तारीख- 28 और 29 सितंबर। जिला- फर्रुखाबाद। नवाबगंज में प्रशासन ने 23 यादव परिवार के मकानों पर बुलडोजर चला दिया। 50 साल से रह रहे परिवार बेघर हो गए। इस कार्रवाई पर रविवार दोपहर 1:27 बजे अखिलेश यादव ने घरों को ढहाते बुलडोजर का वीडियो X पर शेयर किया। 506 शब्दों की एक लंबी पोस्ट भी लिखी- ‘ये है प्रतिशोध से भरी भाजपाई राजनीति का वीभत्स चेहरा। भाजपा बसे-बसाए घरों को गिराकर सुख पाती है। जिन्होंने अपने घर नहीं बसाए, पता नहीं वो दूसरों के घर गिराकर किस बात का बदला लेते हैं। हर गिरते घर के साथ भाजपा और भी नीचे गिर जाती है। अमृतकाल के सूचनार्थ: आज लोकसभा फर्रुखाबाद के विधानसभा अमृतपुर के ग्राम उखरा में सालों से बसे 25 गरीब परिवारों के घरों पर बुलडोजर चलाकर, न जाने कितने बड़े-बूढ़ों, बीमारों, बच्चों, माताओं, बहनों, बेटियों को भरी बरसात में बेघर किया गया। ये राजनीतिक क्रूरता की हद है।’ इस कार्रवाई के बाद जेहन में कुछ सवाल आए। जैसे- प्रशासन ने बुलडोजर क्यों चलाया? क्या प्रशासन ने सिर्फ यादव परिवारों के घर ढहाए? 50 साल से लोग रह रहे थे, तो अब प्रशासन क्यों जागा? इनके जवाब पाने के लिए दैनिक भास्कर ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। पढ़िए रिपोर्ट… पहले मामला समझ लेते हैं… एसडीएम सदर रजनीकांत, सीओ अजय वर्मा, तहसीलदार सदर श्रद्धा तपांडे शनिवार की शाम नवाबगंज के उखरा गांव पहुंचे। उनके साथ पुलिस फोर्स और पांच बुलडोजर थे। तहसीलदार ने गांव के लोगों से कहा, अपने-अपने मकान खाली कर दीजिए। समान भी बाहर निकाल लीजिए। ग्रामीणों ने जैसे-तैसे सामान अपने-अपने घरों से बाहर निकाले। घरों के खाली होते ही प्रशासन ने पांचों बुलडोजर को आगे बढ़ने की हरी झंडी दी। तभी कार्रवाई रोकने के लिए बुलडोजर के सामने महिलाएं खड़ी हो गईं और मोहलत मांगने लगीं, लेकिन अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी। पहले दिन गांव में बने 18 मकानों को गिराया गया। अगले दिन यानी रविवार सुबह 5 और घरों को बुलडोजर से ढहा दिया। आंखों के सामने घरों को गिरते देख कई परिवार सदमें में हैं। यहां रह रहे लोगों का कहना है कि उन्हें पता ही नहीं था कि यह भूमि सरकारी है। गांव में बने मकान अब खंडहर दिखाई देने लगे हैं, यहां लोग तिरपाल के नीचे रह रहे हैं। कुछ परिवार खुले आसमान के नीचे रात गुजार रहे हैं। बच्चे खेलते दिखाई दिए। सामान अभी भी खेतों में बिखरा है। ग्राम पंचायत की बंजर जमीन पर बने थे घर
एसडीएम सुभाष चंद्र प्रजापति के मुताबिक सभी मकान ग्राम पंचायत की जमीन पर बने थे। यह जमीन विद्युत निगम को ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर बनाने के लिए दी गई है। ग्रामीणों ने पहले तहसीलदार, बाद में जिलाधिकारी की कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। वहां से फैसला पक्ष में नहीं आने पर हाईकोर्ट में भी अपील की गई। वहां से भी अपील खारिज होने के बाद कार्रवाई हुई है। जमीन पर यादव बिरादरी का कब्जा था
ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के लिए चयनित जमीन पर यादव परिवार का ही कब्जा था। प्रशासन ने कहा- अवैध निर्माण हटाने के लिए सभी को नोटिस भी दिया था। नोटिस मिलने पर ग्रामीणों ने जिलाधिकारी के न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया। ग्रामीण मुकदमा हार भी गए। बावजूद इसके वहां से नहीं हटे। ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर बनाने के लिए डेढ़ एकड़ जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू की है। जिस जमीन का अधिग्रहण किया गया, उसके दायरे में यह मकान भी आ गए। इसलिए प्रशासन ने इन मकानों को तोड़ा। अब बात उन परिवारों की, जिनके मकान टूटे जिस घर से 2 महीने बाद बेटी को विदा करना था, वो अब खंडहर हमारी मुलाकात सबसे पहले पॉलीथिन के नीचे रह रहे अनिल यादव से हुई। कार्रवाई के बारे में पूछते ही अनिल बोले- घर छिन गया, रहने के लिए कोई और जगह नहीं बची है। सब कुछ बर्बाद हो गया। 27 नवंबर को बेटी की बारात आनी है। घर में बेटी की शादी की तैयारियां चल रही थीं। कुछ सामान भी जुटा लिए थे। मकान तो गया ही, अब बेटी की शादी की भी चिंता सता रही है। डेढ़ बीघा जमीन है। उसमें खेती-बाड़ी करते हैं। जहां खेत है वहां आने-जाने के लिए सही से रास्ता भी नहीं है। मजबूरी है, बेटी की शादी तो करना ही है। इतना कहते ही अनिल रो पड़े। उन्होंने कहा- न खाने को राशन बचा है और न ही पहनने को कपड़ा। रिश्तेदारी से खाना आ रहा है। सब कुछ मलबे में दब गया है। एक ग्रामीण ने बताया- हमारा घर उखरा गांव में था। कई साल पहले बारिश में वह घर ढह गया। फिर हमने इस जमीन पर मकान बना लिया। 5 साल से नए मकान में रह रहा था। यहां तमाम ऐसे परिवार भी हैं, जो 30-40 साल मकान बनाकर रह रहे थे। प्रशासन से कुछ दिन की मोहलत मांगी गई थी, लेकिन अधिकारियों ने हमारी नहीं सुनी। मकानों पर बुलडोजर चला दिया। घर का सामान भी मलबे में दब गया। प्रशासन कोई मदद नहीं कर रहा। दो महीने पहले ही मिला था प्रधानमंत्री आवास
उखरा गांव की मोरश्री ने बताया- दो महीने पहले ही प्रधानमंत्री आवास मिला था। आवास बनाने के लिए 1,75,000 रुपए मिले थे। जिस समय मकान बन रहा था, तब तो किसी ने नहीं बताया कि यह जमीन सरकारी है। मैं 5 साल से यहां रह रही थी, उससे पहले गांव में रहती थी। अगर पता होता तो कभी यहां मकान नहीं बनाती। चार बेटे हैं, उनकी शादी हो चुकी है। सब अलग रहते हैं। मकान तो गिर गया, अब हम कहां जाएंगे। ब्रज किशोर ने बताया- प्रशासन ने मकान ढहाने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया। अचानक बुलडोजर मकानों पर चलवा दिए। यहां करीब 25 साल से रह रहे हैं। नाला-नाली, सड़क सबकुछ बना हुआ है। पहले कभी किसी ने नहीं कहा कि गलत जगह पर हम बसे हैं। सरकार ने बिजली का खंभा लगाकर लोगों को कनेक्शन भी दिया था। अगर जमीन सरकारी थी और हम अवैध तरीके से बसे थे तो कनेक्शन क्यों दिए गए? यहां सरकारी नल और नाली की व्यवस्था की गई है। कभी किसी ने कोई विरोध नहीं किया, हमारा बसा बसाया घर उजाड़ दिया गया। रिश्तेदारी से आ रहा खाना
गांव में महिलाएं मलबे में दबे समानों को निकाल रही हैं। हमारी उनसे भी बात हुई। उन्होंने कहा- जब बुलडोजर घरों पर चल रहा था तो बच्चे रो रहे थे। लेकिन, किसी को उन पर भी तरस नहीं आया। कुछ लोग हंस रहे थे। हमारा तो सब कुछ बर्बाद हो गया। रिश्तेदारी से खाना आ रहा है, तब पेट भर रहा है। हम महिलाएं बच्चों के साथ अब कहां जाएं? सामान निकालने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। हमें घरों से सामान निकालने के लिए ज्यादा समय नहीं मिला। क्लास आठ में पढ़ने वाली शिवांगी ने बताया- हम लोग स्कूल गए थे। वहां हमें पता चला कि हमारे घर तोड़े जा रहे हैं। हम भाग कर जैसे ही घर पहुंचे, देखा कि हमारा पूरा मकान गिर चुका है। हम अपनी कॉपी किताब निकालने के लिए दौड़ तो हमे डांटकर भगा दिया गया है। कुछ किताबें मलबे में दब गई हैं। अब पढ़ने कैसे जाएंगे? बिना कागज देख ही दे दिया गया था आवास
एक ग्रामीण ने बताया- उखरा में बंजर भूमि पर प्रधानमंत्री आवास दे दिया गया। आवास देने से पहले कागजों की जांच पड़ताल की जाती है। इसके बाद जिओ टैगिंग होती है। तब जाकर मकान बनाने के लिए धनराशि दी जाती है। यह धनराशि भी किस्तों में दी जाती है। सवाल है- जब आवास महिला का स्वीकृत किया गया। उस समय क्या जमीन के कागजातों को नहीं देखा गया। अगर देखा गया तो आवास स्वीकृत कैसे कर दिया गया। इन लोगों के टूटे मकान
कार्रवाई में अनिल कुमार यादव, राजकुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, बृजपाल सिंह यादव, सुरेश चंद्र यादव, राम प्रकाश यादव, ब्रह्म किशोर यादव, भूप सिंह यादव, राम अवतार यादव, चरण सिंह यादव, राजीव यादव, जितेंद्र यादव, गुन्नू यादव, बृजकिशोर यादव, ब्रह्मानंद यादव, किशोर राम यादव, सनोज यादव, गंगा सिंह यादव, बलराम सिंह यादव, रामकिशन यादव, रामचंद्र यादव, रामनिवास यादव के घर टूटे हैं। ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के लिए 7.91 हेक्टेअर भूमि की मांग की गई थी
नवाबगंज के उखरा में जहां आवासों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई की गई है, वहीं से कुछ दूरी पर विद्युत निगम की ओर से ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर उप केंद्र के लिए 7.91 हेक्टेयर भूमि की मांग की गई थी। प्रशासन ने वहां बंजर पड़ी भूमि को विद्युत निगम को दे दिया था। इन दिनों वहां कार्य भी चल रहा है। बताया जा रहा है कि इसी के तहत मकान पर यह कार्रवाई की गई है। जानिए क्या है ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर?
ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC) एक परियोजना है, जिसका मकसद नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली को पारंपरिक बिजली घरों के साथ ग्रिड में जोड़ना है। इसका मकसद नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली को मांग वाले इलाकों तक पहुंचाना भी है। इस परियोजना के तहत, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली पैदा करने वाले इलाकों से उसे मांग वाले इलाकों तक पहुंचाने का काम होता है। पीड़ित परिवार से मिले सपा नेता उखरा में अतिक्रमण अभियान की भेंट चढ़े पीड़ित परिवारों से सोमवार को सपा प्रतिनिधिमंडल मिलने पहुंचा। परिवार से मिलने के बाद प्रतिनिधि मंडल ने DM और SP से भी मुलाकात की। एटा से सपा सांसद देवेश शाक्य ने कहा- बिना नोटिस दिए कार्रवाई करना सरासर गलत है। देवेश शाक्य ने कहा- प्रशासन की तरफ से ना कोई नोटिस चस्पा कराया गया और न ही सूचना दी गई। गैर संवैधानिक तरीके से बुलडोजर चला कर मकान करवा दिए गए हैं। यह बहुत निंदनीय है। पूरे मामले की एक रिपोर्ट बनाकर सपा प्रमुख को भेजी जाएगी। यह भी पढ़ें:- अयोध्या गैंगरेप, सपा नेता मोईद के नौकर से DNA मैच: हाईकोर्ट में सीलबंद लिफाफे में पेश की गई रिपोर्ट अयोध्या गैंगरेप मामले में सपा नेता मोईद खान के नौकर राजू की DNA रिपोर्ट पीड़िता से मैच हो गई है। इसकी पुष्टि अपर महाधिवक्ता विनोद शाही ने दैनिक भास्कर से की है। उन्होंने यह भी बताया कि मोईद खान का DNA मैच नहीं हुआ है। दरअसल, 12 साल की बच्ची से गैंगरेप मामले में सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सुनवाई हुई। आरोपी सपा नेता मोईद खान, उसके नौकर राजू की DNA रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश की गई। पढ़ें पूरी खबर…

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