इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में पति-पत्नी के रिश्तों और हिंदू विवाह रीति रिवाजों को लेकर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा, हिंदू विवाह में बिना किसी उचित कारण के जीवनसाथी को छोड़ना, अकेले रह गए जीवनसाथी के प्रति क्रूरता है। हिंदू विवाह की आत्मा की मृत्यु जैसा है। ये बातें जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने कही हैं। अभिलाषा श्रोत्री ने न्याय के लिए कोर्ट से गुहार लगाई थी
अभिलाषा श्रोत्री की शादी 1989 में राजेन्द्र प्रसाद श्रोत्री से हुई थी। 1991 में उनका एक बच्चा हुआ। दोनों पक्ष शादी के कुछ सालों बाद अलग हो गए। हालांकि, कुछ समय बाद फिर से साथ रहने लगे। उसके बाद 1999 में फिर से अलग हो गए। दूसरे समझौते के अनुसार, दोनों पक्ष फिर से साथ रहने लगे। हालांकि, वे आखिरकार 2001 में अलग हो गए और तब से अलग-अलग रह रहे हैं। पत्नी ने जज फैमिली कोर्ट झांसी द्वारा तलाक दिए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पति की ओर से पत्नी के खिलाफ क्रूरता का आरोप लगाया गया था कोर्ट ने पाया कि दोनों पक्षों के बीच विवाह संबंध खराब थे, क्योंकि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ कई तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाए थे। जिनमें पति द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता का आरोप भी शामिल था। आरोप लगाया गया कि पत्नी के क्रूर व्यवहार के कारण उसकी मां ने आत्महत्या कर ली। अदालत ने पाया कि आपसी समझौते के बाद दोनों पक्ष अलग हो गए थे और 23 साल से अलग-अलग रह रहे थे। वैवाहिक संबंधों को पुनर्जीवित करने की कोई गुंजाइश नहीं कोर्ट ने कहा,”लंबे समय से खराब संबंधों के मामलों में उनके वैवाहिक संबंधों को पुनर्जीवित करने की कोई गुंजाइश नहीं है। ” न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता-पत्नी कभी भी पति के साथ रिलेशन नहीं बनाना चाहती थी। वह पति के साथ अपने वैवाहिक संबंध को पुनर्जीवित नहीं करना चाहती थी। पत्नी का आचरण पिछले 23 साल से बिना किसी कारण के एक जैसा था। इसलिए न्यायालय ने तलाक के आदेश को बरकरार रखा और पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 5 लाख रुपये देने का आदेश दिया।