मुझसे भी किसी ने कहा, अरे शर्मा जी कविताएं छोड़ो हमारे साथ राजनीति में आ जाओ चुनाव लड़ लो। हमने कहा यार मैं नहीं लड़ता, जब देश की जनता को प्यार से जीत लिया तो फिर लड़कर जीतने की क्या पड़ी है! अरे हम कवि कलाकार लोग तो प्यार से ही सबको जीत लेते हैं। इसलिए चुनाव लड़ने वालों को चुनाव लड़ने दो, हम प्यार के राही ही ठीक हैं। खैर मैं कविताएं पढ़ने के अलावा अनुसंधान करने में भी रुचि रखता हूं और मैंने एक रिसर्च की है कि आखिर पति, पत्नी से डरता क्यों है? लंबे अनुसंधान के बाद मैंने पाया कि हमें जितनी भी ताकतें मिलती हैं, सब महिलाओं से ही मिलती हैं। पैसा चाहिए तो लक्ष्मी जी के पास जाओ, बुद्धि चाहिए तो सरस्वती जी के पास जाओ, ताकत चाहिए तो दुर्गा जी के पास जाओ। फिर आदमी के पास बचा क्या? बस यही मुझे समझ नहीं आया! इसलिए पत्नी से डरना जरूरी है क्योंकि वो महिला भी है। वैसे हमारे यहां पति-पत्नी रेल की पटरी की तरह हैं कि मिलो मत साथ जरूर चलना पड़ेगा। बहरहाल, कवि सम्मेलन में जाता हूं तो कई बार मुझे आज का महान अविष्कार ये मोबाइल बड़ा परेशान करता है अपना नहीं, कुछ श्रोताओं का, जो मेरी हास्य कविताओं के बीच किसी से बात करने से नहीं चूकते। किसी कविता को सुनाते हुए तल्लीन होता हूं और कुछ लोग लग जाते हैं फोन पर बतियाने। मैं कविता को वहीं विराम देकर उनसे कहता हूं कि भैय्या मोबाइल बंद कर लो, मुझे सुन लो, और एक बात बताओ कि जब पत्नी यहां है तो आखिर तुम्हें फोन कर कौन रहा है? मुझे तो ऐसा लगता है कि इस मोबाइल का अविष्कार किसी पत्नी ने ही किया होगा, ताकि वो पति को ढूंढ ले कि वो आखिर बैठा कहां है। वैसे पति अपने खिलाफ इस्तेमाल होने वाला हथियार कभी नहीं बनाता। मैं हरियाणे का हूं और सब जानते हैं कि हमारे यहां की तहजीब कैसी है। हमारे यहां वाले से कोई पूछ ले कि टाइम क्या हुआ है, तो वो कहता है क्यों, क्या फांसी चढ़ना है? लेकिन, टाइम नहीं बताएगा। हमारे कल्चर के नाम पर सिर्फ एग्रीकल्चर है और देखा जाए तो संसार की सबसे बड़ी कल्चर एग्रीकल्चर होती है, वो खराब हो जाए तो सबकी कल्चर खराब कर देती है। एक बात और कहूं कि हमारे हरियाणे के बच्चों के पास प्रैक्टिकल थिंकिंग होती है। इसकी एक मिसाल आपको दे देता हूं तो आप जरूर मान जाएंगे। हमारे हरियाणे में एक मास्टर ने एक बच्चे से पूछ लिया। मान ले मैंने तेरे पिताजी को एक लाख रुपए दिए बता डेढ़ साल बाद 15 फीसदी ब्याज के हिसाब से वो अब मुझे कितने रुपए लौटाएगा? बच्चा बोला एक भी नहीं। मास्टर डपटकर बोला कि मूर्ख तू हिसाब भी नहीं जानता! बच्चा बोला मास्टर जी मैं तो हिसाब जानता हूं, लेकिन आप मेरे पिताजी को नहीं जानते! उन्होंने आज तक किसी का नहीं लौटाया तो आपका क्या लौटाएंगे! तो ये प्रैक्टिकल थिंकिंग हमारे हरियाणा के बच्चों के पास होती है। हमें तो देश के नेता हमेशा बेवकूफ बनाते रहे कि बच्चे देश का भविष्य हैं…बच्चे देश का भविष्य हैं। मैंने कहा जब बच्चे ही देश का भविष्य हैं तो मैं मेहनत क्यों करूं। यह कॉलम भी पढ़ें:- सुबह का भूला शाम को घर लौटे तो नेता!:एकरसता से बचने के लिए नेता दूसरी पार्टी के साथ लिव-इन में रहकर मन बहला लेता है

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