कुछ माह पहले ही नेटफ्लिक्स पर संजय लीला भंसाली की निर्देशित हिंदी ड्रामा सीरीज रिलीज हुई थी। हो सकता है, हिंदुस्तानी पाठकों ने इसे काफी अरसे पहले ही देख लिया हो। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि आज अचानक से हीरामंडी की याद कैसे आ गई? यह याद दो वजहों से आई। एक, अभी जब मैंने नेटफ्लिक्स पर हीरामंडी ड्रामा देखा तो यह देखकर हैरान रह गया कि जिस हीरामंडी को उसमें फिल्माया गया है, वह असल से कितनी अलग है। दूसरा, हमारे पाकिस्तानी फिल्म मेकर कमाल खान ने इस ड्रामा की एक किरदार ‘अजीजान बाई’ पर फिल्म बनाने का फैसला किया है। उसका असली नाम अजीजुल निसा था और वो बुनियादी तौर पर कानपुर की थी। मैं सिर्फ 14 साल का था, जब मैंने पहली बार लाहौर की मशहूर हीरामंडी देखी थी। मैं सेंट्रल मॉडल स्कूल में 9वीं कक्षा का छात्र था, जो हीरामंडी लाहौर के नजदीक था। मैं अपने स्कूल की क्रिकेट टीम का हिस्सा हुआ करता था। हम लाहौर किले के बगल में स्थित मिंटो पार्क में मैच खेला करते थे। हम हमेशा तांगे से मिंटो पार्क जाते थे, लेकिन वापसी में पैदल ही हीरामंडी के सामने से होकर गुजरते थे। लाहौर किले के रोशनाई गेट से हीरामंडी के प्रवेश द्वार तक एक शॉर्ट कट हुआ करता था। रोशनाई गेट हीरामंडी को उस विशाल परिसर से जोड़ता है, जहां लाहौर किला, बादशाही मस्जिद और महाराजा रणजीत सिंह की समाधि मौजूद है। कुछ सालों बाद मुझे गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया। यह भी हीरामंडी के पास ही था। अब मैं अपने कॉलेज की क्रिकेट टीम का सदस्य था। हमारी टीम के दो खिलाड़ी हीरामंडी से ही थे। एक दिन मैंने कहा कि मुझे एक गिटार खरीदनी है। तो मेरा एक साथी खिलाड़ी मुझे हीरामंडी ले गया। मुझे वहां बहुत सस्ते दामों पर एक गिटार मिल गया। यह हीरामंडी से मेरा औपचारिक परिचय था। मुझे बताया गया कि मेहंदी हसन, बैरी गु़लाम अली खान, मशहूर गायिका नूरजहां, फरीदा खानम और कई एक्ट्रेसेज हीरामंडी से थीं। 1979 में जनरल जिया की फौजी हुकूमत ने इस इलाके में वेश्यावृत्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब यह हीरामंडी कुछ डांस अकादमियों के साथ एक फूड स्ट्रीट बन गई है। नेटफ्लिक्स की हीरामंडी में जो हवेलियां देखने को मिलीं, वे असल हीरामंडी की हकीकत से बहुत दूर हैं। हीरामंडी का हीरों से कोई ताल्लुक नहीं रहा। दरअसल, यहां 1844 में हीरा सिंह डोगरा ने अनाज मंडी बनाई थी, जो महाराजा रणजीत सिंह के वजीर थे। लाहौर के असल इतिहास में मलिका जान (मनीषा कोइराला) जैसी कोई अमीर तवायफ और ताजदार बलोह (ताहा शाह) जैसे नवाब नहीं मिलते। हां, एक किरदार बिब्बोजान (अदिति राव हैदरी) असली है, जिसने ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी, लेकिन वह कानपुर की थी। उसका असली नाम अजीजुल निसा (अजीजान बाई) था। वह 1857 की बगावत में शामिल हो गई थी। उसे कानपुर में मेजर जनरल हेनरी हैवलॉक ने गिरफ्तार कर गोली मार दी थी। अब, असल मसले पर बात करते हैं। हीरामंडी की चर्चा करने का मकसद भी यही है। क्या अच्छा नहीं होता कि भारतीय डायरेक्टर इसी लोकेशन पर अपनी सीरीज शूट करते? तो वह हकीकत के कहीं करीब होती। लेकिन दोनों मुल्कों के बीच जो तनाव है, बेशक वह मेकर्स में दिमाग में आया होगा और इसलिए उन्होंने असल लोकेशन में उसको फिल्माने के बारे में शायद विचार भी नहीं किया होगा। अगर करते भी तो शायद दोनों ही हुकूमतों की तरफ से हो सकता है, इसकी इजाजत भी नहीं मिलती। इसी तरह अब जबकि पाकिस्तानी फिल्म मेकर कमाल खान ने अजीजान अजीजान बाई पर फिल्म बनाने का फैसला किया है तो उसकी शूटिंग कहां होगी? जाहिर है, कानपुर की असल लोकेशन पर तो नहीं होगी।
दोनों मुल्कों के बीच एक साझा इतिहास रहा है। अगर उस इतिहास के गौरवशाली पलों को एक्सप्लोर किया जाए, उन पर वेब-सीरीज बनें, फिल्में बनें और असल लोकशनों पर उनकी शूटिंग की इजाजत मिले तो इस बात की खूब गुंजाइश है कि दोनों मुल्कों के बीच तनाव को कम करने में मदद मिल सके।