यूपी की 80 सीटों में 15 पर देश के दिग्गज नेता मैदान में हैं। पीएम मोदी, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव, स्मृति ईरानी जैसे बड़े चेहरों की जीत-हार पर पूरे देश की नजर है। इनमें 5 बड़े चेहरों की सीट फिलहाल फंसी हुई दिख रही है। वाराणसी सीट पर पीएम मोदी की टीम जीत का मार्जिन बढ़ाने में जुटी है। अखिलेश के सियासी मैदान में आने के बाद कन्नौज में चुनाव दिलचस्प हो गया है। वह 12 साल बाद यहां से मैदान में उतरे हैं। सुल्तानपुर में मेनका गांधी के लिए जातिगत समीकरणों के चलते लड़ाई टफ हो गई है। आजमगढ़ में दिनेश लाल यादव निरहुआ उपचुनाव में मुस्लिम वोटर्स के बिखराव की वजह से जीते थे, इस बार उनके सामने चुनौती है। अमेठी में स्मृति ईरानी से सीधे सियासी लड़ाई न लड़कर राहुल उन्हें अगल-बगल से घेरने की रणनीति में है। 15 चेहरों की मौजूदा स्थिति क्या है, यहां के समीकरण और स्ट्रैटजी को अब सिलसिलेवार बताते हैं… 1. वाराणसी में मोदी के होर्डिंग्स लगे, पार्टी का टारगेट मार्जिन बढ़ाना
वाराणसी में आखिरी फेज में वोटिंग है। 7 मई से नॉमिनेशन होंगे। 10 मई के बाद चुनावी हलचल शुरू होगी। मोदी के चुनाव कार्यालय का उद्घाटन हो चुका है। शहर में होर्डिंग्स लग चुके हैं। मोदी वाराणसी से तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा का टारगेट मोदी के लिए जीत का मार्जिन बढ़ाना है। उधर, कांग्रेस संगठन सपा नेताओं के साथ मिलकर अजय राय को जिताने की रणनीति पर काम कर रहा है। अजय राय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष है। BJP की यहां क्या है स्ट्रेटजी? 2. राहुल के नामांकन के बाद रायबरेली के कांग्रेसियों में उत्साह
रायबरेली के सियासी मैदान में राहुल गांधी के उतरने के बाद माहौल पूरी तरह बदल गया है। कांग्रेसियों में उत्साह दिख रहा है। राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी के होर्डिंग लगा दिए। रविवार से चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया गया है। कांग्रेस नेता नुक्कड़ सभा कर रहे हैं। 6 मई को प्रियंका चुनाव रैली करेंगी। कांग्रेस के दांव के चलते भाजपा को पुराने कैंडिडेट दिनेश प्रताप को ही चुनाव में उतारना पड़ा। कांग्रेस की क्या है स्ट्रैटजी? 3. कन्नौज में नेताओं को मनाने में अखिलेश को छूट रहा पसीना
कन्नौज में नामांकन कराने के बाद 2 बार अखिलेश आ चुके हैं। प्रचार में यादव परिवार के सदस्य तो नहीं दिख रहे, मगर परिवार के खास पूर्व विधायक कैंपेनिंग कर रहे हैं। कन्नौज के लोकल सोशल मीडिया ग्रुप्स में यूपी में होने वाली सपा की रैलियों के लाइव लिंक शेयर करके लोगों को जोड़ा जा रहा है। छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं की जा रही हैं। हर दिन अखिलेश और उनकी टीम, पुराने नेताओं से फीडबैक ले रही है। 2019 में इस सीट से डिंपल के हारने के बाद जो नेता इनके साथ थे, उन पर हार का ठीकरा फोड़ दिया। अखिलेश ने यहां आना-जाना भी कम कर दिया। इसके चलते लोकल कनेक्टिविटी कम हो गई और इनके कई खास नेता भाजपा चले गए। अखिलेश को लोकल कनेक्ट बनाने में खूब पसीना बहाना पड़ रहा है। सपा की क्या है स्ट्रेटजी? 4. आजमगढ़ में निरहुआ के लिए सपा ने मुश्किल खड़ी की
आजमगढ़ में चुनाव छठवें फेज में है। भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ 2022 लोकसभा उपचुनाव जीत चुके हैं, इसलिए कॉन्फिडेंट दिख रहे हैं। 10 मार्च को पीएम मोदी ने आजमगढ़ एयरपोर्ट का उद्घाटन करके चुनावी माहौल बनाने की कोशिश की, इसके बाद कोई बड़ा भाजपा नेता यहां नहीं पहुंचा। निरूहुआ लोकल नेताओं के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं। फिलहाल जातीय समीकरणों के चलते सपा ने निरहुआ के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। BJP की क्या है स्ट्रेटजी? 5. गोरखपुर में भाजपा के रवि किशन की हवा
भाजपा कैंडिडेट रवि किशन पिछले 5 साल में अपने बयानों से चर्चा में रहे। गोरखपुर योगी की परंपरागत सीट है। रवि किशन ने यही पर घर बना लिया। परिवार को शिफ्ट किया। 1 दिन 20 से ज्यादा नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं। उनके होर्डिंग्स में केंद्र-राज्य सरकार के काम का बखान है। रवि मोदी का नाम लेकर ही प्रचार कर रहे हैं। उनके सामने सपा की काजल निषाद हैं जिनका प्रभाव अब तक नजर नहीं आया है। BJP की क्या है स्ट्रेटजी ? 6. मिर्जापुर में अनुप्रिया के सामने चुनौती कम
मिर्जापुर का चुनाव आखिरी फेज में है। इसलिए प्रचार साइलेंट है, प्रत्याशी अपने-अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में मीटिंग कर रहे हैं। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे होने के कारण मिर्जापुर भाजपा की प्राथमिकता पर है। अनुप्रिया मजबूत कैंडिडेट दिख रही हैं। क्योंकि यहां 3 लाख से ज्यादा कुर्मी वोटर हैं। जबकि सपा और बसपा ने पटेल और बिंद जाति के प्रत्याशी उतारकर जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की है।
अनुप्रिया की क्या है स्ट्रेटजी ? 7. मैनपुरी में डिंपल के सामने नहीं दिख रही चुनौती
मैनपुरी के चुनावी मैदान में डेढ़ साल बाद एक बार फिर डिंपल यादव खड़ी हैं। पिछली बार की तरह इस बार भी उनके लिए मैनपुरी में कोई खास चुनौती नहीं दिख रही। डिंपल अपनी बेटी के साथ चुनाव प्रचार कर रही हैं। भाजपा ने यादव प्रत्याशी उतारा है, मगर मुलायम के बाद उनकी बहू डिंपल के पक्ष में माहौल दिख रहा है। 1996 से इस सीट पर सपा ही जीतती आ रही है। अब चर्चा ये है कि डिंपल का जीत का मार्जिन कितना होगा। सपा की क्या है स्ट्रेटजी? 8. बदायूं में फाइट टफ, जातीय समीकरण आदित्य के पक्ष में
आदित्य पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं, बेटे को जिताने के लिए शिवपाल 20 दिन से बदायूं में डेरा डाले हुए हैं। बदायूं में छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं। भाजपा परिवारवाद के आरोपों से घेरने का प्रयास कर रही है। आदित्य कहते हैं- परिवारवाद होता तो चुनाव नहीं लड़ता, सीधे राज्यसभा सांसद बन जाता। होर्डिंग में अखिलेश समेत यादव परिवार के बड़े नेता दिख रहे हैं। अखिलेश भी बदायूं में रैली कर चुके हैं। यहां जातीय समीकरण आदित्य के पक्ष में दिख रहे हैं। सपा की स्ट्रेटजी क्या है? 9. जातिगत समीकरण ने मेनका की मुश्किल बढ़ाई
सुल्तानपुर सीट इस बार मेनका के लिए सुरक्षित नहीं दिखाई दे रही। वरुण प्रचार के लिए नहीं आए, भाजपा के खिलाफ दिए उनके पुराने बयान सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे। मेनका खुद नुक्कड़ सभाएं कर रही हैं। 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी को 4.5 लाख वोट मिले थे। इनका झुकाव सपा की तरफ है, अब सपा ने निषाद प्रत्याशी उतारा, निषाद वोटर 2 लाख हैं। बसपा ने 1.2 लाख वोटर्स के लिए कुर्मी प्रत्याशी पर दांव खेला। 2023 में डॉ. घनश्याम तिवारी की हत्या के बाद ब्राह्मण बिरादरी में नाराजगी बताई जा रही, वहीं ठाकुर भाजपा नेता के भाई पर कार्रवाई होने के बाद इस बिरादरी में भी रोष है। BJP की क्या है स्ट्रैटजी? 10. कमजोर विपक्ष ने मथुरा में हेमामालिनी का आत्मविश्वास बढ़ाया
मथुरा में वोटिंग हो चुकी है। ऐसे में मथुरा में चुनावी हलचल थम चुकी है। 2014 और फिर 2019 के चुनाव में हेमा को रालोद प्रत्याशी से टक्कर मिली, 2024 में रालोद और भाजपा का गठबंधन है। कांग्रेस प्रत्याशी विजेंद्र सिंह को उतारा, मगर हेमामालिनी को अपनी लोकप्रियता का फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है। BJP की क्या है स्ट्रैटजी? 11. मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान की सीट फंसी
33% मुस्लिम वोटर के बावजूद 10 साल से भाजपा के संजीव बालियान जीत रहे हैं। विपक्ष ने स्ट्रेटजी बदलते हुए मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारे, इससे मुस्लिम वोट बंटा हुआ नहीं दिख रहा, मगर विपक्ष के जाट कैंडिडेट वोट बांट रहे हैं। इससे भाजपा को नुकसान होने की आशंका है। इस सीट पर सत्ता और विपक्ष के प्रत्याशियों में टफ फाइट दिख रही है। BJP की क्या है स्ट्रेटजी? 12. स्मृति के लिए इतना आसान भी नहीं है अमेठी का मैदान
अमेठी लोकसभा सीट से राहुल या प्रियंका के चुनाव में उतरने की चर्चा थी, मगर स्मृति ईरानी के खिलाफ कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को उम्मीदवार बनाया। इसके बाद संदेश गया कि कांग्रेस ने भाजपा को वॉकओवर दिया। मगर पॉलिटिकल एक्सपर्ट की राय अलग है। दरअसल राहुल गांधी कहां से चुनाव लड़ेंगे, इसका सस्पेंस आखिरी वक्त तक बना रहा। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि स्मृति की पहचान राहुल के खिलाफ चुनाव लड़ने से है, अब यह पहचान छीन ली गई। प्रियंका के चुनाव कैंपेनिंग से माहौल बदलने की उम्मीद जताई जा रही है। भाजपा नेता यहां मजबूत होने का दावा कर रहे हैं। BJP की क्या है स्ट्रेटजी? 13. राजनाथ के लिए लखनऊ में ज्यादा चुनौती नहीं
राजनाथ सिंह लखनऊ में चुनाव जरूर लड़ रहे हैं, लेकिन वह ज्यादातर दूसरे प्रत्याशियों के लिए वोट मांगने में व्यस्त हैं। राजनाथ भाजपा का बड़ा चेहरा हैं। ऐसे में लखनऊ में भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका चुनावी कैंपेन संभाल रखा है। लखनऊ सीट पर 18% राजपूत और ब्राहमण वोट हैं। जबकि 18% के आसपास ही मुस्लिम वोट हैं। इन्हें साधने के लिए सभी कम्युनिटी के लोगों से भाजपा के बड़े चेहरे मुलाकात कर रहे हैं। कमजोर विपक्ष की वजह से भी राजनाथ के सामने ज्यादा चुनौती नहीं दिख रही। BJP की क्या है स्ट्रेटजी? 14. मेरठ में भाजपा के अरूण गोविल को सपा से कड़ी चुनौती रामायण टीवी सीरियल में राम की भूमिका अदा करने वाले अरूण गोविल को भाजपा ने मेरठ से उतारा। सपा-बसपा ने लोकल बनाम बाहरी का मुद्दा उछाला, मगर इसका बहुत असर होता दिखा नहीं। सपा और बसपा अरूण को जातीय समीकरण में फंसाने के लिए दलित और त्यागी जाति के कैंडिडेट उतारे हैं। दलित और मुस्लिम वोट ही यहां 9 लाख के आसपास है। इसी समीकरण को साधने के लिए सपा ने दलित कैंडिडेट उतारा है। जबकि त्यागी समाज की नाराजगी के चलते बसपा ने त्यागी कैंडिडेट उतारा है। उसे उम्मीद है कि यहां दलित वोट उसे ही मिलेगा। बहरहाल, वोटिंग के बाद अरूण मुंबई वापस चले गए हैं और अब वह रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं। यहां कांटे का मुकाबला दिख रहा है। BJP की क्या है स्ट्रेटजी? 15. कैसरगंज सीट पर बृजभूषण फैक्टर विपक्ष पर हावी
कैसरगंज लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण करण के पक्ष में दिख रहे हैं। इसका सीधा कारण बृजभूषण फैक्टर है। दरअसल, यहां ब्राहमण और राजपूत वोट तकरीबन 30 फीसदी हैं। दलित 18 फीसदी हैं। यह समीकरण करण भूषण के पक्ष में जाता दिख रहा है। क्योकिं उनके पिता बृजभूषण का लोकल कनेक्ट बहुत स्ट्रांग है। युवाओं में भी बृजभूषण की पकड़ है। बृजभूषण के खुद के कैसरगंज में दस से ज्यादा स्कूल कॉलेज हैं। हर साल 9 जिलों के युवाओं को सम्मानित करते हैं। BJP की क्या है स्ट्रेटजी? इन चेहरों पर एक्सपर्ट की राय… लखनऊ, केसरगंज में भाजपा को कम चुनौती लखनऊ के सीनियर जर्नलिस्ट सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं,’लखनऊ में भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह के लिए कोई चुनौती नजर नहीं आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि राजनाथ के सामने विपक्ष ने कमजोर प्रत्याशी उतारा है। कैसरगंज सीट की बात करे तो वहां भी यही हाल है। कमजोर विपक्ष ने एक तरह से बृजभूषण के बेटे करण भूषण को वॉक ओवर दे दिया है।’ उन्होंने कहा,’रायबरेली और अमेठी की जहां तक बात है, रायबरेली में राहुल की राह आसान है। अमेठी छोड़ कर उनका रायबरेली आना सोची-समझी रणनीति है। अमेठी में किशोरी लाल बहुत पुराने हैं। स्मृति ईरानी वहां आसानी से जीत नहीं पाएंगी। अमेठी के लिए टफ फाइट करनी होगी। वहीं सुल्तानपुर की बात करें तो वहां मेनका विपक्ष के जातीय समीकरण में फंसती दिख रही हैं।’ भाजपा 10 साल से सत्ता में, अब विपक्ष के कामों पर सवाल नहीं उठा सकती
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के एचओडी प्रो. मिर्जा असमर बेग कहते हैं, ‘पश्चिम की वीआईपी सीटों पर भाजपा और सपा गठबंधन की सीधी लड़ाई दिख रही है। मोदी सरकार 10 साल से सत्ता में है। अब उनके पास विपक्ष के कामों पर सवाल उठाने का मौका नहीं है, क्योंकि भाजपा खुद लंबे समय से सत्ता में है।’ अनुप्रिया को मिर्जापुर में फायदा होता दिख रहा
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रो. डॉ. आर एन त्रिपाठी कहते हैं, ‘पीएम नरेंद्र मोदी को उनके विकास के काम से ऐतिहासिक जीत मिल सकती है, मिर्जापुर में अनुप्रिया को पटेलों का साथ और सरकारी योजनाओं का फायदा मिलता दिख रहा है। गोरखपुर सीट की हिंदुत्ववादी पृष्ठभूमि से रविकिशन को जीत मिल सकती है। आजमगढ़ में सपा के धर्मेंद्र यादव और दिनेश लाल यादव में कड़ा मुकाबला होगा।’

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