एक जीवंत लोकतंत्र को मजबूत विपक्ष की जरूरत होती है। लेकिन उसे ऐसे विपक्ष की जरूरत नहीं है, जो सरकार के हर फैसले का विरोध करे। ये सच है कि आलोचना लोकतंत्र की जीवन-रेखा है और सरकारों को जवाबदेह होना चाहिए। लेकिन अगर विपक्षी नेता बिना सोचे-समझे फैसलों की निंदा करते हैं, तो उनकी खुद की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है। यहां कुछ सबक दिए जा रहे हैं, जो विपक्षी नेताओं को भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सीखने चाहिए। पहला सबक : मुद्दों की पहचान करें और समाधान सुझाएं। वक्फ (संशोधन) विधेयक का उदाहरण लें, जिसकी वर्तमान में जेपीसी द्वारा समीक्षा की जा रही है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड द्वारा किसानों के जमीन अधिग्रहण पर जारी किए नोटिस को तुरंत वापस लेने का फैसला दिखाता है कि यह मुद्दा राजनीतिक रूप से कितना संवेदनशील है। वक्फ अपने में कानून है। उसके फैसले के खिलाफ अदालत में अपील नहीं की जा सकती। लेकिन अगर जेपीसी में विपक्षी दल वक्फ का समर्थन करते हैं, तो वे न केवल किसानों बल्कि अन्य छोटे भूस्वामियों के साथ अपनी चुनावी संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचाएंगे। दूसरा सबक : जब सरकार एलएसी पर चीन के साथ कोई महत्वपूर्ण समझौता करती है तो सेंटीमीटर और मिलीमीटर की बढ़त या नुकसान के बारे में बहस न करें। यह सफलता महीनों और वर्षों की कठिन कूटनीतिक बातचीत और चुनौतीपूर्ण माहौल में एलएसी पर सख्त सैन्य रुख बनाए रखने के बाद मिली है। जहां प्रशंसा की जानी चाहिए, वहां प्रशंसा करें। तीसरा सबक : विदेश यात्रा के दौरान कभी भी विदेशी दर्शकों के सामने भारत का अपमान न करें। लोकतंत्र में कोई गंभीर विपक्षी नेता ऐसा नहीं करता। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस नियम को बार-बार तोड़ा है। इसने उन्हें ही कमजोर किया है, देश को नहीं। चौथा सबक : विशिष्ट मुद्दों से निपटने के लिए श्वेत पत्र जारी करें, जिसमें प्रमुख क्षेत्रों पर विशेषज्ञों की राय शामिल हो। कांग्रेस को विपक्षी नेताओं के साथ मिलकर अनौपचारिक शैडो-कैबिनेट बनानी चाहिए, जिसमें विपक्षी नेताओं को उनकी विशेषज्ञता के दायरे में आने वाले क्षेत्रों पर नीतियां बनाने का काम सौंपा जाए। उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत कर सुधारों पर पी. चिदम्बरम और कनाडा के साथ विवाद पर शशि थरूर। इससे सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बजाय रचनात्मक संबंध बनेगा। पांचवां सबक : चिकित्सा, कानून और उद्योग जैसे व्यवसायों के विपरीत, राजनेताओं का दायित्व है कि वे किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं के लिए उपलब्ध उम्मीदवारों की पसंद को व्यापक बनाएं। वायनाड में चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने वंशवाद की राजनीति का बचाव किया। उन्होंने कहा कि मतदाता राजनीतिक वंशों के लिए वोट करते हैं। जबकि लोकतंत्र में नेताओं का कर्तव्य प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को बढ़ावा देना होता है। मतदाताओं के लिए उपलब्ध विकल्प को एक ही परिवार के सदस्य तक सीमित करके मतदाताओं को सबसे सक्षम उम्मीदवारों को चुनने से वंचित किया जा रहा है। राजनीतिक वंशवाद की तुलना व्यवसाय से लेकर फिल्मों तक में वंशवाद से करना मतदाताओं को गुमराह करना है। छठा सबक : रोजगार प्रदान करने वाले और धन का सृजन करने वाले उद्योगपतियों का अपमान करना अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है। वे अर्थव्यवस्था का विस्तार करते हैं और कंस्ट्रक्शन, कारखानों और लॉजिस्टिक्स में श्रमिकों को काम प्रदान करते हैं। अदाणी पर प्रहार करके राहुल गांधी एक ऐसे उद्योगपति का अपमान करते हैं, जिन्होंने साधारण स्तर से शुरुआत करके 40 से अधिक वर्षों में यह मुकाम पाया है। सातवां सबक : विपक्षी नेताओं को राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए, भले इसके लिए सरकार से सहमत होना पड़े। कनाडा से विवाद पर विपक्षी नेताओं को जस्टिन ट्रूडो से सवाल करना चाहिए था। उन्हें पन्नू की भी सार्वजनिक निंदा करनी चाहिए थी। इसके बजाय विपक्ष ने एक उदासीन चुप्पी बनाए रखी। आठवां सबक : कांग्रेस को हरियाणा में पार्टी की अप्रत्याशित हार के कारणों की जांच करनी चाहिए। जाहिर है कि उसने 2024 के लोकसभा चुनाव में जीती गई 99 सीटों के नतीजों को गलत पढ़ा। इनमें से 56 सीटें इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के कारण उसे मिली थीं। जहां कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था, वहां कांग्रेस को केवल 43 सीटें मिलीं, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली सीटों से एक कम है। ये सच है कि आलोचना लोकतंत्र की जीवन-रेखा है और सरकारों को जवाबदेह होना चाहिए। लेकिन अगर विपक्षी नेता बिना सोचे-समझे फैसलों की निंदा करते हैं, तो उनकी खुद की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)