कानपुर में वाल्मीकि जयंती के मौके पर 76 जोड़ों ने एक साथ जीने मरने की कसम खाई। समारोह में दुल्हन के लिबास में सजी खलवा मिल निवासी कीर्ति साहू के चेहरे पर जीवन की नई पारी शुरू होने की खुशियां तो थी, लेकिन कहीं न कहीं सपने पूरे न हो पाने की एक टीस भी दिख रही थी। दरअसल कीर्ति डॉक्टर बनना चाहती थी, कोचिंग की तैयारी भी कर रही थी। लेकिन माता-पिता की असमय मौत व अन्य पारिवारिक मजबूरी के बाद वह कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाई। कीर्ति के साथ ही समारोह में कई ऐसी युवतियां मौजूद थी, जो अपने जीवन में उड़ान तो भरना चाहती थीं, लेकिन किसी के माता या पिता की मौत के बाद पैसों के अभाव व परिवारीजनों पर निर्भर होने के बाद वह अपने मुकाम तक न पहुंच सकीं। सबसे पहले सामूहिक विवाह की 2 तस्वीरें देखिए… रोड एक्सीडेंट में हुई थी मैकेनिकल इंजीनियर पिता की मौत
कीर्ति ने बताया कि उसके होने वाले पति की कपड़े की शॉप है, उम्मीद जताई कि शादी के बाद ससुरालीजनों को पढ़ाई के लिए कहूंगी और दोबारा नीट की तैयारी करूंगी। कीर्ति साहू के मुताबिक उनके पिता शिव लाल साहू मैकेनिकल इंजीनियर थे व मां पुष्पा साहू हाउस वाइफ। कीर्ति के पिता की वर्ष 2013 में सड़क हादसे में मौत हो गई थी, उस समय उसकी उम्र करीब 10 साल की थी। 10 साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठने के बाद मां-बेटी का कोई सहारा नहीं बचा। चाचा राजेंद्र साहू के साथ रह कर उसने इंटर तक की पढ़ाई की। ​​कॉलेज जाने की थी तैयारी हार्ट अटैक से मां की मौत कीर्ति इंटर पास करने के बाद वह डॉक्टर बनने का सपना लेकर काकादेव स्थित कोचिंग एक कोचिंग संस्थान से नीट की तैयारी कर रही थी। जून 2023 में रिजल्ट आया, कीर्ति को नोएडा के एक कॉलेज में एडमिशन लेना था, लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। उसकी मां को हार्ट अटैक पड़ा और वह उसे इस दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई। छोटी सी उम्र में पिता को खोने के बाद मां की मौत से कीर्ति पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा, जिसमें उसके सपने भी चकनाचूर हो गए। कॉलेज में दाखिला न लेने का कारण पूछने पर उसने पारिवारिक मजबूरियों का हवाला देकर कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। कई बार कुरेदने पर रूंधे गले से बोली कि- बस इतना समझ लीजिए की बजट नहीं था। कीर्ति ने बताया कि चाचा ने उसकी शादी भरत नाम के युवक से तय की है, जिसकी कपड़े की शॉप है। ससुराल के बारे में बताया कि परिवार में सास-ससुर व जेठ-जेठानी है। कीर्ति उज्जवल भविष्य के सपने संजोए ससुराल जा रही है, उसने कहा कि वह ससुराल पहुंचकर पति व ससुरालीजनों को रजामंद कर दोबारा नीट की तैयारी करेगी। वकील बनना चाहती थी, पिता की मौत के बाद आंसुओं में बहीं ‘खुशियां’
कीर्ति की तरह ही पनकी गंगागंज निवासी खुशी कठेरिया की खुशियां भी पिता की मौत के बाद आंसुओं में बह गईं। खुशी कठेरिया के पिता दुखी लाल राजमिस्त्री थे, निर्माणाधीन मकान में काम के दौरान पिता छत से गिर कर चोटिल हो गए और कुछ समय बाद उनके सीने में कैंसर हो गया था। 7 भाई बहनों में सबसे छोटी खुशी वकील बनना चाहती थी। बड़े भाई सुनील ने बताया कि पिता को कैंसर होने के बाद उनका हैलट, मुंबई समेत अन्य अस्पतालों में इलाज चला। रिश्तेदारों व परिचतों से लाखों रुपए लेकर इलाज कराया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। पिता की मौत व कर्जा में डूबे सुनील के ऊपर परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई। सुनील ने बताया कि बहन वकील बनना चाहती थी, लेकिन बीमारी में सब कुछ खत्म हो गया, 9वीं कक्षा तक पढ़ाई के बाद पैसों के अभाव में उसकी पढ़ाई भी छूट गई। सुशील ने बताया कि बहन की शादी सिंकदरा निवासी अरविंद कुमार के साथ संपन्न हुई। चार बेटियों संग पांच बच्चों की जिम्मेदारी कैसे देती शिक्षा
नए जीवन में प्रवेश करने जा रही 19 साल की नीलम कुमारी के पिता श्री प्रसाद कि मौत 12 साल पहले हो गई थी। पिता की मौत के बाद चार बेटियों पूनम, नीलम, शीलम, मोहिनी व बेटे प्रभु की जिम्मेदारी मां ऊषा पर आ गई। ऊषा के मुताबिक पति की मौत के बाद कोई सहारा नहीं बचा, घरों में खाना बना कर बेटियों की परवरिश की। नीलम की पढ़ाई के बारे में पूछने पर ऊषा ने बताया कि 5वीं क्लास के बाद उसकी पढ़ाई आर्थिक तंगी के कारण छूट गई। आंखों में आंसू लिए बोली- बच्चों के पेट पालने के लाले थे, उनका पेट भरती या उन्हें पढ़ाती। ऊषा के आंखों में बेटी को पढ़ा न पाने का पछतावा साफ दिख रहा था, कहा कि नीलम पढ़ने में काफी होशियार थी। हर क्लास में उसके अच्छे अंक आते थे। नीलम का विवाह कन्नौज निवासी रवि के साथ तय हुआ है।

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