर, कांग्रेस को हराने के लिए जनता दल समीकरण भी बैठा रही थी। बलरामपुर पर चर्चा के दौरान ही नेताओं ने कह दिया कि नानाजी का यहां से पुराना नाता रहा है। उन्हीं को टिकट देना चाहिए। भाषण से जीत लिया बलरामपुर की जनता का दिल
बलरामपुर की रियासत देशभर में चर्चित थी। कांग्रेस ने राजघराने को टिकट देने का ऐलान कर दिया। महारानी राजलक्ष्मी ने नामांकन फाइल कर दिया। कांग्रेस और राजघराने से जुड़े समर्थक प्रचार करने लगे। एक भाषण में राजलक्ष्मी ने कहा- यह बलरामपुर की जनता है। इसने हमारा नमक खाया है, यह हमें ही वोट देगी। हम ही चुनाव जीतेंगे। यह बयान उड़ते-उड़ते नानाजी देशमुख के पास पहुंचा। उन्होंने अपनी चुनावी जनसभा में कहा- जनता ने किसी का नमक नहीं खाया है। राजा ने जनता का नमक खाया है। जनता ने टैक्स दिया, राजा ने टैक्स लिया। यह बात सभी को पता होनी चाहिए। अब आप समझदार हैं कि वोट किसे देना है। यह मेरा आखिरी चुनाव होगा, मैं आपकी सेवा करूंगा
राम कृपाल शुक्ल ने बताया- नानाजी देशमुख के खिलाफ कांग्रेसी बाहरी होने का प्रचार कर रहे थे। वह कहते थे कि यह बाहरी हैं, चुनाव लड़ने आए हैं। चुनाव के बाद दिखाई नहीं देंगे। राजा और महारानी आपकी अपनी हैं। वह यहीं के हैं। आपके साथ ही रहेंगे। जब यह बात नानाजी देशमुख को पता लगी, तो उन्होंने मंच से ऐलान करते हुए कहा- मैं कहीं नहीं जाने वाला। मैं बलरामपुर की जनता को बताना चाहता हूं कि यह मेरा आखिरी चुनाव है। मैं कभी चुनाव नहीं लड़ूंगा, आपकी सेवा करूंगा। यह मेरा वचन है। राम कृपाल बताते हैं- उस चुनाव में नानाजी देशमुख को 2.17 लाख वोट मिले, जबकि महारानी राजलक्ष्मी को 1.03 लाख वोट मिले। चुनावी मैदान में सिर्फ 4 कैंडिडेट थे। अन्य 2 कैंडिडेट को 9 हजार से कम वोट मिले। नानाजी देशमुख ने महारानी को 1.14 लाख वोटों से हराया। जो जमीन मिली, उसमें बनाया जयप्रभा ग्राम
चुनाव जीतने के बाद नानाजी देशमुख राजमहल पहुंचे। नानाजी को महल में देखकर महारानी हार की तल्खी छिपा नहीं पाईं। तैश में आकर बोलीं- चुनाव तो आप मुझे हरा ही चुके हैं। अब और क्या लेने आए हैं? जीत की बधाई मैं आपको चुनाव से पहले दे चुकी हूं। अब मुझसे क्या चाहते हैं? महारानी की बात सुनते ही नानाजी देशमुख मुस्कुराने लगे। बोले- महारानी, मुझे खुशी हुई कि आपने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप मुझसे प्रश्न किया। आपके इस प्रश्न ने मेरी उलझन सुलझा दी। अब मुझे जो मांगना है, वह मैं निश्चिंत होकर मांग सकूंगा। चुनाव में मेरे ऊपर बाहरी होने की मुहर लगाई गई। अब आपकी प्रजा ने मुझे चुना। अब यहीं रहकर आपकी प्रजा की सेवा करना चाहता हूं। मुझे एक कुटिया दे दीजिए। महारानी ने राजा से बात कर बलरामपुर स्टेट के महाराजगंज में खाली पड़ी जमीन गिफ्ट कर दी। नानाजी देशमुख ने एक कुटिया के लिए जगह मांगी थी, उन्हें पूरा गांव बनाने के लिए जगह मिल गई थी। उन्होंने बाद में यहां गांव ही बना दिया। नानाजी ने जेपी और उनकी पत्नी के प्रभावती के नाम पर इस गांव का नाम ‘जयप्रभा’ रखा। 25 नवंबर, 1978 को तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने इस गांव का शिलान्यास किया। वह खुद बलरामपुर आए थे। 1977 के चुनाव के बाद से राजघराने ने खुद को राजनीति से दूर कर लिया। बलरामपुर में आज भी रियासत चलती है। नानाजी देशमुख अपने वादे पर खरे उतरे। उन्होंने फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि, मोरारजी मंत्रिमंडल में बतौर उद्योग मंत्री शामिल होने का ऑफर भी दिया गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। 60 साल की उम्र पूरी होते ही नानाजी ने राजनीति से संन्यास भी ले लिया।

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