भारत में 2011 के बाद जनगणना तो नहीं हुई, लेकिन हमारे पास आईएलओ (अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन) और मानव विकास संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत भारत रोजगार रिपोर्ट (2024) जरूर है।
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, इसलिए इस रोजगार रिपोर्ट के मुताबिक उसकी कार्यशील आबादी भी बढ़कर 64% हो गई है। भारत के एक युवा-देश होने से हमें खुशी हो सकती है, लेकिन फिर हाई-जीडीपी वृद्धि बनाए रखने और स्थायी रोजगार पैदा करने की जिम्मेदारी भी हम पर आ जाती है। यह स्थिति वर्ष 2036 तक भारत की कार्यशील आबादी के 65% होने तक जारी रहेगी। सवाल यह है कि हमें जितनी नौकरियां पैदा करने की जरूरत है, क्या हम उतनी कर पा रहे हैं? और क्या हम इसकी दर को अगले दो दशकों तक बनाए रख सकेंगे। यह चिंता का विषय है कि भारत की कामकाजी आबादी में से केवल 50 प्रतिशत युवा ही आर्थिक गतिविधियों में शामिल हो पा रहे हैं और 2022 तक तो इनकी संख्या और गिरकर 37% तक आ गई थी। इस युवा-शक्ति को अपना एक महत्वपूर्ण ‘एसेट’ बनाना जरूरी है। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) की जून 2024 की एक अन्य रिपोर्ट में बेरोजगारी दर 9.2% आंकी गई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में पुरुष बेरोजगारी की दर 7.7% के आसपास मंडरा रही है, लेकिन इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि महिला बेरोजगारी की दर में लगभग 3% की वृद्धि हुई है, जो अब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 18.5% है। गांवों में भी बेरोजगारी और बढ़ी है। पिछले 15 वर्षों में गांवों में बेरोजगारी दर 5.41% से बढ़कर 9.2% हो गई है। अप्रैल-जून 2024 तिमाही के लिए लेबर-फोर्स सर्वेक्षण के आंकड़ों में बताया गया है कि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर में तो मामूली गिरावट आई, लेकिन नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी पहले की तुलना में और कम हो गई है। यही कारण है कि 16 वर्ष से अधिक आयु के सभी युवाओं को बेहतर तरीके से टारगेट करने और उनको ध्यान में रखकर योजना बनाने के लिए सामान्य घरेलू डेटाबेस का उपयोग करना जरूरी है। युवाओं को रोजगार-योग्य बनाने के लिए सही कौशल भी प्रदान करना होगा। मैन्युफैक्चरिंग और सेवा- दोनों क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के लिए असंगठित क्षेत्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या हमारी नीतियां बेहतर निवेश, सस्ते कर्ज और नौकरी प्राप्त करना आसान बनाने के जरिए फूड प्रोसेसिंग, मैन्युफैक्चरिंग आदि को बढ़ावा देकर गांवों में नौकरियां पैदा करने पर फोकस कर रही हैं? जरूरत है कि कर्ज देने वाली एसआईडीबीआई (भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक) और अन्य बैंकिंग व गैर-बैंकिंग संस्थाएं गांवों में धन और रोजगार पैदा करने के लिए आगे आएं। हम बेरोजगारी की हालत के लिए दुनिया में चल रही हलचलों, नोटबंदी, महामारी आदि को दोष देते हैं, लेकिन समझदारी इसमें है कि उन चीजों पर ध्यान दें, जिन्हें हम आज कर सकते हैं। और ये हैं जीएसटी में सुधार करना और मुद्रास्फीति की लगाम कसना। ऐसा नहीं है कि महंगाई की नकेल कसने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी ओर से कोशिशें नहीं कीहैं, लेकिन वो नाकाफी साबित हुई हैं। तथ्य यह है कि मुद्रास्फीति आज भी 4% के लक्ष्य से कहीं अधिक बनी हुई है। ईंधन की लागत कम करने के लिए सरकार नीतिगत प्रयास करने जा रही थी। इसका खाने-पीने की चीजों की महंगाई सहित अन्य वस्तुओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता, लेकिन वैसे प्रयास नजर नहीं आए हैं। जीएसटी कम करने की बात भी अभी चल ही रही है, जबकि यह केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है। मुद्दा केवल निम्न स्तर के और कम कुशलता वाले कार्यों के माध्यम से जैसे-तैसे रोजगार देने का नहीं, ऐसे काम देने का है, जो नियमित आमदनी सहित मातृत्व अवकाश, ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि), स्वास्थ्य देखभाल जैसी सुविधाएं भी दे सके। देश में ऐसा माहौल बनाना भी बहुत जरूरी है, जिसमें महिलाएं काम के लिए सुरक्षित महसूस कर सकें। सच्चाई यह है कि हम केवल सेवा क्षेत्र के भरोसे विकास नहीं कर सकते हैं; हमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भी आसान कर्ज देकर और नियम-कायदों का दबाव घटाकर बढ़ावा देने की जरूरत है। इसमें संदेह नहीं कि नौकरियां पैदा करना आज सरकार की सबसे पहली जवाबदेही है। अगर जल्द कुछ नहीं किया गया तो निराश युवाओं की फौज देश के लिए बड़ा ज्वलंत प्रश्न बन जाएगी। युवा आबादी की ताकत को अपने लिए एसेट में बदलना जरूरी है। नौकरियां पैदा करना सरकार की पहली जवाबदेही है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)