हमें बचपन से ऐसा समझाया जाता है कि जो बोलें, वही करें। मन, वचन, कर्म में एकरूपता होना चाहिए। धीरे-धीरे समय बदला। अब इस परिभाषा का नया रूप है, ‘कम बोलें, ज्यादा करें।’ जो बोलें, वह करें, यह थोड़ा कठिन है। लेकिन कम बोलें और ज्यादा करें, यह आसान है। इसके लिए तीन काम करते रहें। अपने भीतर दूरदर्शिता जगाइए। आत्मविश्वास पैदा करिए। और चौबीस घंटे में एक बार ध्यान जरूर करिए। इसका परिणाम यह होगा कि आप कम बोलेंगे, लेकिन खूब अच्छा करेंगे। आप जो भी काम कर रहे हों, उसमें खूब परिश्रम करें पर परिश्रम में नैतिकता का छींटा जरूर लगाएं। इसलिए कहा है, कार्यकुशलता योग है। हमारे शास्त्रों में जितने सिद्धांत दिए हैं, सबका संबंध रोजमर्रा की जीवनशैली से है। योग करने वाले जानते हैं कि वही काम करें, जो किया जा सकता हो, पर जब करें तो जमकर करें। कर्म करते समय बहुत सावधान रहना है। इस समय प्रतिस्पर्धा की आंधी चल रही है। इसलिए योग करते हुए कर्म करें तो आपका कर्म विशिष्ट हो जाएगा।