बरेली-पीलीभीत-सितारगंज हाईवे 4-लेन बनाने की तैयारी चल रही है। लखनऊ के हिमांशु सिंह और उनकी पत्नी साधना सिंह 260 किलोमीटर दूर पीलीभीत आते हैं। दोनों फैक्ट्री लगाने के नाम पर किसानों की जमीन 30 लाख रुपए में खरीदते हैं। सिर्फ दीवार खड़ी करके टीन शेड डालते हैं। फिर सरकार से जमीन और गोदाम का 11.82 करोड़ रुपए मुआवजा लेकर फरार हो जाते हैं। मुआवजा इंडस्ट्री से करोड़ों कमाने वाले हिमांशु और साधना इकलौते नहीं हैं। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) के अफसरों, पीडब्ल्यूडी और जिले के अफसरों की मिलीभगत से यूपी, दिल्ली और उत्तराखंड के 22 लोगों ने कौड़ियों के दाम जमीन खरीदकर 51 करोड़ रुपए कमाए। यूपी की इस मुआवजा इंडस्ट्री के नेक्सस तक पहुंचने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने 7 दिन तक बरेली, पीलीभीत और शाहजहांपुर में इंवेस्टिगेशन किया। दैनिक भास्कर ने पहले और बाद की सैटेलाइट इमेज और ड्रोन सर्वे का वीडियो तलाशे। इनमें साफ दिख रहा है कि जहां 2021 में खेती हो रही थी, वहां पुराने निर्माण दिखाए गए हैं। भूमाफिया ने अधिकारियों की मिलीभगत से इन कंस्ट्रक्शन के निर्माण की अवधि 2 से लेकर 7 साल तक दिखा दी है, जबकि जमीन एक से डेढ़ साल के अंदर खरीदी गई थी। इस नेक्सस ने सिर्फ बरेली-सितारगंज हाईवे ही नहीं, शाहजहांपुर-बीसलपुर हाईवे और बरेली रिंग रोड पर भी ऐसे ही घोटाला किया है। तीनों जगहों पर 80 करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला है। पढ़िए यूपी में मुआवजे की इंडस्ट्री की सिलसिलेवार कहानी… स्कूल और फैक्ट्री के नाम पर किसानों से जमीनें खरीदीं, नौकरी का वादा किया, लेकिन मुआवजा लेकर भाग गए
हमारी इंवेस्टिगेशन में निकल कर आया कि सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा बरेली-सितारगंज हाईवे पर पीलीभीत की अमरिया तहसील में किया गया। हम अमरिया तहसील के हुसैननगर गांव पहुंचे। पीलीभीत से करीब 20 किमी दूर सितारगंज रोड पर यह गांव है। 300 मीटर चलते ही हमें एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन दिखता है, जो पूरी तरह टीन शेड का है। यह टीन शेड बिल्कुल उसी चौड़ाई में है, जहां से बरेली-सितारगंज हाईवे निकलना है। जब हम खेतों से होते हुए कंस्ट्रक्शन की दूसरी तरफ गए तो एक खेत छोड़कर आगे एक कंस्ट्रक्शन मलबे में तब्दील दिखा। आगे एक और टीन का कंस्ट्रक्शन दिखाई दिया। यहां पता चला कि गांव के किसानों (गाटा संख्या 145 और 146) से अलग-अलग रजिस्ट्री साधना सिंह और उनके पति हिमांशु सिंह के नाम पर की गई है। जब पति के नाम पर रजिस्ट्री होती है तो गवाह पत्नी और तौफीक अहमद होते हैं। पत्नी की रजिस्ट्री होती है तो गवाह पति और तौफीक अहमद ही होते हैं। इन जमीनों पर कंस्ट्रक्शन काे कॉमर्शियल दिखा कर साधना सिंह ने 4 करोड़ 62 लाख 6 हजार 855 रुपए मुआवजा लिया। हिमांशु सिंह ने 7 करोड़ 19 लाख 21 हजार 59 रुपए का मुआवजा लिया। पति-पत्नी ने सिर्फ एक ही गांव की जमीन से 11 करोड़ 81 लाख 27 हजार 914 रुपए का मुआवजा उठा लिया। हमने जमीन के सौदे के दस्तावेज जुटाए, जिसमें हिमांशु सिंह ने 0.210 हेक्टेयर जमीन साढ़े 10 लाख में खरीदी थी। इसका बाजार रेट 9 लाख 3 हजार था। यह जमीन साबरा बेगम, ताहिरा बेगम और बतूलन से खरीदी गई थी। साधना सिंह ने 20 लाख रुपए में जमीन खरीदी थी, जबकि बाजार रेट 19 लाख 20 हजार था। दोनों जमीनें 7 फरवरी, 2022 को खरीदी गईं। जिनसे जमीन खरीदी गई थी, उन्होंने कहा कि हमसे जमीन फैक्ट्री लगाने के नाम पर ली गई थी। नौकरी देने की बात कही गई थी। हुसैननगर से निकलकर हम सदर तहसील के गांव उगनपुर पहुंचे। यहां हाईवे के लिए जमीन समतल की जा रही थी। पता चला, बरेली के रामेश्वर दयाल ने यह जमीन (गाटा संख्या 78) स्थानीय किसान शमशुद्दीन से खरीदी है। शमशुद्दीन के बेटे आशिक ने बताया- रामेश्वर दयाल कुछ लोकल लोगों के साथ हमारे पिता के पास आए थे। उन्होंने स्कूल बनाने के नाम पर पिता के साथ हमारे परिवार के दूसरे लोगों से भी तीन जमीनें आसपास की खरीदी हैं। यहां पर रामेश्वर दयाल ने एक बिल्डिंग का निर्माण करवाया और परिवार को नौकरी देने की बात कही। जमीन के पास एक मंदिर भी है। पुजारी नटोरी लाल ने कहा कि जब रामेश्वर दयाल यहां आए तो हमसे कहा था कि यहां स्कूल बनाना है। हम आपको मंदिर के लिए 25 हजार रुपए भी देंगे, लेकिन पांच रुपए भी नहीं दिए। बल्कि जो बनाया था, उसे तुड़वा कर मलबा उठाकर चले गए। हमारी पड़ताल में सामने आया कि ये तीनों जमीनें रामेश्वर दयाल ने 29 लाख 75 हजार में खरीदीं, जबकि उसे इनके बदले 6 करोड़ 82 लाख 2 हजार 893 रुपए का मुआवजा दिया गया। कुछ इसी तरह रामपुर के धर्मवीर मित्तल, दिल्ली के सुनील नोसरिया, उद्यमसिंह नगर के रमन फुटेला, नवीन खेड़ा समेत 22 लोगों ने पीलीभीत पहुंचकर जमीनें खरीदीं और अस्थायी कंस्ट्रक्शन करके करोड़ों का मुआवजा लिया। बरेली रिंग रोड और शाहजहांपुर-हरदोई हाईवे पर भी किया खेल
पीलीभीत में पड़ताल करने के बाद हम शाहजहांपुर-हरदोई हाईवे पहुंचे। यहां हमें पता चला कि यह हाईवे पीलीभीत की तहसील बीसलपुर के गांव महावा और ग्यासपुर से गुजर रहा है। इसकी जानकारी भूमाफिया को पहल हो गई थी। इसलिए यहां भी खेतों के बीच जमीनें खरीद लीं। हम बीसलपुर पहुंचे, तो वहां महावा गांव में हमें खेतों के बीच एक के बाद एक 6 अस्थाई निर्माण मिले। यहां सब गोदाम बने हुए हैं, लेकिन न कोई रहता है न ही कोई यहां देखभाल के लिए है। इस गांव के गाटा संख्या 87 में नवीन खेड़ा और रामेश्वर दयाल ने जमीन खरीदी है। ग्यासपुर गांव में ही हिमांशु सिंह और उनकी पत्नी साधना सिंह ने नाम जमीन है। इन चारों ने बरेली-पीलीभीत और सितारगंज हाईवे में मुआवजा लिया है। इसके अलावा बरेली रिंग रोड पर रामपुर के धर्मवीर मित्तल समेत उधमसिंह नगर के राजेंद्र प्रसाद बंसल और दिल्ली के सुनील नोसारिया ने उमरसिया गांव ( गाटा संख्या-437) में खरीदी है। ये तीनों वही लोग हैं, जिन्होंने बरेली-सितारगंज रोड पर अमरिया में जमीनें खरीदी हैं। दो स्तर पर भूमाफिया के नेक्सस ने काम कर कमाए करोड़ों
एनएचएआई कोई हाईवे बनाने की योजना बनाता है तो उसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) तैयार कराता है। यह थर्ड पार्टी तैयार करती है। माना जा रहा है कि यहां से भी भूमाफिया को जानकारी लीक हुई। इसके बाद जो गांव रास्ते में आते हैं। उनके लिए राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956 के तहत 3 (A) के तहत राजस्व गांवों का गजट नोटिफिकेशन जारी किया जाता है। इसी के साथ एक संबंधित जिले में स्पेशल लैंड एक्यूजीशन ऑफिसर नियुक्त किया जाता है, जो एनएचएआई और संबंधित जिला प्रशासन के बीच एक तरह से नोडल अफसर होता है। इसके बाद धारा-3 (A) के तहत भू अधिग्रहण की जानकारी, जैसे गाटा संख्या और अर्जित रकबा का गजट नोटिफिकेशन होता है। इसका प्रकाशन दो दैनिक समाचार पत्रों में किया जाता है। जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लग जाती है और लैंड यूज नहीं बदला जा सकता। पहला: हमारी पड़ताल में निकल कर आया कि बाहर से आए भूमाफिया का एनएचएआई हेडक्वार्टर में तगड़ा नेक्सस है। 2020 में बरेली से पीलीभीत होते हुए उत्तराखंड के सितारगंज तक तकरीबन 70 किमी तक फोन लेन नेशनल हाईवे को मंजूरी मिली थी। जब डीपीआर बना, तब माफिया ने पता कर लिया कि हाईवे किन गांवों और किस गाटा संख्या से गुजरेगा। इन लोगों ने किसानों से फैक्ट्री, स्कूल और गोदाम के नाम पर बाजार रेट से थोड़े ज्यादा रुपए देकर जमीनें खरीद लीं। जब जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लग गई, उसके बाद भी तहसील के अफसरों से मिलकर रजिस्ट्री होती रही। दूसरा: भूमाफिया को यह पता था कि हमारा कंस्ट्रक्शन अस्थाई है। राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम में एक नियम है कि यदि कंस्ट्रक्शन मूवेबल है, तो उसका कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। यही वजह है कि उन्होंने संबंधित जिले के स्पेशल लैंड एक्यूजीशन ऑफिसर (भू अधिग्रहण अधिकारी) से सेटिंग की। मूल्यांकन के लिए पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को रिश्वत दी। अफसरों ने अस्थाई निर्माण को स्थाई निर्माण (कॉमर्शियल कंस्ट्रक्शन) बताते हुए उसका ज्यादा मूल्यांकन किया, जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुआवजा मिला। मुआवजा 2023 से 2024 तक बंटा। क्या भूमाफिया आपस में जुड़े हुए हैं?
हमारे हाथ उन जमीनों की रजिस्ट्री के कागज हाथ लगे। इनमें कुछ नाम ऐसे हैं, जो एक-दूसरे की जमीन की खरीदारी में गवाह हैं। इसके दो मामले देखिए… पहला मामला: अमरिया गांव में जमीन खरीदने वाले धर्मवीर मित्तल सरदार नगर गांव में जमीन मालिक मनीषा सिंघल की तरफ से गवाह बने। धर्मवीर मित्तल का पता दस्तावेज में बिलासपुर, रामपुर दर्ज है। मनीषा सिंघल का पता वार्ड संख्या-7, उधमसिंह नगर दर्ज है। इसी तरह रमेश चंद्र गुप्ता, धर्मवीर मित्तल और मनीषा सिंघल की जमीन खरीदी में गवाही दी। दूसरा मामला: पीलीभीत के उगनपुर गांव में गाटा संख्या 78 की जमीन तीन हिस्से में बरेली के रामेश्वर दयाल ने खरीदी। जबकि शमशुद्दीन से खरीदी गई जमीन में रामेश्वर दयाल की तरफ से गवाही रमेश चंद्र गुप्ता ने दी। यह वही रमेश चंद्र गुप्ता हैं, जो धर्मवीर मित्तल और मनीषा सिंघल की ओर से गवाही दे चुके हैं। अब जानिए फर्जीवाड़े का पता कैसे चला?
दरअसल, जून में बरेली के रीजनल ऑफिस में एनएचएआई के नए प्रोजेक्ट डायरेक्टर प्रशांत दुबे ट्रांसफर होकर आए। उन्होंने निर्माणाधीन हाईवे का जब निरीक्षण किया तो इस मामले में कुछ गड़बड़ लगी। इसके बाद उन्होंने हर जगह अपने स्तर पर जांच की, तो यह मामला खुलकर सामने आया। इसके बाद उन्होंने अधिकारियों को पत्र लिखकर घोटाले के बारे में बताया। इस मामले में किसानों से जमीन खरीदने वाले रामपुर निवासी धर्मवीर मित्तल कहते हैं- ब्रोकर हमें जमीन बताते हैं कि यहां पर फायदा होगा, तब हम जमीन खरीदते हैं। कोई भी कहीं जमीन खरीद सकता है। वहीं जमीन ली जाती है, जहां फायदे की संभावना होती है। कमिश्नर की जांच में दोषी पाए गए 22 अफसर
एनएचएआई के तत्कालीन परियोजना निदेशक एआर चित्रांशी, बीपी पाठक, संयुक्त सर्वे रिपोर्ट और संयुक्त मूल्यांकन आख्या के लिए एनएचएआई के साइट इंजीनियर पीयूष जैन और पारस त्यागी, एनएचएआई की नामित एजेंसी साईं सिस्ट्रा ग्रुप जिला प्रतिनिधि उजैर अख्तर, एसए इन्फ्रा स्ट्रक्चर कंसलटेंसी लि. के जिला प्रतिनिधि राजीव कुमार और सुनील कुमार, सर्वेइंग सिस्टम के शिवम (साईं सिस्ट्रा ग्रुप द्वारा अनुबंधित), वैल्यूअर रविंद्र गंगवार और सुरेश कुमार गर्ग साथ ही तत्कालीन क्षेत्रीय लेखपाल ग्राम उगनपुर, मुकेश कुमार मिश्रा, क्षेत्रीय लेखपाल ग्राम अमरिया, विनय कुमार और दिनेश चंद्र, क्षेत्रीय लेखपाल ग्राम हुसैन नगर व सरदार नगर, आलोक कुमार, क्षेत्रीय लेखपाल विलहरा माफी एवं मुडलिया गोसू, मुकेश गंगवार, क्षेत्रीय लेखपाल ग्राम हेतमडांडी, तेजपाल, क्षेत्रीय लेखपाल ग्राम भैसहा, ज्ञानदीप गंगवार और संबंधित विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी कार्यालय के तत्कालीन भूमि अर्जन अमीन अनुज वर्मा दोषी पाए गए हैं। अनुज वर्मा 28 जनवरी 2019 से 26 अक्टूबर 2023 के बीच तैनात थे। इसके अलावा जांच समिति को पता चला कि सक्षम प्राधिकारी भूमि अध्याप्ति, बरेली एवं परियोजना निदेशक एनएचएआई बरेली के कार्यालय ने 3A प्रकाशन की सूचना तहसील स्तर पर नहीं दी। इसमें सक्षम प्राधिकारी भूमि अध्याप्ति सुल्तान अशरफ सिद्दीकी, मदन कुमार, राजीव पांडेय और आशीष कुमार की भूमिका संदिग्ध पाई गई। ये भी पढ़ें… अयोध्या गैंगरेप, सपा नेता मोईद के नौकर से DNA मैच, हाईकोर्ट में सीलबंद लिफाफे में पेश की गई रिपोर्ट अयोध्या गैंगरेप मामले में सपा नेता मोईद खान के नौकर राजू की DNA रिपोर्ट पीड़िता से मैच हो गई है। इसकी पुष्टि अपर महाधिवक्ता विनोद शाही ने दैनिक भास्कर से की है। उन्होंने यह भी बताया कि मोईद खान का DNA मैच नहीं हुआ है। दरअसल, 12 साल की बच्ची से गैंगरेप मामले में सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सुनवाई हुई। आरोपी सपा नेता मोईद खान, उसके नौकर राजू की DNA रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश की गई। पढ़ें पूरी खबर…