दशकों से ऐसा रहा है कि नौजवान हमेशा से देश के सबसे बड़े शहरों की जान रहे हैं, फिर बात चाहे अमेरिका की हो या भारत की। लेकिन अमेरिका में नया चलन यह है कि वे बड़े महानगर छोड़कर छोटे शहरों व ग्रामीण इलाकों में जाकर वहां विकास को गति दे रहे हैं। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के आंकड़ों का वर्जीनिया विश्वविद्यालय द्वारा किए विश्लेषण में सामने आया कि महामारी के बाद से अब तक अमेरिकी शहरों में 25 से 44 साल की उम्र के वयस्क रहवासियों की संख्या घटी है, जबकि कम आबादी वाले कस्बों में युवा बढ़े हैं। हालांकि ये चौंकाने वाली बात नहीं है क्योंकि स्वास्थ्य संकट के कारण भी लोग कम आबादी वाली जगहों पर गए, ताकि संक्रमण का खतरा कम हो। इसके अलावा, संकट के कारण रिमोट काम करने का धैर्य व छोटे शहरों में रहने के कम खर्च ने भी इसे प्रोत्साहित किया। अब अमेरिका के बिजनेस घराने चिंतित हैं कि अगर ये चलन जारी रहा, तो इससे बड़े शहरों की रौनक पर असर पड़ सकता है और बड़े मेट्रो शहरों के बजाय छोटे कस्बों की आर्थिक विकासक्षमता बढ़ सकती है। ये स्पष्ट रूप से युवाओं से संबंधित उत्पादों व सेवाओं की साल-दर-साल आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करेगा। लेकिन 18-24 आयु वर्ग के बीच के एक तिहाई नए कर्मचारी अभी भी मेट्रो शहरों में आ रहे हैं क्योंकि ऐसा लगता है कि युवाओं को कम उम्र में घर का मालिक बनाने में अंतर-पीढ़ीगत (पैरेटें्स घर खरीदने के लिए बच्चों को पैसे दे रहे हैं) संपत्ति बढ़ती कारक बन रही है। यह समूह आज भी बड़े शहरों की जीवनशैली और सुविधाओं के प्रति आकर्षित रहता है। और यह बात भारतीय शहरों पर भी लागू होती है, जहां उनकी संख्या अमेरिका के एक तिहाई के मुकाबले दो तिहाई है। उच्च वेतन और ढेर सारी सुविधाएं उनके लिए प्रमुख आकर्षण हैं। हालांकि, महामारी और टियर-2 और टियर-3 शहरों की क्रय शक्ति में वृद्धि के बाद एक तिहाई युवा कर्मचारी अभी भी अपने गृह नगर में रहना पसंद करते हैं क्योंकि इन शहरों में रहने की लागत कम है और माता-पिता का घर होने के कारण उन्हें रहने के लिए कोई दूसरी जगह तलाश नहीं करना पड़ती। इन युवाओं के लिए आवास निश्चित रूप से एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। इस बुधवार को, चीन ने युवाओं के लिए घर खरीदने का एक आसान रास्ता पेश किया क्योंकि कई युवा बड़े शहरों में घर खरीदने में असमर्थ होने पर शादी के बारे में विचार करने से बचते हैं। शू बॉक्स आकार के न्यूनतम सुविधाओं वाला फ्लैट, जिसे चीन में “लाइंग फ्लैट” कहते हैं, युवाओं के बीच अधिक अलोकप्रिय होता जा रहा है। मिलेनियल और जेन ज़ी की पसंद को ध्यान में रखते हुए, अधिक रहने योग्य शहरों का निर्माण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए जहां आधुनिकता के साथ-साथ हरियाली भी हो जो उनके आंतरिक स्वास्थ्य का ख्याल रख सके। वो दिन गए, जब हमारे माता-पिता ने संघर्ष किया और सुनिश्चित किया कि ‘घर की नैया पार कराना’ उनकी जिम्मेदारी है, फिर चाहे हालात कितने ही प्रतिकूल क्यों न हों। यही कारण है कि कई लोगों ने खाड़ी देशों जैसे गर्म देशों में दशकों तक काम किया और अपना घर खड़ा किया। इस नई दुनिया में रिमोट काम का चलन आकार लेता जा रहा है, ऐसे में 20 से 25% कर्मचारी लगातार घर से काम कर रहे हैं, यहां तक कि अमेरिका में भी। भारत भले ही इस फीसद को न छू पाए, लेकिन संख्या के मामले में बहुत ज्यादा है। यही कारण है कि उनके शहर से नजदीक दूसरा घर लेने का चलन रीयल एस्टेट के बाजार में जोर पकड़ रहा है, जो कि मुख्य रूप से ये नौजवान ले रहे हैं। ये घर मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में माचिस के आकार वाले घरों से पांच गुना बड़े हैं। और यह प्रवृत्ति बड़े शहरों के डाउनटाउन और टियर-टू और टियर-थ्री शहरों की गतिशीलता को महत्वपूर्ण रूप से बदल रही है। फंडा यह है कि बदलती प्राथमिकताओं के साथ नौजवान अब ऐसी जगहें चुन रहे हैं, जो उनकी जीवनशैली के मुताबिक हो। आने वाले वर्षों में उनमें से ज्यादातर लोग मेट्रो शहरों के बजाय ऐसे जीने योग्य यानी ‘लिवेबल सिटीज़’ चुनेंगे।

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