बिल गेट्स, मार्क जकरबर्ग और इलॉन मस्क जैसे टेक्नोलॉजी की दुनिया के धनकुबेर मानव-इतिहास के सबसे अमीर लोगों में से ही नहीं हैं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से भी असाधारण रूप से शक्तिशाली हैं। लेकिन उनके द्वारा कमाए अपार धन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इन अरबपतियों को उद्यमी-प्रतिभा के रूप में देखा जाता है, जो कई तरह के विषयों पर रचनात्मकता, साहस, दूरदर्शिता और विशेषज्ञता के अनूठे स्तर का प्रदर्शन करते हैं। उनमें से कई कम्यु​निकेशंस के प्रमुख साधनों को नियंत्रित करते हैं- यानी, प्रमुख सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म। अमीर, तकनीकी रूप से कुशल और दुनिया को आसन्न आपदा से बचा सकने वाले इनोवेटर हमेशा से ही हमारी लोकप्रिय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहे हैं। कुछ व्यक्तियों के पास हमेशा दूसरों की तुलना में अधिक ताकत होगी, लेकिन कितनी ताकत को हम जरूरत से ज्यादा कहेंगे? एक समय था, जब सत्ता शारीरिक बल या सैन्य कौशल से जुड़ी थी, जबकि आज यह सामाजिक स्टेटस या प्रतिष्ठा में निहित है। आपका स्टेटस जितना ऊंचा होगा, आप उतनी ही आसानी से दूसरों को अपने पक्ष में कर सकते हैं। विभिन्न समाजों में स्टेटस के स्रोत बहुत भिन्न होते हैं और ये अमूमन असमान रूप से वितरित होते हैं। अमेरिका में औद्योगिक क्रांति के दौरान पैसे और संपत्ति से सामाजिक स्टेटस मजबूती से जुड़ गया था, लेकिन इसका नतीजा यह रहा कि आय और धन की विषमता आसमान छू गई। स्टेटस का यह ढांचा कई कारणों से समस्याएं पैदा करने वाला है। अव्वल तो स्टेटस कायम रखने के लिए निरंतर प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। आपके अच्छे स्टेटस का मतलब आपके पड़ोसी का कम स्टेटस होगा। वहीं स्टेटस के एक कठोर ढांचे का मतलब होगा कि उसमें कुछ लोग खुश होंगे, जबकि कई अन्य नाखुश और असंतुष्ट होंगे। क्या सोने की रोलेक्स घड़ियों पर एक मिलियन डॉलर खर्च करना बेहतर है या नए कौशल सीखने पर? यकीनन, दोनों का अपना महत्व है। लेकिन सोने की घड़ी में किया गया निवेश केवल यह संकेत देता है कि आप दूसरों की तुलना में अधिक अमीर हैं। इसके विपरीत, कौशल में निवेश आपकी मानव-पूंजी को बढ़ाता है और समाज में रचनात्मक योगदान देता है। विश्लेषक अक्सर पूछते हैं कि करोड़ों डॉलर वाले व्यक्ति को और करोड़ों डॉलर की जरूरत क्यों होती है? अगर आपके पास पहले ही 500 मिलियन डॉलर हैं, तो ऐसी बहुत कम चीजें हैं, जिन्हें आप खरीद नहीं सकते। फिर 1 बिलियन डॉलर की चाहत क्यों? ऐसा इसलिए, क्योंकि बिलियनेयर कहलाना सामाजिक स्टेटस की एक रैंक है। यहां खर्च करने की क्षमता मायने नहीं रखती, वह प्रतिष्ठा और ताकत मायने रखती है, जो दूसरों की तुलना में अधिक होती है। वेल्थ ही स्टेटस है के फलसफे के तहत तब धनी लोग और अधिक धन कमाने की पागल दौड़ में जुट जाते हैं। जरा सोचें : अभिव्यक्ति की आजादी पर किसके विचार अधिक महत्वपूर्ण हैं- किसी टेक-दिग्गज अरबपति के या किसी ऐसे दार्शनिक के, जो लंबे समय से इस मुद्दे से जूझ रहा है, और जिसके साक्ष्यों और तर्कों की योग्य-विशेषज्ञों द्वारा जांच की जाती है? एक्स पर लाखों लोगों ने इसके जवाब के रूप में टेक-दिग्गज को चुना है। अगर टेक-सेक्टर अर्थव्यवस्था के लिए इतना महत्वपूर्ण नहीं होता तो आज के टेक-दिग्गज इतने अमीर नहीं बन पाते। यह तथ्य कि गेट्स और मस्क पर कम टैक्स लगाया जाता है, उन्हें अधिक बुद्धिमान नहीं बनाता, लेकिन यह यकीनन उन्हें अधिक अमीर बनाता है, और इसी कारण वेल्थ ही स्टेटस है का विचार प्रभावी होता चला जाता है। बेशक, यह अरबपतियों की गलती नहीं है कि सरकारी नीतियां बड़े पैमाने पर असमानता को बढ़ावा दे रही हैं, लेकिन अगर वे बढ़ती असमानता से मिलने वाले स्टेटस का दुरुपयोग करते हैं, तो उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यह विशेष रूप से तब सच होता है, जब वे दूसरों की कीमत पर अपने आर्थिक हितों को बढ़ाने के लिए अपने स्टेटस का लाभ उठाते हैं, या उत्तेजक बयानबाजी करके पहले से ही विभाजित समाज को ध्रुवीकृत करते हैं। हमें उनके प्रभाव और ताकत को सीमित करने के अधिक मजबूत संस्थागत तरीके खोजना होंगे। लेकिन सबसे जरूरी चीज जो हम कर सकते हैं, वो यह है कि हम खुद से पूछें कि हमें किसको अधिक महत्व देना चाहिए? और हम उन लोगों के योगदान को कैसे पहचानें और सम्मानित करें, जिनके पास अपार दौलत से उत्पन्न सामाजिक स्टेटस नहीं है? सबसे जरूरी चीज जो हम कर सकते हैं, वो यह है कि खुद से पूछें हमें किसको अधिक महत्व देना चाहिए? और उन लोगों के योगदान को कैसे पहचानें और सम्मानित करें, जिनके पास अपार दौलत से उत्पन्न सामाजिक स्टेटस नहीं है?
(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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