गणेश उत्सव की शुरुआत 6 सितंबर से हो रही है। यह उत्सव जिस तरह महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाया जाता है, उसी तरह काशी की गलियों में भी परंपरा निभाई जाती है। काशी के शारदा भवन में होने वाले गणेश उत्सव में भक्तों को सिद्धि विनायक के स्वरूप के दर्शन का सौभाग्य मिलता है, जिसे यहां के प्रसिद्ध मूर्तिकार बद्री प्रसाद तैयार कर रहे हैं। मूर्तिकार से जानते हैं कि कैसे तैयार होती है बप्पा की मूर्ति… दैनिक भास्कर की टीम काशी के प्रसिद्ध मूर्तिकार बद्री प्रसाद के पास पहुंची। जो एक छोटे से कमरे में अकेले बैठकर गणपति बप्पा की मूर्तियों को तैयार कर रहे थे। उन्होंने बताया- दो माह पहले से ही हम तैयारी शुरू करते हैं। सबसे पहले गंगा की मिट्टी को लाते हैं। फिर भगवान गणेश के स्वरूप को बनाते हैं। उसके बाद इसमें रंग-बिरंगे रंगों को भरकर उन्हें सुंदर स्वरूप दिया जाता है। 10 दिन में तैयार करते हैं सिद्धि विनायक की हूबहू मूर्ति
बद्री प्रसाद पिछले दो दशकों से अधिक समय से इस विशेष मूर्ति को तैयार कर रहे हैं। उन्होंने बताया- इसके लिए हमें विशेष ऑर्डर मिलता है। इस मूर्ति को बनाना हमने अपने पिताजी से सीखा था। उन्होंने बताया कि यह प्रतिमा हूबहू महाराष्ट्र के सिद्धि विनायक का प्रतिरूप होती है, जिसका दर्शन काशी में गणेश उत्सव के दौरान होता है। हर साल वे सिद्धि विनायक की 5 प्रतिमाएं तैयार करते हैं। इनकी लागत उन्होंने करीब 10 हजार रुपए बताई। उन्होंने बताया कि इस मूर्ति को तैयार करने में उन्हें 10 दिन का वक्त लगता हैं। आइए अब जानते हैं काशी की दो सबसे प्रसिद्ध गणेश उत्सव कमेटी 1.) साल 1929 से शारदाभवन में गणेश उत्सव
काशी के गोदौलिया क्षेत्र स्थित अगस्त कुंडा में सन् 1929 से शारदा भवन में गणेशोत्सव मनाया जाता हैं। इसके उत्सव की शुरुआत स्व. पंडित गोरेनाथ पाठक ने की थी। विनोद राव पाठक ने बताया कि गणेश जी का यह उत्सव शारदा भवन में 96वां वर्ष हैं। उन्होंने बताया कि यह आयोजन बिना किसी से चंदा लिए किया जाता है। यहां स्थापित होने वाली मूर्ति महाराष्ट्र के सिद्ध विनायक गणेश जी के स्वरूप की स्थापित की जाती है। यह प्रतिमा काशी के ही मूर्तिकार परिवार द्वारा बनाया जाता है। 2.) मराठी परिवार की 126 साल पुरानी गणेश उत्सव परंपरा
वाराणसी में ब्रह्मा घाट, बीवी हटिया, पंचगंगा घाट समेत कई ऐसे इलाके हैं जहां मराठा समुदाय के लोग अच्छी खासी संख्या में रहते हैं। इन मराठी परिवारों ने उत्तर प्रदेश में अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवित रखने के लिए पिछले 126 वर्षों से काशी में गणेश चतुर्थी का आयोजन किया है।आयोजन समिति के ट्रस्टी विनायक त्र्यंबक ने बताया कि इस आयोजन की शुरुआत तब हुई जब अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों और महान नेताओं ने देश में लोगों को एकजुट करने का काम शुरू किया था। त्रिंबक ने बताया- इससे प्रसन्न होकर 1920 में जब लोकमान्य तिलक वाराणसी आए तो उन्होंने इस उत्सव की भव्यता देखकर इसे महाराष्ट्र के उत्सव से बेहतर बताया और तब से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है। उन्होंने कहा कि भले ही महाराष्ट्र के पुणे में पड्डगान और अन्य परंपराओं को समाप्त कर दिया गया है, लेकिन वाराणसी में अभी भी यह परंपरा उसी भव्यता के साथ निभाई जाती है। गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि गणेश चतुर्थी की शुरुआत 6 सितंबर को दोपहर में 3:01 से शुरू होगी और उसके बाद 7 सितंबर को शाम 5:37 पर समाप्त होगी। उदयातिथि के मुताबिक गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर को मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस दिन भक्त अपने घर और चौक चौराहा में गणेश जी की स्थापना कर सकते हैं। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक रोजाना भगवान गणेश की पूजा आराधना किया जाता हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय बता रहे हैं गणपति स्थापना और पूजा विधि… आगे की 3 स्लाइड पढ़िए-