इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि वैवाहिक विवाद दंपति के बीच बना रहता है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत तलाक की कार्यवाही में किसी अन्य को पक्षकार बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती। हाईकोर्ट ने माना कि तलाक की कार्यवाही (वैवाहिक विवाद) केवल विवाह के पक्षकारों के बीच होती है। कोई तीसरा व्यक्ति हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत कार्यवाही में पक्षकार बनने की मांग नहीं कर सकता है। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की पीठ ने कृति गोयल की अपील पर आदेश पारित करते हुए कहा कि वैवाहिक विवाद उस जोड़े के बीच का विवाद ही रहता है, जो अपने वैवाहिक रिश्ते में मुश्किलें महसूस कर रहे हों। प्रतिवादी, जो पक्षकारों (पति और पत्नी) के लेनदार थे, उन्होंने आपसी सहमति से तलाक के लिए दायर की गई कार्यवाही में पक्षकार बनने की मांग की थी। प्रतिवादियों ने दलील दी कि चूंकि उन्हें पैसे मिलने थे, इसलिए उन्हें लगा कि पक्षों के बीच अलगाव से उनके अधिकारों पर असर पड़ेगा। पत्नी ने प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, अलीगढ़ के उस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की जिसमें उन्हें पक्षकार बनाने की अनुमति दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि यद्यपि तलाक से पक्षकारों के कुछ नागरिक अधिकार बदल सकते हैं, लेकिन आपसी सहमति से तलाक की कार्यवाही में तीसरे पक्ष को कभी भी पक्ष नहीं बनाया जा सकता। हाईकोर्ट ने अपील को यह कहते हुए मंजूर कर लिया गया कि विवाह विच्छेद के बाद भी प्रतिवादी अपने दावों के हकदार बने रहेंगे।