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वाराणसी हत्याकांड-कारोबारी ने भाई को सोते वक्त मारी थी गोली:27 साल बाद बदला, भतीजे ने वैसे ही पूरे परिवार को मार डाला

वाराणसी में शराब कारोबारी के पूरे परिवार की हत्या ने 27 साल पुरानी हत्याओं के राज खोल दिए। जिस तरह से राजेंद्र ने अपने छोटे भाई कृष्णा को सोते हुए सिर में गोली मारी। ठीक वैसे ही उनकी और उनके परिवार की जान ली गई। कातिल ने सभी के सिर में गोली मारकर ही हत्या की। राजेंद्र गुप्ता पर 1997 में भाई-भाभी की हत्या का केस चला। फिर 6 महीने बाद ही पिता और 2 गार्ड की हत्या का केस भी कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा। पहले केस में पिता वादी थे, उनके कत्ल के बाद मां पैरवी करने लगीं। मगर ऐन वक्त पर मां शारदा देवी ने गवाही बदल दी। राजेंद्र गुप्ता को इसका फायदा मिला। 1-1 कर दोनों केस बंद हो गए। मगर बदले की जिस आग को राजेंद्र बुझा हुआ समझ रहे थे। वह कृष्णा के बड़े बेटे विशाल उर्फ विक्की के सीने में दहक रही थी। अब आरोप है कि 27 साल बाद उसने सोते हुए ही राजेंद्र और उनके पूरे परिवार का खात्मा शूटर्स की मदद से करवा दिया। अब 1997 में कारोबारी परिवार के बीच पड़ी दरार और फिर हत्याओं के दौर की पूरी कहानी पढ़िए… लक्ष्मीनारायण की दूसरी शादी से 2 बेटे हुए, राजेंद्र और कृष्णा
शहर में पुराने शराब कारोबारियों में शुमार पन्ना साव ने अपने बेटे लक्ष्मी नारायण गुप्ता को भेलूपुर के शिवाला पर रिक्शे का गैराज खुलवाया। शहर भर में किराए पर रिक्शा देने वाले लक्ष्मी अब लक्ष्मी रिक्शावाले के नाम से मशहूर हो गए। उन्होंने पहली पत्नी की मौत के बाद 1956 में दूसरी शादी की। लक्ष्मी की 2 संतान हुईं। नाम रखा राजेंद्र गुप्ता और कृष्णा गुप्ता। दोनों बड़े हुए तो लक्ष्मी नारायण उन्हें व्यापार में शामिल करने लगे। इस दौरान लक्ष्मी ने शहर में कई मकान खरीद लिए, जिन्हें किराए पर दे दिया। 1988 में राजेंद्र की पहली शादी हुई और फिर 1989 में बेटा नवनेंद्र हुआ। 1990 में लक्ष्मी ने अपने दूसरे बेटे कृष्णा की शादी बबिता गुप्ता से की, जिसके बाद बेटी डॉली हुई। इसके बाद कृष्णा के घर 2 और बेटों का जन्म हुआ। बड़े बेटे का नाम विशाल उर्फ विक्की और छोटे बेटे का नाम प्रशांत उर्फ जुगनू रखा गया। परिवार और कारोबार बढ़ता गया, तो राजेंद्र और कृष्णा के बीच व्यवसाय की हिस्सेदारी को लेकर विवाद शुरू हो गए। कृष्णा को संपत्ति और रुपए देने पर पिता को धमकाता था राजेंद्र
राजेंद्र गुप्ता अपने पिता के पूरे कारोबार को अपने तरीके से चलाना चाहता था। उसने रिक्शा गैराज पर पहले मनमानी शुरू की। तब पिता ने कारोबार का जिम्मा कृष्णा को दे दिया। अब कृष्णा ही किराया वसूली और रुपयों का हिसाब-किताब रखता था और पिता से पूछकर ही राजेंद्र को पैसे देता था। राजेंद्र को भाई से रुपए मांगने में परेशानी होने लगी तो उसने पिता से झगड़ा कर लिया। कहा कि वह हिसाब खुद संभालेगा और पूरा कारोबार उसके हिसाब से चलेगा। बड़ा बेटा होने के नाते इस संपत्ति का वही मालिक है, अगर ऐसा नहीं होगा तो इसे संभालने वाला कोई दूसरा नहीं होगा। पिता ने उसकी बात को नजर अंदाज किया, लेकिन फिर कुछ दिन बाद नए साल पर उसने फिर धमकी दी। कहा कि अगर मेरे नाम संपत्ति और कारोबार नहीं किया तो छह महीने में तुम लोगों में से कोई नहीं बचेगा। कई बार ऐसी ही धमकी देता रहता था। कृष्णा ने गुस्से में राजेंद्र को पीटा, यहीं से बदले की कहानी शुरू हुई
पहला विवाद 1 जनवरी, 1997 को हुआ, जिसमें राजेंद्र और कृष्णा के बीच मारपीट तक हो गई। कुछ दिन बाद हुए झगड़े में कृष्णा ने राजेंद्र को पीट दिया। छोटे भाई से पिटाई के बाद बौखलाए राजेंद्र ने 6 महीने में ही उनको मार देने की धमकी दे दी। हालांकि, उस वक्त परिजनों और रिश्तेदारों की मध्यस्थता के बाद मामला शांत हो गया। बस, इसी विवाद के बाद राजेंद्र के अंदर बदला लेने की आग धधकने लगी। उसने छोटे भाई कृष्णा को परिवार समेत मिटाने की ठान ली। 10 जून, 1997: कृष्णा और बबिता की हत्या, जुगनू को लगी दो गोलियां
लक्ष्मी नारायण गुप्ता के घर में हत्याकांड की शुरुआत साल 1997 में हुई। राजेंद्र ने छोटे भाई कृष्णा गुप्ता और उनकी पत्नी बबिता की हत्या का मन बना लिया और फिर योजना तैयार की। पुलिस रिकॉर्ड में जो FIR लिखी गई, उसके मुताबिक 10 जून, 1997 को भदैनी स्थित पुश्तैनी मकान में पूरा परिवार सो रहा था। राजेंद्र अपने कमरे से निकला और छत पर पहुंचा। उसने घर में एक देसी पिस्टल रखी हुई थी। जिसे लेकर कृष्णा के कमरे की ओर गया। कमरे का मेन गेट खुला था और अंदर कृष्णा, उसकी पत्नी बबिता अपने बेटे जुगनू के साथ सो रहे थे। दरवाजा खोलते ही राजेंद्र ने सबसे पहले कृष्णा पर गोली चलाई और सिर में पहली गोली मारी। इसके बाद दूसरी गोली सीने पर लगी। आवाज सुनकर जागी बबिता पर दो गोलियां चलाई। पहली गर्दन में दूसरी सीने से फिसलकर पास में लेटे जुगनू को लगी। इसके बाद भी एक गोली जुगनू को मारी। चीख-पुकार के बाद घर की लाइटें जल गईं। राजेंद्र उस वक्त घर से भाग निकला था। पिता ने बुलाई पुलिस, दूसरे मकान से पकड़ा गया राजेंद्र
गोली की आवाज सुनकर मकान के ग्राउंड फ्लोर पर लेटे लक्ष्मीनारायण और शारदा देवी ऊपर भागे तो कमरे में खून से लथपथ लाशें पड़ी देखीं। तीन साल का जुगनू खून से लथपथ रो रहा था। आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने कृष्णा और बबिता को मृत बता दिया। जबकि जुगनू की जान ऑपरेशन से बच पाई। उसकी बॉडी से 2 गोलियां निकाली गईं। पिता ने केस दर्ज कराया, राजेंद्र 6 महीने जेल में रहा
वारदात को अंजाम देकर राजेंद्र शिवाला इलाके के दूसरे मकान में चला गया, जहां से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट में पेशी के बाद उसे जेल भेज दिया गया। कृष्णा की हत्या के बाद पिता लक्ष्मी नारायण ने भेलूपुर थाने में राजेंद्र के खिलाफ केस दर्ज कराया था। इसके बाद 6 महीने तक राजेंद्र जेल में रहा और बाद में जमानत पर छूट कर आया। राजेंद्र ने पुलिस के सामने ही पिता को धमकाया
राजेंद्र गुप्ता से परिवार डरा-सहमा रहता था। जब राजेंद्र जेल गया तो पुलिस के सामने ही पिता को धमकाया, कहा- हम जेल से आएंगे और तुम ऊपर जाओगे। फिर जेल और पेशी पर मां मिली तो पिता को मारने की धमकी दी। हर बार कहता कि लक्ष्मीनारायण को कोई बचा नहीं पाएगा। 5 दिसंबर, 1997: गार्ड समेत पिता की हत्या कर दी
राजेंद्र की धमकी के बाद पिता ने गैराज और अपनी सुरक्षा के लिए गार्ड रखे थे। राजेंद्र को नवंबर, 1997 में जमानत मिली तो उसने पिता के सामने आना बंद कर दिया। उसने अपना सामान भदैनी की जगह शिवाला वाले पैतृक आवास पर शिफ्ट किया। वहीं रहने लगा। जमानत के बाद राजेंद्र अपनी मां को धमकाने लगा कि पिता को मार देंगे। राजेंद्र को शिवाला गैराज पर आने से रोक थी, लेकिन फिर भी वह 5 दिसंबर, 1997 को पहुंच गया। हाथ में पिस्टल लेकर पहुंचे राजेंद्र ने पिता को आवाज देकर बुलाया और फिर पिस्टल तानकर गोलियां चला दीं। उन्हें बचाने में दो गार्ड भी गोलियों का शिकार हो गए। राजेंद्र ने तीनों को मौत के घाट उतार दिया। पिस्टल लेकर पहुंचे राजेंद्र ने 9 गोलियां चलाईं। किसी को तीन तो किसी को दो गोली लगीं। हालांकि, इस केस में भी पुलिस ने कुछ घंटों बाद राजेंद्र की गिरफ्तारी कर ली और उसे जेल भेज दिया। पिता की हत्या पर मां ने दर्ज कराई FIR
राजेंद्र ने जब 1997 में कृष्णा और उसकी पत्नी बबिता की हत्या की तो पिता ने पुलिस को बड़े बेटे के खिलाफ तहरीर दी। उन्होंने कहा कि राजेंद्र ने ही हत्या की और मां उसमें गवाह बनीं। मां-पिता बाद में अपने बेटे की हत्या में कई बार कोर्ट गए और चार महीने तक केस की पैरवी की। इसके बाद जब राजेंद्र ने पिता लक्ष्मी नारायण की हत्या की तो मां शारदा देवी ने बड़े बेटे राजेंद्र के खिलाफ केस दर्ज कराया। तब शारदा ने चीख-चीखकर कहा था कि हमने अपने ही परिवार के हत्यारे को जन्म दिया। वो जेल से बाहर निकला तो हमारा ही सुहाग खा गया। शारदा कोर्ट में बयान से मुकरी तो राजेंद्र को मिल गई जमानत
भदैनी में लक्ष्मीकांत का घर खून के रिश्तों के कत्ल और कब्रगाह जैसा हो गया। पहले कृष्णा और बबिता के बाद लक्ष्मी नारायण गुप्ता की हत्या के बाद सभी डरे सहमे रहते थे। जेल में कुछ रिश्तेदार मिलने गए तो राजेंद्र ने उनसे खुद को बचाने के लिए कहा। कृष्णा और बबिता हत्याकांड और लक्ष्मीनारायण की हत्या यानी दोनों केस में शारदा देवी की अहम भूमिका थी। रिश्तेदारों के समझाने पर पहले की तरह शारदा देवी केस में बयान से मुकर गईं और राजेंद्र को जमानत मिल गई। बाहर आने पर उसने कृष्णा के बेटों की परवरिश और पढ़ाई का खर्चा उठाने का वादा किया था। 1999 में राजेंद्र के केस में वादी के मुकरने और गवाह के बयान बदलने पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और राजेंद्र को बरी कर दिया। वहीं भाई के हत्याकांड में भी राजेंद्र को संदेह का लाभ मिल गया और दोनों केस बंद हो गए। व्यापार का मालिक बनने के बाद रौब गांठता था राजेंद्र
जुलाई, 1999 में राजेंद्र पैरोल पर छूटकर जेल से बाहर आया और उसने अपना ठिकाना शिवाला में बना लिया। शराब ठेका और प्रॉपर्टी के कारोबार पिता लक्ष्मी नारायण के मरने पर राजेंद्र ने संभाल लिया। जुगनू और विक्की भी अपनी हिस्सेदारी के आते थे, लेकिन बाद में उन्हें पढ़ने बाहर भेज दिया। राजेंद्र का परिवार उसके साथ रहता था, लेकिन जेल जाने के बाद पत्नी अपने मायके चली गई और फिर कई बार बुलाने पर नहीं आई। अब राजेंद्र अपनी मां के साथ रहता था और कर्मचारियों को रखकर काम करवाता था। पूरे कारोबार पर अपना वर्चस्व जमाने के बाद राजेंद्र रौब में रहने लगा था। किराएदार नीतू पांडे से प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ
1998 में मऊ जिले के दोहरीघाट की रहने वाली नीतू पांडे ने वाराणसी के बसंत कॉलेज में एडमिशन लिया। एक दोस्त के जरिए उमाशंकर ने परिवार के लिए कमरा किराए पर लिया और बच्चों को पढ़ाने लगे। शिवाला का यह मकान राजेंद्र गुप्ता का था। 15 अगस्त, 1999 में कुछ दिन बाद राजेंद्र और नीतू की मुलाकात हुई। दोनों के बीच जल्द ही लव अफेयर शुरू हो गया। इसके बाद दोनों घर के बाहर मिलने लगे। परिजनों को जब इसकी जानकारी हुई तो विरोध शुरू हो गया। उमाशंकर ने बेटी नीतू का बाहर आना-जाना और राजेंद्र से मिलना जुलना बंद करा दिया। इसके बाद सहेलियों के जरिए राजेंद्र ने चिटि्ठयां भेजनी शुरू कीं। फिर जब मौका लगता दोनों किसी न किसी बहाने से मिल लेते। परिवार के विरोध के बावजूद 17 जनवरी, 2000 में राजेंद्र और नीतू ने लव मैरिज कर ली। हालांकि, फिर नीतू के परिवार ने उससे नाता तोड़ लिया और वह भदैनी में आकर रहने लगी। नीतू ही कृष्णा गुप्ता के बच्चों का भी ध्यान रखने लगी। वह लोग भी नीतू को अपनी सगी मां की तरह चाहने लगे। अब 4 नवंबर की रात हुए कत्ल की पूरी कहानी पढ़िए… वाराणसी हत्याकांड- पूरे परिवार को 2-2 गोलियां मारीं: 3 बाहरी के फिंगर प्रिंट; गन नहीं मिली; भतीजा पुलिस हिरासत में वाराणसी में करोड़पति शराब कारोबारी राजेंद्र गुप्ता के पूरे परिवार की हत्या की गई थी। पुलिस जांच अब इस दिशा में आगे बढ़ गई है। कल तक पत्नी और 3 बच्चों की हत्या के बाद राजेंद्र के सुसाइड की थ्योरी थी, जो जांच के बाद अब पलट गई। पुलिस ने राजेंद्र गुप्ता के भतीजे जुगनू को हिरासत में ले लिया है। 20 मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगाया है। पुलिस को इस बात के क्लू मिले हैं कि पूरे परिवार यानी 5 सदस्यों की हत्या शूटर्स से करवाई गई है। किसने करवाई इस सवाल का जवाब तलाशा जा रहा है। पढ़िए पूरी कहानी…

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