क्या आप जानते हैं कि 2024 में दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में 500 से ज्यादा पत्रकार अपने काम की वजह से जेल में हैं? मीडिया हक के लिए काम करने वाली पेरिस स्थित संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के मुताबिक दुनिया के लगभग आधे मुल्कों में पत्रकारों को दबाने के लिए जेल का दुरुपयोग किया जाता है। अब संयुक्त राष्ट्र ने भी माना है कि पत्रकारिता दुनिया के सबसे खतरनाक पेशों में से एक है। सच बोलने पर अपहरण, कैदी बनाए जाने या कत्ल किए जाने का खतरा पत्रकारों पर हमेशा रहता है। पत्रकारों के लिए पाकिस्तान सबसे खतरनाक मुल्कों में से एक है। पाकिस्तान में 2024 में 11 पत्रकारों की हत्या हुई है। हत्या आज सेंसरशिप का सबसे बड़ा हथियार बन गया है। पाकिस्तान में किसी पत्रकार को ब्लैकमेल करने का सबसे आसान तरीक़ा यही है कि उसे ‘भारतीय एजेंट’ करार दिया जाए। मुझे कई बार इस इल्ज़ाम का सामना करना पड़ा है। मुझे याद है कि दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच गतिरोध पैदा हो गया था। आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला करके दोनों मुल्कों को जंग की ओर धकेलने की कोशिश की थी। उस तनाव की वजह से भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के कई डिप्लोमैट्स को निष्कासित कर दिया था। दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच हवाई उड़ानें भी निलंबित कर दी गई थीं। उस तनाव के बीच मैंने तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा का इंटरव्यू करने की कोशिश की थी। उनसे संपर्क करना मुश्किल था। इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के प्रभारी सुधीर व्यास मेरे अच्छे दोस्त थे। उन्होंने दोनों मुल्कों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों के बावजूद मुझे और मेरे कैमरामैन को वीजा जारी करवाने में काफी मदद की। मैं कोलंबो के रास्ते दिल्ली पहुंचा, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं थी। आखिरकार, मैं अक्टूबर 2003 में यशवंत सिन्हा का इंटरव्यू लेने में सफल हुआ और उन्होंने यह दावा करके दुनिया को चौंका दिया कि भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान आने के लिए तैयार हैं। यह एक बड़ी खबर थी। मेरे इस इंटरव्यू ने अचानक दोनों देशों के बीच तनाव को कम कर दिया। पाकिस्तानी मीडिया में चरमपंथियों और उनके प्रतिनिधियों ने मुझे भारतीय एजेंट घोषित कर दिया। मुझे तब और भी परेशानी का सामना करना पड़ा, जब जनवरी 2004 में भारतीय वजीर-ए-आजम वाजपेयी ने पाकिस्तान आने का एलान कर दिया। साल 2005 में पाकिस्तानी फौज के प्रवक्ता ने सरकारी टेलीविजन चैनल पर मुझे पाकिस्तान विरोधी घोषित कर दिया, क्योंकि वे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आए भूकंप के मेरे कवरेज से खुश नहीं थे। लेकिन अब ‘देशद्रोही’ या ‘भारतीय एजेंट’ का इल्जाम पाकिस्तान में मजाक बन गया है। अब लोग उन लोगों की विश्वसनीयता पर संदेह करते हैं, जो खुद को देशभक्त बताते हैं। कुछ दिन पहले मैंने कुछ प्रस्तावित संवैधानिक संशोधनों पर चर्चा करने के लिए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ को अपने टीवी शो पर बुलाया था। इंटरव्यू के आखिर में मैंने उनसे भारत नियंत्रित जम्मू एवं कश्मीर में चुनावों के बारे में कुछ सवाल पूछे। ख्वाजा आसिफ ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के बारे में कुछ सकारात्मक बातें की। लेकिन यही बात हिंदुस्तान में एक सियासी बवाल में बदल गई। इस इंटरव्यू के कारण पैदा हुए विवाद ने आखिरकार उमर अब्दुल्ला को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि पाकिस्तान को अपने यहां की जम्हूरियत की फिक्र करनी चाहिए और भारत के मामलों में दख़ल नहीं देना चाहिए। ख्वाजा आसिफ ने 2014 में मेरे और मेरे चैनल के लिए भी इस तरह की समस्याएं पैदा कर दी थीं, जब मैं कराची में बाल-बाल बच गया था। तब मुझे छह गोलियां लगी थीं। उनमें से दो आज भी मेरे शरीर में हैं। मैंने इस हमले के लिए तत्कालीन आईएसआई प्रमुख जनरल जहीर उल-इस्लाम पर इल्जाम लगाया था। ख्वाजा आसिफ उस समय नवाज शरीफ के रक्षा मंत्री थे। उन्होंने मेरे चैनल के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर किया। मेरे टीवी चैनल को पाकिस्तान में लंबे समय तक बैन रखा गया। चूंकि वह सियासत-दां हैं। लिहाजा, वे मेरे चैनल के खिलाफ अपने इल्जाम को भूल गए और इन दिनों वे इस बात से बेइंतहा खुश हैं कि भारतीय वजीर-ए-आजम जियो न्यूज पर उनके इंटरव्यू का संदर्भ देकर विरोधियों की आलोचना कर रहे हैं।