इस समय हम जिस युग में जी रहे हैं, वह विरोधाभास, विडंबना और विपरीत का समय है। ऐसे में विवेक हमारी पूंजी होना चाहिए। आज जब हम गणेश जी के आह्वान के साथ उनका स्मरण करें तो एक स्थिति से गुजरें और एक आंकड़े को पकड़ें, डिजिटल मीडिया पर 70% लोग इंफ्लुएंसर्स के प्रभाव में हैं। ये लोग प्रभावित करते हैं कि आपको क्या खरीदना चाहिए और कैसे जीना है। आसे में अगर हमारा विवेक नहीं जागा तो आप भटक जाएंगे। सरस्वती बुद्धि की देवी हैं और गणेश जी विवेक के देवता हैं। तो जब भी गणेश जी के दर्शन करें, तो जल्दबाजी बिल्कुल न करें। थोड़ी देर रुकें और प्रभु के पूरे स्वरूप को आंख बंद करके अपनी भीतर उतारें। यदि बहुत देर तक प्रतिमा के सामने खड़े रहने का मौका न मिले तो नेत्र बंद करके उसी छवि को देखें। अव्यक्त परब्रह्म का सबसे प्रथम व्यक्त रूप ओंकार हैं तथा ओंकार का ही मूर्तिमंत रूप श्री गणेश हैं। गणेश स्थापना अपने भीतर भी की जाए। और पूरी तरह से विचार शून्य होकर विवेक जागृत करते हुए गणपति जी का प्रसाद लिया जाए।

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