इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों के समायोजन की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है। जस्टिस मनीष माथुर जे. की सिंगल बेंच के इस फैसले से समायोजन प्रक्रिया पर रोक लग गई है, जिससे बड़ी संख्या में शिक्षक प्रभावित हुए हैं। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग से कहा- समायोजन से जुड़ी सभी गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए और समायोजन प्रक्रिया में की गई गलतियों को सुधारने के लिए उचित कदम उठाया जाए। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग में समायोजन के लिए लागू नियम लास्ट कम फर्स्ट आउट को संविधान के अनुच्छेद 14 के विरुद्ध माना है। इसके तहत नया टीचर आने पर हर बार वरीयता में नीचे रहता है। ट्रांसफर पॉलिसी में बाहर हो जाता है। जबकि सीनियर टीचर लंबे समय तक एक ही जगह पर तैनात रहता है। रीना सिंह एंड अदर्स वर्सेज स्टेट ऑफ यूपी केस में दिए गए आदेश में कोर्ट ने अनुच्छेद 14 के साथ ही 16 का उल्लंघन बताया है। कोर्ट ने कहा- हर बार इस प्रक्रिया के तहत जूनियर शिक्षक समायोजित होता रहेगा और सीनियर शिक्षक जहां जमा है, वहीं रह जाएगा। कोर्ट के इस आदेश का असर सीनियर शिक्षकों पर भी पड़ेगा। अब वह भी समयोजन के दायरे में आएंगे। ऐसे में 80-90% बेसिक स्कूलों पर इस आदेश का असर पड़ता दिख रहा है। हालांकि जानकार आदेश के खिलाफ अपील दायर होने की बात कह रहे हैं। अब 4 पॉइंट में समझिए… 1. ट्रासंफर नीति को चुनौती: याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि “लास्ट इन फर्स्ट आउट” सिद्धांत लागू करने से जूनियर शिक्षकों को बार-बार ट्रांसफर किया जाएगा, जबकि वरिष्ठ शिक्षक अपने पदों पर स्थिर बने रहेंगे। यह नियम बिना तर्क और कारण के असमानता पैदा करता है, जो कि अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। 2. शिक्षा अधिकार अधिनियम और नियमों का उल्लंघन: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह नीति शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और सेवा नियम 1981 के तहत दिए गए प्रावधानों के खिलाफ है। यह अधिनियम छात्र-शिक्षक अनुपात बनाए रखने के लिए है, लेकिन ट्रांसफर प्रक्रिया में ऐसे कोई नियम शामिल नहीं है, जो जूनियर शिक्षकों के पहले ट्रांसफर किए जाने के लिए बाधित करता हो। 3. शिक्षा मित्रों की गणना का मुद्दा: सरकारी आदेश में शिक्षकों की संख्या में शिक्षा मित्रों को भी शामिल किया गया है, जबकि शिक्षा मित्र के पास सहायक शिक्षक बनने के लिए आवश्यक शैक्षिक योग्यता नहीं होती है। इसलिए, शिक्षा मित्रों को सहायक शिक्षकों के बराबर मानना अनुचित है। 4. पिछले न्यायिक निर्णयों का उल्लंघन: याचिकाकर्ताओं ने पिछले मामलों का हवाला देते हुए यह भी तर्क दिया कि “लास्ट इन फर्स्ट आउट” सिद्धांत पहले भी न्यायालय द्वारा असंवैधानिक माना गया है। कोर्ट ने समायोजन नीति को असंवैधानिक और तर्कहीन माना और आदेश दिया कि “लास्ट इन फर्स्ट आउट” सिद्धांत पर आधारित ट्रांसफर नीति में आवश्यक बदलाव किए जाएं, ताकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों के अनुरूप हो। 30 छात्रों पर 1 टीचर का अनुपात
सरकार ने बेसिक शिक्षा विभाग में 30 छात्रों पर 1 टीचर का अनुपात तय किया है। इस अनुपात को मेंटेन करने के लिए करीब 1 लाख 47 हजार शिक्षामित्रों को भी शामिल किया गया है। वहीं, अपर प्राइमरी में 35 बच्चों पर एक टीचर का अनुपात है, छात्र-शिक्षक अनुपात को पूरा करने के लिए 26 हजार अनुदेशकों को जोड़ा गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में शिक्षा मित्रों का समायोजन रद्द कर दिया था। शिक्षामित्र-अनुदेशकों का मानदेय शिक्षकों के मुकाबले बेहद कम है। सरकार के इस अनुपात-समानुपात के बीच शिक्षक भर्ती का इंतजार कर रहा अभ्यर्थी फंस गया है। यूपी के ही करीब 15 हजार से ज्यादा अभ्यर्थी पड़ोसी राज्य बिहार में जाकर शिक्षक बने हैं। इन सबकी पहली चॉइस यूपी में नौकरी करने की रही थी। बाकी के युवा भी यही चाहते हैं कि सरकार भर्ती निकाले, उन्हें शिक्षक बनने का मौका मिले। ———————————– यह भी पढ़ें:- बुलडोजर एक्शन, SC बोला- रातों-रात घर नहीं गिरा सकते:यूपी सरकार को फटकार लगाई; पीड़ित को 25 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर यूपी सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने कहा, ‘यह मनमानी है। आप बुलडोजर लेकर रातों-रात घर नहीं तोड़ सकते हैं। आप परिवार को घर खाली करने का समय नहीं देते। घर के सामान का क्या, उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।’ पढ़ें पूरी खबर…

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