मुंशी प्रेमचंद की कालजयी कहानी ‘पूस की रात’ अगर इस सदी भी लिखी जाती तो संभवतः उसका नाम ‘जेठ की दुपहरी’ होता। और उसका मुख्य पात्र एक गरीब और कर्ज में डूबे किसान ‘हल्कू’ की जगह किसी शहरी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता हुआ दूर-दराज के गांवों से आया कोई गरीब मजदूर होता। इस साल उत्तर और मध्य भारत के कई हिस्सों में उच्च तापमान देखा गया है। ऐसी भविष्यवाणी है कि आज से शुरू हो रहे जून में अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या सामान्य से दोगुनी होगी। हर गुजरते साल हम चरम मौसम की स्थिति का अनुभव कर रहे हैं, चाहे वह बारिश हो, सर्दी हो या गर्मी। इस साल पड़ रही भीषण गर्मी याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे गंभीर प्रभाव गरीब और निचले तबके के लोगों पर पड़ता है। लेकिन जब तक पर्यावरण पर उच्चस्तरीय वैश्विक चिंतन खत्म होगा, तब तक कई दशक निकले चुके होंगे। इस बीच बढ़ती गर्मी से अपने को कैसे बचाएं? सरकारी स्तर पर यानी राष्ट्रीय, राज्य सरकारों और नगर निगमों को अपने हीट एक्शन प्लान- जिन्हें कई शहरों और राज्यों में तैयार किया गया है- को तत्काल सक्रिय और लागू करने की आवश्यकता है। गर्म मौसम और तापमान वृद्धि के लिए नियमित अलर्ट प्रदान करना होगा। आश्रय-स्थलों को सक्रिय करने की जरूरत है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में गर्मी के तनाव से निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं तैयार की जानी चाहिए। नागरिक एजेंसियों को सार्वजनिक स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में पीने के पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत स्तर पर, लोगों को अपनी दैनिक गतिविधियों की योजना इस तरह बनाने की आवश्यकता है कि अपने को- कम से कम दिन के चरम पर- सीधे सूर्य के संपर्क में आने से बचाएं। लोगों को नियमित रूप से यानी हर 30 मिनट के अंतराल पर पानी पीते रहना चाहिए, चाहे प्यास लगी हो या नहीं। पर्यटकों और यात्रियों- विशेषकर अपेक्षाकृत ठंडे स्थानों से गर्म स्थानों की ओर यात्रा करने वालों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। गर्मियों के दौरान चाय, कॉफी और अन्य कैफीनयुक्त उत्पादों का सेवन कम करना चाहिए। एनर्जी ड्रिंक से सख्ती से बचना चाहिए, क्योंकि इनमें कैफीन और अतिरिक्त चीनी की मात्रा अधिक होती है। इसके परिणामस्वरूप मूत्र में वृद्धि होती है और शरीर से पानी की कमी हो जाती है। बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। कुछ सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। जैसे निर्माण स्थल मालिकों की जिम्मेदारी है कि वे श्रमिकों के लिए छायादार क्षेत्रों की व्यवस्था करें और पीने योग्य पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करें। उच्च तापमान में प्रमुख चुनौतियों में से एक भोजन के खराब होने की संभावना का होना है, खासतौर पर अगर उसे सही तापमान पर न रखा जाए तो। ऐसे मौसम में सबसे बड़ी चिंता गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारियों की होती है। ऐसे में जहां तक संभव हो, ताजा भोजन का प्रयोग करें। हालांकि, यदि भंडारण की आवश्यकता हो, तो इसे तुरंत फ्रिज में संग्रहीत किया जाना चाहिए। सड़क पर या खुले में बिकने वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। शहरी आवास विभागों को अतिरिक्त समाधानों पर भी विचार करने की आवश्यकता है जैसे अधिक पेड़ लगाना, छायादार सार्वजनिक स्थानों, निःशुल्क पेयजल आदि की व्यवस्था करना। कुछ शहरों में, अध्ययनों से संकेत मिला है कि गरीब लोगों के घरों की छतों को रिफ्लेक्टिव पेंट से रंगने से घर के अंदर का तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है। ऐसे नवाचारों का अध्ययन और विस्तार किया जाना चाहिए। बढ़ता तापमान एक स्वास्थ्यगत मुद्दा होने के साथ ही सामाजिक-आर्थिक मुद्दा भी है, जो गरीब लोगों के लिए वेतन हानि और असुविधा का कारण बनता है। इसलिए चरम मौसम के चलते जो लोग काम करने का अवसर चूक जाते हैं, उनके लिए वित्तीय भत्ते के प्रावधान पर विचार करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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