ब्यूरोक्रेसी में इस समय एक मैडम की पुलिस कप्तानी छीने जाने की चर्चा है। मैडम का अतीत उनके भविष्य पर भारी पड़ रहा है। जिस साहब से पहले लड़ाई थी, वही उनके जिले में आ गए। फिर खींचतान शुरू हुई और मैडम को विदा होना पड़ा। आजकल एक बाहुबली बहुत परेशान हैं। लाल टोपी उतार कर भगवा झंडा थामने में लगे रहे, लेकिन जब मुसीबत आई तो सबने साथ छोड़ दिया। नौकरशाहों में एक लिस्ट को लेकर खलबली मच गई है। इसमें किस-किस का नाम है, यह पता करने की कोशिश की जा रही है। इस शनिवार को राजनीति और नौकरशाही के ऐसे ही रोचक किस्से सुनी-सुनाई में पढ़िए… मैडम का अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा
हाल ही में IPS अफसरों के ट्रांसफर हुए हैं। इनमें एक जिले की महिला कप्तान भी शामिल हैं। उन्हें शहर तो अच्छा मिला है, लेकिन रुतबा कम कर दिया गया। मैडम का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें वो इमोशनल दिख रही हैं। उनके हटाए जाने को लेकर इन दिनों सत्ता के गलियारों में चर्चा का बाजार गर्म है। चर्चा है कि मैडम का अतीत उनके आगे के सफर में बाधा बन रहा है। हुआ यूं कि कुछ साल पहले एक बड़े शहर में साफ-सफाई का जिम्मा संभालने वाले अफसर का इस पुलिस अधिकारी से विवाद हो गया। मैडम उस समय ट्रैफिक देख रही थीं। बताते हैं कि ये विवाद प्रदेश के मुखिया तक भी पहुंचा था। बड़ों के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझ तो गया, लेकिन दोनों का तबादला कर दिया गया। मैडम को एक जिले की कमान दी गई और उस अफसर को विकास करने वाले महकमे में तैनाती दे दी गई। दो महीने पहले ये अफसर उसी जिले में कलेक्टर बनकर पहुंच गया, जहां मैडम कप्तान थीं। तभी से कहा जाने लगा कि यहां से एक अफसर का तबादला तय है। हुआ भी यही। दो-ढाई महीने में ही फिर खींचतान शुरू हो गई। इस बार महिला अधिकारी की वहां से छुट्टी कर दी गई। चर्चा है कि अगर ये खींचतान शुरू न हुई होती तो मोहतरमा को भी अच्छा जिला मिल जाता। बाहुबली को नहीं मिल रहा अभय
अवध क्षेत्र के एक बड़े बाहुबली हैं। बीते छह महीने से भगवा टोली में आने के बाद से लोग सोच रहे थे कि अब उनका रामराज चलेगा। मगर ये हो नहीं पाया। हाल ही में उनका एक पुराने मामले का आदेश रिजर्व में रखा गया है। उन्हें डर है कि वह बाजी हार सकते हैं। लिहाजा, लखनऊ से दिल्ली तक मदद मांग रहे हैं, फिलहाल न कोई आश्वासन मिला है, न ही मदद। जिन लोगों ने छह महीने पहले उन्हें बगावत के लिए उकसाया था, वह भी अब दाएं-बाएं हो रहे हैं। हालत यह है कि वह अब अपना माननीय का दर्जा छोड़ने को भी तैयार हैं। सिर्फ भगवा दल से आश्वासन चाहते हैं कि उप चुनाव होने पर उन्हीं के परिवार को टिकट मिले, लेकिन यह आश्वासन भी कोई देने को तैयार नहीं है। माननीय को मिली बोरा शंकर की उपाधि
चर्चा है कि एक माननीय को बोरा शंकर और उनके भाई को झोला शंकर की उपाधि दी गई है। लोगों को कहना है कि माननीय से काम कराना है तो बोरा भरना होगा। वैसे माननीय की एक सबसे बड़ी खासियत है कि वो बात करते-करते सो जाते हैं। उनसे मिलने आए लोग रात-रात भर उनके बैठक वाले कमरे में उनकी हामी का इंतजार करते रहते हैं। वैसे नेता जी जब माननीय बने, तब चर्चा इस बात की भी थी कि उनके आगे-पीछे घूमने वालों को रोजगार मिलेगा। उन्हें अब एक शहर से दूसरे शहर घूमने का भी अवसर मिलेगा। लेकिन, जल्द ही लोगों का भ्रम टूट गया। लोगों ने यह जाना कि बात तभी बनेगी, जब बोरा भरेगा। वहीं, उनके भाई से काम कराना होगा तो झोला भरना होगा। कमाई वाले अफसरों की सूची का डर
पैसे का हिसाब-किताब रखने वाले महकमे का खौफ प्रदेश की नौकरशाही में सिर चढ़कर बोल रहा है। कहा जा रहा है कि इस विभाग ने कुछ अफसरों की सूची तैयार की है। इस सूची में कुछ ऐसे नाम हैं, जो मौजूदा सरकार में अच्छी पोस्टिंग हासिल कर चुके हैं। नाम किसका- किसका है, यह तो किसी को नहीं पता, लेकिन इस सूची की चर्चा पूरे महकमे में है। कुछ तो शेखी बघारने के लिए दावा भी कर रहे हैं कि मुझे सारे नाम पता हैं, लेकिन मैं बताऊंगा नहीं। वहीं, हर वो अफसर परेशान है, जिसे पता है कि उसने कहां-कहां गलत किया है। कहा यह जा रहा है कि जिन लोगों का नाम है, वह दूसरे खेमे के लोग हैं और सूची यहां से नहीं वहां से तैयार हुई। दिल्ली के प्रति समर्पण भारी पड़ा
सूबे की राजनीति में दखल रखने वाले बड़े राजनीतिक घराने की छोटी बहू भी भगवा दल की राजनीति का शिकार हो गई। छोटी बहू ने लखनऊ को नजर अंदाज कर अपना पूरा प्रयास दिल्ली में किया। हर महीने दिल्ली दरबार पहुंचीं। उम्मीद थी कि दिल्ली से आदेश आएगा तो यूपी के नेताओं को कौन पूछे। लेकिन, लोकसभा चुनाव बाद स्थितियां बदल गई हैं। दिल्ली दरबार ने यूपी के राजनीतिक कामकाज में दखल देना लगभग बंद कर दिया। अब यूपी वालों को ही छोटी बहू का राजनीतिक भविष्य तय करना है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि दिल्ली में ज्यादा समर्पण भाव दिखाने के कारण ही यूपी में उन्हें दोयम दर्जे का रखा गया है। परिवार से अलग हैं, तो उधर से कोई आश्वासन मिला नहीं। यहां जिस उम्मीद से आई थीं, वह मिला नहीं। अब करें क्या, कुछ दिन नाराज रहीं, फिर पद ग्रहण कर लिया। ये भी पढ़ें… भगवा दल में अब नो टेंशन वाले नेताजी:मंत्री के पीआरओ की सोने की चेन चर्चा में; बड़े साहब के दफ्तर में ठेकेदार की बैठकी

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