‘माउंट एल्ब्रुस यूरोप का सबसे ऊंचा पर्वत है। इस पहाड़ को कभी हिटलर की सेना ने भी पार कर रूस पर हमला करने की योजना बनाई थी, मगर यहां की कोल्ड वेव ने उनके भी कदम पीछे कर दिए थे। उस पहाड़ पर चढ़कर भारत का झंडा लहराने का एक अलग एहसास है। रूस की गवर्नमेंट ने मुझे एक मैडल भी इस अचीवमेंट के लिए दिया है, जो बाबा विश्वनाथ को समर्पित है।’ यह कहना है काशी की पर्वतारोही गुंजन अग्रवाल का। हमने पूछा- घर में आपको पहाड़ पर चढ़ने से कोई रोकता तो नहीं? आप 48 साल की हैं। गुंजन ने कहा – बस मेरे पति हर बार पूछ लेते हैं कि अब टास्क पूरा हो गया न। आगे कोई और टास्क तो नहीं? मगर फिर मैं प्रैक्टिस में लग जाती हूं, जिसमें मेरे फिटनेस कोच हीरा सिंह का योगदान रहता है। यह बातचीत उस बेकरी पर हो रही थी, जो गुंजन चलाती हैं। वह कस्टमर डील करने के लिए कुछ देर के लिए बातचीत को रोक देती हैं। फ्री होने के बाद वह हमारे साथ बैठीं। उन्होंने पर्वतारोही बनने की कहानी दैनिक भास्कर से साझा की… सवाल : माउंट क्लाइम्बिंग के लिए एल्ब्रुस को ही क्यों चुना?
गुंजन : माउंट एल्ब्रुस यूरोप का सबसे ऊंचा पर्वत है। इसकी ऊंचाई 5642 मीटर है। मैंने इस पहाड़ को सिर्फ किताबों में पढ़ा था। मैंने इस टारगेट के लिए हार्ड वर्कआउट शुरू किया। क्योंकि यह पहाड़ बहुत अलग है। इसका माैसम हर 5 मिनट में बदल जाता है। इसके एक तरफ ब्लैक सी और दूसरी तरफ कैस्पियन सी है। यहां अचानक तूफान आ जाते हैं। – 30 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है। माउंट एल्ब्रुस के लिए कहा जाता है कि इसको हिटलर की सेना क्रॉस नहीं कर पाई थी। इस तरह रूस पर आक्रमण टल गया था। हम बहुत प्लानिंग से इस माउंट पर गए और फतह भी किया। सवाल : क्या रूस सरकार ने इसके लिए आपको सम्मानित किया?
गुंजन : इस माउंट को फतह करने के बाद रूस की सरकार ने मुझे और हमारे दल के अन्य 8 लोगों को सम्मानित किया। सभी को सर्टिफिकेट और मेडल दिया। यह मेरा अब तक का सबसे बड़ा अचीवमेंट है। सवाल : आप बिजनेस करती आ रही हैं, पर्वतारोही कैसे बन गईं?
गुंजन : कोरोना काल में मुझे कोविड हुआ। उसके बाद डॉक्टर की सलाह पर मैं वर्क आउट और योगा करना शुरू किया। इसके लिए BLW के मैदान पर जाती थी। इस दौरान वहां के फुटबाल के असिस्टेंट कोच और फिटनेस कोच हीरा सिंह सर से मुलाकात हुई। उन्होंने मेरा वर्कआउट देखा तो मुझे पर्वतारोहण की तरफ जाने की सलाह दी। सवाल : कौन-कौन से पहाड़ पर आप गईं हैं? गुंजन : सबसे पहले कश्मीर में सोनमर्ग, फिर लद्दाख में कांग्यांसेन-2 पर 6250 मीटर तक चढ़ाई की। इसके बाद मैंने माउंट एल्ब्रुस पर चढ़ने की तैयारी शुरू की। 24 अगस्त को रूस पहुंची थी। यहां माउंट एल्ब्रुस के पास पहुंचकर वहां के सर्द वातावरण में रही। हमने 30 अगस्त की रात 12 बजे चढ़ाई शुरू की। सुबह 6.30 बजे माउंट एल्ब्रुस की चोटी पर पहुंचे। वहां भारत का तिरंगा लहरा दिया। हम वहां सिर्फ 5 मिनट रुके और वापस हो लिए। क्योंकि वहां का मौसम बहुत तेजी से बदल रहा था। हम सुबह 11 बजे नीचे वापस आ गए थे। सवाल : आपके घर में कौन-कौन हैं?
गुंजन : मेरे पति द्विव्य पुष्प अग्रवाल भदोही में कार्पेट एक्सपोर्टर हैं। मेरे 2 बच्चे हैं एक बेटा वकील है और बेटी वकालत कर रही है। इसके अलावा घर में सासु मां हैं। मैंने 18 साल तक फूलों का बिजनेस किया। फिर पिछले 5 सालों से बेकरी का बिजनेस देख रही हूं। सवाल : अब आगे क्या टारगेट है? गुंजन : वर्ल्ड में 7 समिट हैं, पर अपनी उम्र को देखते हुए मैंने 5 समिट पूरा करने के लक्ष्य बनाया है। 3 साल में 3 पूरे हो चुके हैं। अब दो और बाकी हैं। कोशिश यही है कि उन्हें भी पूरा कर लूं। गुंजन के फिटनेस कोच से भी हमने बात की… हीरा सिंह बोले – 48 की उम्र में वह बहुत एक्टिव हैं
BLW में असिस्टेंट फुटबाल और फिटनेस कोच हीरा सिंह ने कहा- गुंजन को जब मैंने पहली बार देखा तब उनके अंदर गजब का जुनून था। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप पर्वतारोही बनेगी, तब उन्होंने कई दिनों तक मुझसे इसकी बारीकियों को समझा। फिर हां कर दी। वह रोजाना सुबह 5 बजे ग्राउंड पर पहुंच जाती हैं। अपनी प्रैक्टिस जरूर करती हैं। उसके बाद उन्हें घर के काम और शाप भी देखनी होती है। 48 की एज में वो काफी एक्टिव और जोश से भरी हुई हैं।

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