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एन. रघुरामन का कॉलम:हर किसी का एक मकसद है, उसे जल्द पहचानें

कुछ लोग परिवार का आर्थिक संबल बनने के लिए कड़ा संघर्ष करते हैं, जैसा वाघा बॉर्डर के जुगराज सिंह ने या कानपुर के अमन कश्यप ने किया। कुछ लोग जानते हैं कि वे क्या कर सकते हैं, जैसा दिल्ली के ऋषभ राज और पटना के अक्षित कुमार जानते थे। दोनों ने अपनी पसंद के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ काम किया और देश का गौरव बढ़ाया। वहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के आर्ट्स व कॉमर्स कॉलेज के छात्र, उज्ज्वल मिश्रा (22) जैसे लोग भी हैं, जिन्हें अहसास होता है कि वे जिस रास्ते पर हैं, उसमें उनकी रुचि नहीं है और फिर वे साहस करके रास्ता बदलते हैं और इनाम पाते हैं। इन पांचों में एक समानता है। उन्होंने अपनी क्षमता पहचानी, मेहनत की और मुकाम हासिल किया। जुगराज सिंह के पिता, वाघा बॉर्डर पर पाकिस्तान से आने वाली सीमेंट या अफगानिस्तान से आने वाले ड्रायफ्रूट का बोझ ढोते थे। ऐसे में जुगराज ने, वाघा बॉर्डर पर रोज़ होने वाली बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में तिरंगा झंडा और पानी की बोतलें बेचकर परिवार को आर्थिक सहारा दिया। इस मंगलवार जुगराज के गोल की बदौलत, भारत ने मेज़बान टीम चीन को 1-0 से हराकर एशियाई हॉकी में अपना दबदबा कायम किया। जुगराज को हमेशा से हॉकी पसंद थी और कोच नवजोत सिंह ने उनकी एथलेटिक क्षमता देखते हुए, अटारी के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हॉकी खेलने को कहा। आर्थिक मजबूरियों की वजह से अमन कश्यप कभी कॉलेज कोर्स नहीं कर पाए। उन्होंने कभी कानपुर में चमड़े की फ़ैक्टरी में काम किया, तो कभी स्विगी में डिलीवरी का काम किया। लेकिन उनकी कंप्यूटर में रुचि थी। उन्होंने टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मौके तलाशना जारी रखा। उन्हें एक स्किल सिखाने वाले प्लेटफॉर्म के बारे में पता चला जो नौकरी लगने तक फीस नहीं लेता। परिवार में 15,000 रुपए प्रतिमाह का योगदान न दे पाना मुश्किल फैसला था। लेकिन परिवार ने साथ दिया और अमन ने एक साल कड़ी मेहनत की। उन्होंने दो छोटी इंटर्नशिप कीं और अब वे स्विगी में ही फुल टाइम सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे हैं। दिल्ली में स्कूली पढ़ाई के बाद ऋषभ, उच्च शिक्षा के लिए न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी चले गए। वहीं अक्षित ने अहमदाबाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन में दाखिला लिया। लेकिन दोनों ने फ़िल्म मेकिंग का जुनून ज़िंदा रखा। इस हफ्ते उन्होंने प्रतिष्ठित स्टूडेंट एकेडमी अवॉर्ड जीता, जिसे स्टूडेंट ऑस्कर भी कहते हैं। एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेस ने 51वें एडिशन के विजेताओं की घोषणा की, जिसमें दुनियाभर के 738 कॉलेजों से, 2,683 एंट्री आईं। जिन फ़िल्मों को स्टूडेंट ऑस्कर मिलता है, वे बाद में मुख्य ऑस्कर की एनिमेटेड शॉर्ट फिल्म, लाइव-एक्शन शॉर्ट फिल्म, या डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म श्रेणी में प्रतिभागी बन सकती हैं। उधर उप्र के आलमबाग के उज्ज्वल बीएसएसी शुरू कर चुके थे। उन्होंने जोखिम लिया और बीएससी छोड़कर, बैचलर ऑफ फ़ाइन आर्ट्स में दाखिला लिया। एक साल खोना और स्ट्रीम बदलने का जोखिम बेकार नहीं गया। उन्हें हाल ही में तीन अवॉर्ड मिले हैं- इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स 2024, वर्ल्डवाइड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड से ‘ग्रैंड मास्टर’ टाइटल। उन्हें ये राम दरबार की सबसे बड़ी टाइपोग्राफिक पिक्चर बनाने की व्यक्तिगत श्रेणी के तहत मिला है। इसमें उन्होंने 50 हजार बार सीता राम इस तरह टाइप किया, जिससे भगवान राम, सीता माता और हनुमान का पोट्रेट बन गया। फंडा यह है कि हमें बनाने वाले ने, इस धरती पर हमें किसी उद्देश्य से भेजा है। अगर हम वह उद्देश्य जल्दी समझ जाते हैं और फिर लगातार उस पर मेहनत करते हैं, तो सफलता की ऊंचाई पर पहुंचना आसान हो जाता है।

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