‘मैं जब अलीगढ़ में पोस्टेड था, एक विधायक और सांसद ने थाने में घुसकर इंस्पेक्टर से बदतमीजी कर दी। उनके साथ थाने में ही हाथापाई की, गाली-गलौज करते हुए मारने की धमकी दी। अन्य कॉन्स्टेबल से भी गलत व्यवहार किया। ये बात मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आई और मैंने इंस्पेक्टर के साथ स्टैंड किया। नेताओं से साफ कहा- मेरे आदेश पर मुकदमा दर्ज किया गया, तो मुझसे बात करनी चाहिए थी। थाने में इस तरह का व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मामले ने अलीगढ़ से लखनऊ तक बहुत तूल पकड़ा। लेकिन मैं हमेशा इंस्पेक्टर के साथ खड़ा रहा, क्योंकि उसने कुछ गलत नहीं किया था। अगर अपनी टीम के साथ मैं नहीं खड़ा रहूंगा, तो उसका मॉरल कैसे बढ़ेगा।’ स्ट्रॉन्ग पुलिसिंग के ये शब्द हैं IPS अतुल शर्मा के। खाकी वर्दी में आज कहानी IPS अतुल शर्मा की। कानपुर IIT से इंजीनियरिंग वाले अतुल ने 3 साल में सिविल सर्विस के एग्जाम को क्रैक किया। यूपी में पहली पोस्टिंग में ही एनकाउंटर से चर्चा में आए। यह कहानी आप 4 चैप्टर में पढ़ेंगे…। सबसे पहले बातचीत IPS के बचपन से शुरू करते हैं। 31 मार्च, 1990 को गाजियाबाद में जन्मे अतुल बताते हैं- मेरे पिता राम निवास शर्मा रेलवे में नौकरी करते थे। घर में पढ़ाई-लिखाई का माहौल शुरू से बहुत अच्छा था। दोनों बड़े भाई पढ़ने में बहुत होशियार थे। मैं बचपन से ही वर्दी का बहुत शौकीन था। मुझे पुलिस अफसर बहुत अच्छे लगते थे। मेरी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गाजियाबाद के एक प्राइवेट स्कूल से हुई। यहां से 5th करने के बाद दूसरे स्कूल में एडमिशन लिया। वहां से 2005 में हाईस्कूल कंपलीट किया। हाईस्कूल करने के दौरान ही कॅरियर की दिशा में सोचने लगा था। बड़े भाइयों की पढ़ाई की स्ट्रैटजी और पिताजी के निर्देशन में मैं 12वीं करने दिल्ली चला गया। यहां विवेकानंद कॉलेज में एडमिशन लिया। मेरी मैथमैटिक्स शुरू से स्ट्रॉन्ग थी। इसलिए इंजीनियरिंग की तैयारी भी शुरू कर दी थी। 12वीं करने के तुरंत बाद मेरा इंजीनियरिंग में सिलेक्शन हो गया और मुझे IIT, कानपुर मिला। परिवार में बहुत खुशी हुई। पिताजी ने भी समझाया कि अच्छा सेंटर मिल गया है, जाकर पहले B.TECH कंपलीट करो। मैं उत्साह के साथ कानपुर IIT पहुंच गया और वहां 2011 तक रहा। इलेक्ट्रिकल से इंजीनियरिंग कंपलीट करने के बाद नौकरी के लिए निकल पड़ा। पहली नौकरी टाटा स्टील में लगी। यहां मुझे 10 लाख का पैकेज मिला। बहुत सारी सुख-सुविधाएं थीं। टाटा जैसी कंपनी में तुरंत नौकरी लग जाना बड़ी बात मानी गई। मैंने नौकरी जॉइन कर ली। यहां मैंने दो साल काम किया। सब कुछ ठीक चल रहा था और आगे की ग्रोथ भी दिख रही थी। लेकिन, अंदर से मन को सुकून नहीं मिल रहा था। परिवार वालों से बात की। उन्हें समझाया कि इंजीनियरिंग में एक नौकरी पक्की हो गई है, क्यों न सिविल सर्विस की तैयारी कर लूं। कुछ साथियों ने समझाया बहुत चैलेंजिंग है। चलती हुई अच्छी नौकरी छोड़ोगे, तो लोग क्या कहेंगे। मैंने उनकी कोई परवाह नहीं की। सोचा अगर सिविल सर्विस में निकल गया, तो जो भी कुछ कहने वाले हैं उनकी जुबान अपने आप बंद हो जाएगी। दो साल बाद मैंने टाटा स्टील से नौकरी छोड़ दी और दिल्ली पहुंच गया। यहां सिविल सर्विस की तैयारी शुरू की। मैथमैटिक्स को ही अपना मुख्य सब्जेक्ट रखा। यहां खुद को रिजर्व करके सेल्फ स्टडी शुरू की। 2013 के पहले अटेम्प्ट में मेरे नंबर बहुत अच्छे नहीं आए। थोड़ी-सी निराशा हुई, लेकिन बड़ा टारगेट लेकर जुटा था तो कंसिस्टेंसी मेंटेन करनी ही थी। इस बार और ताकत से लगा, लेकिन 2014 में भी सिलेक्शन नहीं हुआ। हिम्मत नहीं हारा। जो कमियां थीं, उनको पहचाना और सुधार करके इस बार और अच्छे से परीक्षा दी। 2015 में मेरा सिलेक्शन हो गया। 118वीं रैंक आई। 2016 में एकेडमी में ट्रेनिंग कंपलीट हुई और यूपी कैडर के साथ IPS की वर्किंग शुरू हो गई। अपनी पहली फुल-फ्लैश पोस्टिंग पर बातचीत करते हुए अतुल बताते हैं- एकेडमी और यूपी में दो जिलों में ट्रेनिंग कंपलीट करने के बाद मेरी पहली इंडिपेंडेंट पोस्टिंग प्रतापगढ़ में हुई। प्रतापगढ़ के बारे में अक्सर मैं अखबारों या टीवी पर सुना करता था। ये जिला राजा भैया के लिए जाना जाता था। पहले से ही एक माइंड मेकअप था कि बहुत क्राइम वाला जिला है। वहां पूरे कार्यकाल में मेरा राजा भैया से एक बार भी साबका नहीं पड़ा। जब मैं वहां पहुंचा, तो क्राइम कुछ वैसा ही दिखा जैसा सोचा था। यहां एक बदमाश तौकीर अहमद बहुत सुर्खियों में था। उस पर हत्या, लूट, अपहरण और रेप के 20 से ज्यादा केस दर्ज थे। व्यापारियों में उसका खौफ था। वो अक्सर अपहरण कर रंगदारी मांगता था। प्रतापगढ़ पुलिस उसे लंबे समय से तलाश रही थी। बढ़ते अपराध को देखते हुए उस पर एक लाख रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया। वह आधुनिक हथियार और कार्बाइन लेकर चलता था। इसलिए उसका दबदबा बहुत रहता था। बड़ी बात यह थी अगर उसकी कोई मुखबिरी करे, तो उसके परिवार पर हमला करता था। इसलिए उसके बारे में कोई कुछ बताने को तैयार ही नहीं होता था। वह रहता तो प्रतापगढ़ में था, लेकिन वारदात प्रयागराज, कौशांबी जैसे जिलों में भी करता था। उसने अतीक का गैंग भी जॉइन कर रखा था। लोगों को अतीक के नाम से धमकाता था। एक रात हमें उसके चिलबिला रोड के पास आने की खबर मिली। एसटीएफ और लोकल पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद थी। तभी एक बाइक से दो लोग आते दिखाई दिए। हमारी टीम के एक सिपाही ने उसे हाथ देने की कोशिश की, तो कार्बाइन से फायरिंग करने लगा। पुलिस टीम ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और वो क्रॉस फायरिंग में मारा गया। लेकिन उसका दोस्त भाग गया। उसके पास से एक कार्बाइन, मैगजीन और दो पिस्टल बरामद हुईं। पहली जॉइनिंग और सीधे एनकाउंटर, ये मुझे थोड़ा चौंकाने वाला लग रहा था। लेकिन संतुष्टि यह हुई कि पहली जॉइनिंग में ही एक बड़ा माफिया मारा गया। पूरी टीम ने इसके लिए बहुत मेहनत की। अपने कॅरियर के सबसे चैलेंजिंग केस पर वह कहते हैं- जब मैं सहारनपुर का एसपी था, तो एक बहुत चैलेंजिंग मामला सामने आया। एक महिला की हत्या उसके सास-ससुर ने सुपारी देकर करवाई थी। इसका खुलासा बहुत टेक्निकल तरीके से हुआ था। हुआ कुछ यूं था कि सहारनपुर सरसावा एयरफोर्स स्टेशन पर एक सार्जेंट अमराव सिंह राठौर तैनात था। वह राजस्थान का रहने वाला था। यहां दो-तीन साल से नौकरी कर रहा था। उसका एक लड़की पूजा से अफेयर था। दोनों ने शादी भी कर ली थी। दोनों सहारनपुर में रह रहे थे। सार्जेंट के साथ उसके माता-पिता भी रहते थे। माता-पिता उसकी शादी से खुश नहीं थी। इस बात को लेकर उनमें कई बार अनबन भी हो चुकी थी। सार्जेंट माता-पिता को समझाता था कि जमाना बदल गया है। अब लव मैरिज में कोई बुराई नहीं। लेकिन, वे लोग समझने को तैयार नहीं थे। घर में तो वो उसकी पत्नी का कुछ कर नहीं सकते थे। इसलिए अंदर ही अंदर उन्होंने बहू की हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी। उन्होंने बहू को मारने के लिए 5 लाख की सुपारी एक रिटायर्ड फौजी को दे दी। अब बस प्लान ये करना था कि किसी तरह बहू को घर से बाहर निकाला जाए। एक दिन वे लोग बहू को घुमाने और शॉपिंग कराने के नाम पर बाहर ले गए। वह भी हैरान थी कि मां-बाबूजी में इतना बड़ा बदलाव कैसे दिखाई पड़ा रहा? काफी देर तक वो बाजार में घूमते रहे और कुछ घरेलू सामान की खरीदारी भी की। थोड़ी देर बाद अचानक सास-ससुर गायब हो गए। सुपारी लेने वाला रिटायर्ड फौजी अपने एक साथी के साथ पहले से घात लगाए बैठा था। उसने चाकू के बल पर पूजा को उठा लिया और दूर ले जाकर उसका मर्डर कर दिया। इसके बाद लाश हरियाणा में यमुना नदी में फेंक दी। पूजा के पति यानी सार्जेंट ने पत्नी की गुमशुदगी की सूचना पुलिस को दी। पुलिस दो-तीन दिन तक उसकी तलाश करती रही। इसी बीच हरियाणा पुलिस को एक महिला की लाश मिली। सूचना हमारे क्षेत्र में आई, तो सहारनपुर पुलिस शिनाख्त के लिए पहुंची। घटनास्थल पर पूजा के पति को भी बुलाया गया। उसने लाश को पहचान लिया। इस तरह से पूजा की पहचान तो हो गई, लेकिन मर्डर कैसे हुआ इसका खुलासा करने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी। उस दिन के एक-एक CCTV को खंगाला गया, तो बाजार में सार्जेंट के माता-पिता किसी से बात करते दिखाई दिए। इसी आधार पर जब पूछताछ शुरू की गई, तो धीरे-धीरे कड़ी जुड़ती चली गई। सबसे पहले रिटायर्ड फौजी पकड़ में आया। उस पर दबाव पड़ा, तो उसने अपने साथी का नाम भी बता दिया। दोनों हत्यारोपी पुलिस की गिरफ्त में आ गए और उन्होंने पूरा मामला कबूल कर लिया। यह बहुत अलग तरह की कहानी थी कि सास-ससुर अपनी बहू से छुटकारा पाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। आपका एक सबसे चर्चित मामला था कि आप अपने इंस्पेक्टर के लिए विधायक और सांसद से भिड़ गए थे? इसके जवाब में IPS कहते हैं- मैं भिड़ा नहीं था, मेरा काम किसी नेता से भिड़ना नहीं है। हां, कुछ गलतफहमी हो गई थी, जिसे दूर करने के लिए अपने इंस्पेक्टर का साथ देना पड़ा। हुआ कुछ यूं था कि अलीगढ़ के गोंडा थाना क्षेत्र में दो पक्षों में झगड़ा हो गया। जिस पक्ष के लड़के को चोट लगी थी, पुलिस ने उसका मुकदमा दर्ज कर लिया। दूसरे पक्ष ने दूसरे दिन तहरीर दी, तो उसका मुकदमा भी दर्ज कर लिया। इसी बात को लेकर पहले पक्ष के लोगों ने विधायक और सांसद से शिकायत की। विधायक और सांसद सीधे थाने पहुंच गए। वहां पुलिसकर्मियों से अभद्रता की। इंस्पेक्टर ने तो यहां तक आरोप लगाया कि विधायक ने मारपीट की है। जैसे ही मुझे इसकी जानकारी हुई, तो मैं सीधे थाने पहुंचा। मैंने विधायक से यही कहा कि आपको थाने में इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था। अगर कोई भी नेता मेरे इंस्पेक्टर के साथ इस तरह का व्यवहार करेगा, तो मुझे उसका स्टैंड लेना पड़ेगा। अलीगढ़ के एक और मामले को याद करते हुए अतुल बताते हैं- CAA-NRC का हंगामा चल रहा था। अलीगढ़ में माहौल बहुत खराब हो रहा था। एक दिन AMU के स्टूडेंट ने बहुत बड़ा प्रदर्शन किया। उसको कंट्रोल करने की जिम्मेदारी मुझे मिली। मैं फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गया। मुझे लगा कुछ देर प्रदर्शन चलेगा और मामला शांत हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। स्टूडेंट्स ने धरने के साथ-साथ पथराव शुरू कर दिया। इसके बीच उन स्टूडेंट्स को कंट्रोल करना और अपने पुलिसकर्मियों को बचाना दोनों ही कठिन लगने लगा। कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए। मुझे भी एक-दो पत्थर लगे, लेकिन मैं डटा रहा। करीब 5 घंटे तक उन स्टूडेंट्स को गेट के पास ही रोककर रखा, उन्हें शहर के अंदर एंट्री नहीं करने दी। नहीं तो हालात और बिगड़ जाते। धीरे-धीरे हालात कंट्रोल हुए और फोर्स ने स्टूडेंट्स को कैंपस के अंदर तक सीमित कर दिया। युवाओं को मैसेज : कंसिस्टेंसी बहुत जरूरी
सिविल सर्विस की तैयारी में आने वाले युवाओं से यही कहना चाहूंगा कि जरूरी नहीं, शुरू से 15-16 घंटे पढ़ाई में जुट जाएं। पढ़ाई की कंसिस्टेंसी मेंटेन करें। भले ही वो 8 घंटे की हो, लेकिन वो रोज हो। अपने आसपास होने वाली घटनाओं से अवेयर रहें। अपने स्टेट का कल्चर समझें, हिस्ट्री पढ़ें। अच्छे दोस्तों के साथ चर्चा करें। आप जो भी काम डिसाइड करें, सिर्फ ग्लैमर देखकर नहीं। उसकी कठिनाइयों और चुनौतियों को पहले गंभीरता से समझें। उसी के अनुसार तैयारी करें। पुलिस की वर्दी भी बहुत जिम्मेदारी का काम है। इसके लिए पैशनेट होकर तैयारी करें। यह खबर भी पढ़ें… मुख्तार को पंजाब से UP लाने वाले IPS यमुना प्रसाद: हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाले इस अफसर की सूझबूझ से माफिया पर कसा शिकंजा ‘पंजाब की रोपड़ जेल से मुख्तार अंसारी को जिस एंबुलेंस से मोहाली कोर्ट में पेशी पर ले जाया जा रहा था वह बाराबंकी में रजिस्टर्ड थी। एंबुलेंस को बहुत ही लग्जरी तरीके से तैयार किया गया था। हमने जब उसकी जांच की तो वह एंबुलेंस फर्जी डॉक्यूमेंट से रजिस्टर्ड पाई गई। उस लग्जरी एंबुलेंस को मुख्तार अपने रसूख और पंजाब के अफसरों की मिलीभगत से निजी वाहन के रूप में इस्तेमाल कर रहा था। मुख्तार को पंजाब से UP की जेल में वापस लाने की सबसे बड़ी वजह यही मुकदमा भी बना।’ यह कहना है IPS यमुना प्रसाद का। IPS यमुना ने सिस्टम की तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए माफिया मुख्तार के खिलाफ कई एक्शन लिए। यमुना प्रसाद ने संभल में दो सिपाहियों की हत्या का बदला डबल एनकाउंटर से लिया। खाकी वर्दी में आज कहानी IPS यमुना प्रसाद की। पढ़ें पूरी खबर

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