यूपी में तीसरे फेज की 10 सीटों पर मंगलवार को 57.34% वोटिंग हुई। पिछली बार यानी 2019 की तुलना में इन सीटों पर करीब 3.92% कम वोट पड़े। आमतौर पर देखा जाता है कि जब भी वोटिंग कम होती है, तो नुकसान हमेशा सत्ता में रहने वाली पार्टी का होता है। लेकिन एक्सपर्ट इसको लेकर अलग राय रखते हैं। 2009 में 49.09% वोटिंग हुई थी। जबकि 2014 में वोटिंग 11.76% बढ़कर 60.85% हो गई। तब मोदी लहर थी और सत्ता बदलने के लिए लोगों ने घर से निकलकर वोट किया। 2019 के चुनाव में 0.41% की बढ़त हुई और वोटिंग 61.26% तक पहुंच गई। 2009 में इन 10 सीटों पर 49.09% वोटिंग हुई थी, तब भाजपा को सिर्फ 2 सीटें आंवला और आगरा पर ही जीत मिली थी। वहीं सपा को 3, बसपा को 2, कांग्रेस को 1, RLD को 1 और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। 2014 में देश में मोदी की लहर चली। उस समय इन 10 सीटों पर वोटिंग 2009 की तुलना में 11.76% बढ़ गई। तब भाजपा ने 10 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की। सपा 2009 की तरह ही 3 सीटें जीतने में कामयाब रही। इससे एक बात निकलकर सामने आई कि वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ने से भाजपा को बड़ा फायदा हुआ। 2019 के चुनाव में भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। तब वोटिंग में मामूली 0.41% की बढ़त हुई। इस चुनाव में भी भाजपा को फायदा हुआ और 2014 की तुलना में 1 सीट ज्यादा जीतने में कामयाब रही। 8 सीटों पर कब्जा किया। इस चुनाव में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। तब सपा ने सिर्फ मैनपुरी और बसपा ने संभल सीट पर जीत दर्ज की थी। मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते थे। यूपी में दूसरे फेज की 8 सीटों पर भी 54.85 फीसदी मतदान हुआ था जो कि 2019 की अपेक्षा 8.83% कम था। वहीं पहले फेज में भी 2019 की तुलना में 8.61% वोटिंग कम हुई थी। पहले फेज के चुनाव में 60.25% वोटिंग हुई थी। 2024 में तीसरे फेज में 57.34% वोटिंग हुई है। इसको लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है- वोटिंग फिर से कम हुई है। लोग घरों से वोट देने कम निकले। भीषण गर्मी भी इसकी एक वजह हो सकती है। भाजपा को इंडी गठबंधन से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है। तीसरे चरण की 10 सीटों पर 3 चुनाव की वोटिंग के गणित को समझते हैं… आगरा में सबसे कम वोटिंग, एक्सपर्ट बोले यहां कड़ी टक्कर
तीसरे फेज में सबसे कम वोटिंग आगरा सीट पर 53.99% हुई। एक्सपर्ट कहते हैं- यहां 2019 में सांसद रहे SP सिंह बघेल को दोबारा भाजपा ने टिकट दिया था, लेकिन मतदान के लिए लोग बूथ तक कम पहुंचे। 2019 के चुनाव की तुलना में यहां 7.71% कम वोटिंग हुई। इसका असर रिजल्ट पर पड़ सकता है। यहां भाजपा को गठबंधन से कड़ी टक्कर मिल सकती है। संभल में घरों से बाहर निकले वोटर, 2019 से फिर भी कम
संभल में तीसरे फेज के चुनाव में सबसे ज्यादा वोटिंग 62.81% हुई। हालांकि 2019 की तुलना में ये तकरीबन 5 फीसदी कम है। एक्सपर्ट की माने तो संभल में 2019 के चुनाव मे सपा प्रत्याशी शफीकुर्रहमान बर्क ने भाजपा प्रत्याशी को करीब पौने दो लाख वोटों से हराया था। शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद उनके पोते को टिकट मिला है। जबकि भाजपा ने परमेश्वर लाल सैनी पर दोबारा दांव लगाया है। ऐसे में सपा प्रत्याशी को सहानुभूति के वोट मिलने की बात कही जा रही है। बदायूं में 2019 से 5% ज्यादा वोटिंग, वोटिंग बढ़ी तो विपक्ष को फायदा
बदायूं लोकसभा सीट पर 54.05% वोटिंग हुई है। 2019 की तुलना में तकरीबन 5% ज्यादा है। 2019 में बदायूं में जब 49.5% वोट पड़े थे तो भाजपा की संघमित्रा मौर्य चुनाव जीती थीं। इस बार भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदल दिया है। 2014 में वोटिंग 58% से ज्यादा हुई थी तो सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव डेढ़ लाख वोटों से जीते थे। आंकड़े कहते हैं बदायूं में जब भी मतदान ज्यादा हुआ है तो सपा को फायदा हुआ है। बरेली में दो बार बढ़ी वोटिंग तो जीती बीजेपी, इस बार कम पड़े वोट
बरेली लोकसभा सीट के आंकड़े अलग ही कहानी कह रहे हैं। जब भी वोटिंग ज्यादा हुई है तब बरेली में भाजपा जीती है। 2014 में 11% ज्यादा वोटिंग हुई तो भाजपा के संतोष गंगवार जीते थे। 2019 में भी ठीक-ठाक वोटिंग हुई थी, तब भी भाजपा ही जीती थी। इस बार बरेली में 2019 की तुलना में 3% कम वोटिंग हुई है, और भाजपा ने नए प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। आंवला में भी 3% कम वोटिंग, 3 चुनावों से भाजपा का कब्जा
आंवला सीट पर पिछले तीन चुनावों से भाजपा का कब्जा है। यहां 2009 में भाजपा की मेनका गांधी ने जीत दर्ज की थी, तब 53.8% वोट पड़े थे। 2014 में 60.2% और 2019 में 60.7% वोटिंग हुई और दोनों ही बार भाजपा के धर्मेंद्र कुमार जीते। इस बार 3% कम वोटिंग हुई है। भाजपा ने पुराने प्रत्याशी पर दांव लगाया है। एक्सपर्ट का मानना है कि इस सीट पर सपा और बसपा दोनों के चुनाव लड़ने से भाजपा प्रत्याशी को फायदा हो सकता है। हाथरस में 9% कम वोटिंग, जब वोट बढ़े जीती भाजपा
हाथरस में 2009 में लोकदल की प्रत्याशी सारिका सिंह चुनाव जीती थीं। उस समय सिर्फ 45.1% वोटिंग हुई थी। लेकिन 2014 में मोदी लहर आई तो वोटिंग बढ़ कर 59.7% तक पहुंच गई। उस समय भाजपा प्रत्याशी राजेश दिवाकर 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीते। फिर से 2019 में वोटिंग 60.9% हुई, इस चुनाव में भी भाजपा जीती। इस बार वोटिंग 9% कम हुई है। एक्सपर्ट की माने तो इस बार तगड़ी फाइट देखने को मिल सकती है। फतेहपुर सीकरी में भी घट गई 5.2% वोटिंग, पिछले दो चुनावों से भाजपा का कब्जा
फतेहपुर सीकरी में 2019 की तुलना में 5.2% वोटिंग कम हुई है। यहां पर 2014 और 2019 में लगातार भाजपा जीती है। 2009 में बसपा की सीमा उपाध्याय ने जीत दर्ज की थी। उस समय दूसरे नंबर पर कांग्रेस के राज बब्बर थे। एक्सपर्ट की माने तो 2014 से इस सीट पर वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ा तो भाजपा की जीत हुई। इस बार 6% वोटिंग कम हुई है। इसका असर चुनाव परिणाम पर देखने को मिल सकता है। मैनपुरी में वोटिंग में मामूली बढ़त, सपा का रहा है गढ़
मैनपुरी में 2009 में 49.8% वोटिंग हुई थी। उस समय इस सीट पर मुलायम सिंह यादव जीते थे। 2014 में वोटिंग बढ़कर 60.5% और 2019 में 58.5% रही। दोनों चुनावों में मुलायम सिंह यादव जीते। यहां वोटिंग बढ़ने या घटने से सिर्फ जीत हार के मार्जिन पर असर हुआ। कभी चुनाव परिणाम नहीं बदला। इस बार मुलायम सिंह की बहू डिंपल मैदान में हैं। दो चुनावों से भाजपा का कब्जा, इस बार 4% कम वोटिंग
एटा में पिछले दो चुनावों से भाजपा का कब्जा रहा है। यहां 2009 में 44.4% वोटिंग हुई थी तब निर्दलीय प्रत्याशी कल्याण सिंह जीते थे। इसके बाद दो चुनावों में वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ा तो ये सीट भाजपा के खाते मे आ गई। इस बार वोटिंग पर्सेंटेज 4 फीसदी कम हुआ है। ऐसे में एक्सपर्ट की माने तो इस सीट पर भी फाइट देखने को मिल सकती है। फिरोजाबाद में हमेशा रही है कड़ी टक्कर, 2019 में खिला था कमल
फिरोजाबाद सीट पर इस बार 2019 की तुलना में 5% कम वोटिंग हुई है। इस सीट पर 2014 की मोदी लहर में भी सपा के अक्षय यादव चुनाव जीते थे। जबकि 2009 में अखिलेश यादव इस सीट पर जीत कर लोकसभा पहुंचे थे। हांलाकि, 2019 में इस सीट पर कमल खिला और भाजपा के डॉ. चंदरसेन ने सपा के अक्षय यादव को हरा दिया। इस बार भी इस सीट पर कड़ी फाइट देखने को मिल सकती है।