सहारनपुर में हिंदू-मुस्लिम एकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक मेला गुघाल 13 सितंबर यानी आज से शुरू होगी। जाहरवीर गोगा महाराज की स्मृति में लगने वाले मेला गुघाल में सभी धर्मों के लोग हिस्सा लेते हैं। शुक्ल पक्ष की दशमी को शुरू होने वाले मेला गुघाल अपनी एक पहचान रखता है। मेला में पश्चिमी यूपी समेत हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। ये मेला 5 अक्टूबर तक चलेगा। तीन दिन म्हाड़ी पर चढ़ेगी छड़ी
मेले का शुभारंभ जनमंच पर छड़ी पूजन के साथ होगा। गंगोह रोड स्थित गोगा म्हाड़ी पर तीन दिनों तक श्रद्धालु निशान (छड़ी) चढ़ाएंगे। मेले से दो सप्ताह पहले छड़ियां गांव और शहरों में भ्रमण किया और बसेरों का दौर चला। जाहरवीर गोगा के प्रमुख चिन्ह नेजा की अगुवाई में 26 छड़ियां बैंडबाजों के साथ भ्रमण करती हुई विश्रामपुर काल भैरव मंदिर पहुंचेंगी। यहां से पूजन के बाद छड़ियां म्हाड़ी के लिए प्रस्थान करेगी। तीसरे दिन छड़ियां अपने-अपने स्थानों पर चली जाएंगी और फिर रात के समय में मेले चलता रहेगा। ये मेला करीब एक माह तक चलेगा। जाहरवीर गोगा महाराज का इतिहास जाहरवीर गोगा का जन्म राजस्थान के चुरू के ददरेहड़ा ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम राजा जेवर सिंह तथा माता का नाम बाछल था। इनको जाहरवीर दीवान या जाहरवीर गोगाजी महाराज के नाम से जाना जाता है। गोरख गद्दी व म्हाड़ी आज भी बिकानेर के बागड़ में स्थित है। सहारनपुर के पूर्व गंगोह रोड पर जाहरवीर गोगा जी महाराज की म्हाड़ी स्थापित की गई थी। म्हाड़ी के बारे में पूर्ण इतिहास नहीं मिलता। जब से म्हाड़ी की स्थापित हुई है, तभी से मेला गुघाल लगाने की परंपरा चली आ रही है। अभी भी देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां शीश नवाने तथा मन्नतें मांगने प्रतिवर्ष आते हैं तथा मन्नतें पूरी होने पर निशान चढ़ाते हैं। अंग्रेज कलक्टर ने बंद कराया था मेला
सहारनपुर में लगने वाले मेला गुघाल के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक अंग्रेज कलक्टर ने मेला गुघाल पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया था। जिससे लोगों की आस्था को चोट पहुंची थी। कहा जाता है कि उस दौरान हजारों सांपों ने कलक्टर आवास को घेर लिया था। कलक्टर द्वारा मेला लगाने की घोषणा करने पर सांप अदृश्य हो गए थे। नेजा छड़ी का अलग है महत्व
मेले के अवसर पर नेजा छड़ी का अलग महत्व है। बताते हैं कि करीब 1450 साल पहले जाहरवीर गोगाजी सहारनपुर आए थे। नेजा स्थापित किया था। जहां आज म्हाड़ी है। तभी से मेले से पूर्व छड़ियों के पूजन की परंपरा है तथा नेजा छड़ी सभी छड़ियों की प्रधान है। जाहरवीर गोगा की छड़ियों की देखरेख करने वाले पंकज उपाध्याय का कहना है कि छड़ी पूजन व म्हाड़ी पर प्रसाद व निशान चढ़ाने वालों की मन्नतें सदियों से पूरी होती आ रही हैं। इससे मेला जाहरवीर गोगा जी की महत्ता बढ़ती जा रही है। मेला गुघाल में होंगे 3 करोड़ खर्च
मेला गुघाल का ठेका 3 करोड़ 7 लाख 80 हजार 360 रुपए का छोड़ा गया है। पिछले साल से 37 लाख रुपए अधिक हैं। गोगा म्हाड़ी परिसर का ठेका 30 लाख 11 हजार रुपए का छोड़ा गया है। सहारनपुर की फर्म बीएमसी कॉन्ट्रेक्टर को टेंडर दिया गया है। म्हाड़ी के ठेके से भी इस साल करीब 3.5 लाख रुपए की अधिक आय हुई है। म्हाड़ी का ठेका बीते वर्ष 26 लाख 51 हजार रुपए में छोड़ा गया था। इस साल 30 लाख 11 हजार एक सौ रुपए में छोड़ा गया है। ये है मेला गुघाल के सांस्कृतिक कार्यक्रम