साल 1989…विधानसभा चुनाव, यूपी में मौसम की गर्मी के साथ राजनीतिक पारा भी चढ़ने लगा। संगम किनारे बसे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) की सियासत बदलाव के हिलोरे मारने लगी। 28 साल का नामी हिस्ट्रीशीटर अतीक अहमद अपने साथियों के साथ हुंकार भरने लगा। कांग्रेस-बसपा और लोकदल। तीन पार्टियों का नाम लोगों की जुबान पर था। अतीक ने एक-एक कर तीनों पार्टियों से टिकट की जुगत लगाई। लेकिन, सफलता नहीं मिली। आखिर में उसने निर्दलीय पर्चा भर दिया। इलाहाबाद की गलियां ‘अतीक अहमद मोस्ट वांटेड’ की जगह ‘अतीक को वोट दें’ के पोस्टर से पट गईं। अतीक ने धन-बल के साथ जमकर प्रचार किया। चुनाव हुए और रिजल्ट में अतीक को राजनीति में एंट्री मिल गई। चुनाव में जीत के कुछ ही दिन बाद अतीक के गुरु चांद बाबा की हत्या हो गई। यूपी में उन दिनों अतीक अहमद कोई इतना बड़ा नाम नहीं था। लेकिन चुनाव और मर्डर के बाद अतीक का नाम अखबारों की हेडलाइन बन गया। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज चुनावी किस्सा में आज बात अतीक अहमद की पॉलिटिक्स में एंट्री और पहले चुनाव की… साल 1962, प्रयागराज का चकिया गांव। तांगा चलाने वाले फिरोज अहमद के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा गया- अतीक अहमद। पिता फिरोज ने जैसे-तैसे बेटे को पढ़ाया, लेकिन 10वीं फेल होने के बाद बेटे अतीक को जल्द अमीर बनने का चस्का लग गया। पैसा कमाने के लिए उसने मेहनत नहीं, बल्कि शॉर्टकट चुना। लूट और अपहरण करके पैसा वसूलने का शॉर्टकट। रंगदारी वसूलने के लिए लोगों की हत्या तक करने लगा। साल 1979 में अतीक पर पहली बार हत्या का केस दर्ज हुआ। यहां से उसकी क्रिमिनल बनने की कहानी शुरू हुई। अतीक, खाकी और खादी की साठगांठ
इलाहाबाद, खासकर करेली इलाके में अतीक के नाम का सिक्का चलने लगा। एक तरफ अतीक क्राइम की दुनिया में अपने कदम जमाने लगा, दूसरी तरफ शहर में चांद बाबा का दबदबा भी बनने लगा। उसका खौफ ऐसा था कि चौक और रानीमंडी में पुलिस तक जाने से डरती थी। पुलिस और नेताओं समेत सभी उसके खौफ से छुटकारा पाना चाहते थे। अतीक पहले चांद बाबा की गैंग में शामिल था। इसलिए चांद बाबा को उसका गुरु बताया गया। बाद में वह चांद बाबा से अलग हो गया। पुलिस और नेताओं के डर का फायदा उठा अतीक ने इनसे साठगांठ बना ली। अतीक को आपराधिक दुनिया में दोनों का पूरा साथ मिलता रहा। 7 साल बीते, अब अतीक अपने गुरु चांद बाबा से ज्यादा खतरनाक हो गया। लगातार लूट, अपहरण और हत्या जैसी वारदातों को अंजाम देने लगा। अतीक के गुर्गों का नेटवर्क बढ़ने लगा। अब अतीक पुलिस के लिए भी नासूर बन गया। जिस पुलिस ने उसे अब तक शह दे रखी थी, वही जगह-जगह ढूंढने लगी। आखिरकार पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। दिल्ली से आया फोन, अतीक जान गया पॉलिटिकल पावर गिरफ्तारी के बाद लोगों को लगा कि अतीक का खेल खत्म हो गया, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उन दिनों प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र में राजीव गांधी की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक- ‘अतीक की गिरफ्तारी के बाद उसे छुड़ाने के लिए दिल्ली से एक फोन आया। एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया।’ जेल से बाहर आते ही वह समझ आ गया कि पॉलिटिकल पावर क्या है? जेल से बचने के लिए राजनीति ही उसके काम आ सकती है। इसलिए उसने राजनीति में कदम रखना तय किया। साल 1989 तक अतीक पर करीब 20 मामले दर्ज हुए। प्रयागराज के पश्चिमी हिस्से पर दबदबा हो गया। अतीक ने मौके को भुना लिया और बन गया विधायक अतीक की गैंग में इलाके के कई युवा शामिल हो गए। अपराध से उसने बहुत पैसा जोड़ लिया था। अतीक जब जेल से निकला, तब ही यूपी विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी थी। अतीक इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था। उसने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इलाहाबाद वेस्ट सीट से अतीक को किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला। यह बात अतीक को अपने वर्चस्व को ठेस पहुंचाने जैसी लगी। नामांकन शुरू होते ही अतीक अपने गुर्गों के साथ जिला निर्वाचन ऑफिस पहुंच गया। यहां उसने निर्दलीय ही नामांकन दाखिल कर दिया। अतीक के अलावा चुनावी मैदान में 25 निर्दलीय प्रत्याशियों ने पर्चा भर दिया। इसमें एक नाम उसके गुरु चांद बाबा का भी था। अतीक का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को अखर रहा था। यही वजह थी कि उसने अतीक को हारने के लिए चुनाव में उतरने का ऐलान किया। वहीं, कांग्रेस ने गोपाल दास यादव को अपना कैंडिडेट बनाया। दारू-मुर्गा पार्टी और पैसे बांटे
अतीक हर हाल में अपना पहला चुनाव जीतने का मन बना चुका था। बताते हैं कि उसने पानी की तरह पैसा बहाया। गुर्गों के जरिए दारू-मुर्गा पार्टी करवाई। पैसे बांटे। इसके अलावा विशेष कम्युनिटी के लोगों की मदद करने पहुंचने लगा। चुनाव वाले दिन अतीक ने सभी पोलिंग बूथ पर अपने गुर्गों की तैनाती कर दी। नतीजे आए तो अतीक को 25,906 वोट मिले। वह 8,102 वोट से जीतकर पहली बार विधायक बन गया। दूसरे नंबर पर गोपाल दास यादव, तीसरे नंबर पर निर्दलीय तीरथ राम कोहली और फिर चांद बाबा रहा। दिनदहाड़े, बीच बाजार चांद बाबा की हत्या विधायक बनने के करीब 3 महीने बाद अतीक अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग में चाय की टपरी पर बैठा था। अचानक चांद बाबा अपनी गैंग के साथ वहां आया और दोनों गैंग के बीच गैंगवार शुरू हो गया। पूरा बाजार गोलियों, बम और बारूद से पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई। कुछ महीनों में एक-एक करके चांद बाबा के गैंग के सदस्यों को निशाने पर लिया जाने लगा। पूरा गैंग खत्म हो गया। चांद बाबा के ज्यादातर गुर्गे मार दिए गए, बाकी वहां से भाग गए। चांद बाबा की हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा, लेकिन विधायक होने की वजह से उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया। आज तक अतीक इस मामले में दोषी साबित नहीं हो पाया। बूथ कैप्चरिंग होती, लेकिन कोई शिकायत नहीं करता पहला चुनाव जीतने के बाद अतीक ने पॉलिटिक्स और क्राइम दोनों से जमकर पैसा कमाया। 1991 में UP में राम मंदिर की लहर थी। अतीक फिर से निर्दलीय ही खड़ा हुआ। इस बार उसने BJP के रामचंद्र जायसवाल को 15,743 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। 1993 के चुनाव में BJP ने तीरथ राम कोहली को मैदान में उतारा, लेकिन नतीजा नहीं बदला। अतीक अहमद 9,317 वोटों से जीतकर लगातार तीसरी बार विधानसभा पहुंचा। कहा जाता है कि इलाके में हर बार बूथ कैप्चरिंग होती, लेकिन कोई भी इसकी शिकायत करने प्रशासन के पास नहीं जाता। लगातार पांच बार विधायक और एक बार सांसद बना अतीक लगातार तीन बार जीता तो मुलायम सिंह यादव ने उसे मिलने लखनऊ बुलाया और पार्टी में शामिल कर लिया। इस तरह से अतीक पहली बार किसी राजनीतिक पार्टी के बैनर तले 1996 में उसी इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से विधायक बना। इस बार जीत का अंतर 35,099 का रहा। ये उस वक्त जिले की सबसे बड़ी जीत थी, लेकिन इस जीत के बाद उसका सपा से विवाद हुआ और वह सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल में शामिल हो गया। 2002 में विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार अतीक सपा के खिलाफ अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा। 11,808 वोटों के अंतर से लगातार पांचवी बार विधायक बन गया। उस वक्त सोनेलाल खुद चुनाव हार गए थे। पार्टी को दो सीटें मिली थीं। पहली शहर पश्चिमी की और दूसरी फाफामऊ की, जहां अंसार अहमद विधायक बने थे। इस जीत के बाद सपा को लग गया कि अतीक जहां भी रहेगा, जीतता रहेगा इसलिए मुलायम सिंह ने उसे बुलाया और दोबारा पार्टी में शामिल कर लिया। इस बार इनाम में विधायकी नहीं, बल्कि सांसदी मिली। लगातार 5 बार विधायक रह चुके अतीक अहमद पर मुलायम सिंह ने भरोसा जताया और उसे फूलपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया। सामने बसपा की केसरी देवी पटेल थीं। अतीक को नहीं रोक पाईं। 64,347 वोटों से जीतकर अतीक सांसद बना। इसके बाद तो उसका रुतबा बढ़ गया। सांसद बना तो शहर पश्चिमी सीट खाली हो गई। 6 महीने बाद उपचुनाव की तारीख का ऐलान हुआ। अतीक का अतीत: नेता बनते ही दर्ज हुए 80 से ज्यादा मुकदमे अतीक धीरे-धीरे एक बड़ा नेता तो बन गया, लेकिन अपनी माफिया वाली छवि से वो कभी बाहर नहीं निकल पाया। बल्कि नेता बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेज हो गई। यही वजह है कि उसके ऊपर अधिकतर मुकदमे विधायक-सांसद रहते हुए दर्ज हुए।