सोनभद्र का रजखड़ गांव। सड़क से लगे घरों के बाहर नल लगा दिए हैं, लेकिन गांव के अंदर पाइप लाइन डालकर छोड़ दिया गया। कुछ घरों तक तो पाइप लाइन भी नहीं डाली गई। गांव वालों से आधार कार्ड लिया जाता है। उनसे कहा जाता है, आधार कार्ड की कॉपी देने के बाद नल लग जाएगा। इसी आधार पर सरकारी कागजों पर आंकड़े भर दिए जाते हैं। जल जीवन मिशन में इसी तरह से फर्जीवाड़ा किया जाता है। अगस्त में सीएम योगी आदित्यनाथ ने जल जीवन मिशन की समीक्षा बैठक की। विभाग के आला अधिकारियों समेत जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह भी शामिल हुए। सीएम योगी ने निर्देश दिए कि 30 सितंबर तक बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में जल जीवन मिशन का काम पूरा कर लिया जाए, ताकि हर घर जल पहुंचने लगे। दैनिक भास्कर ने मिर्जापुर, सोनभद्र, चित्रकूट और महोबा में पड़ताल की। इसमें सामने आया कि अधिकारियों और कंपनी ने काम से ज्यादा सरकार को गुमराह करने पर ध्यान दिया है। जो अधिकारी इन कंपनियों के काम की मॉनिटरिंग के लिए रखे गए, वही इनके साथ मिलकर धांधली कर रहे हैं। हम सोनभद्र का रजखड़ गांव पहुंचे। वहां मुख्य सड़क के किनारे के घरों में नल लगे थे, लेकिन गांव के अंदर नहीं। ग्रामीण बालेश्वर पटेल कहते हैं- पूरे गांव में कुछ जगह ही नल लगे हैं। बाकी खुदाई करके पाइप डाल कर चले गए। जल जीवन मिशन से जुड़ी कंपनियों के कुछ कर्मचारियों से हमने बात की। उन्होंने बताया कि सबसे पहले गांव के आगे के हिस्से में काम किया जाता था, ताकि अगर कोई जांच करने आए तो उसे सब कुछ ठीक दिखे। गांव के जिन हिस्सों में मशीनें ले जाने में दिक्कत होती है, वहां का काम अधूरा छोड़ दिया गया। गांव में आगे के घरों में नल लगाने की वजह यह है कि हर गांव की फोटो भी अपलोड करनी होती है। कहीं-कहीं जल्दबाजी में जांच-पड़ताल और अफसरों के दबाव के कारण अधूरे काम के बावजूद पानी की सप्लाई भी शुरू कर दी गई। इससे गांव के कुछ हिस्सों में पानी आ रहा है, बाकी हिस्से आज भी सूखे हैं। मिर्जापुर के लहुरियादह, चित्रकूट के अहिरा, घूरेहटा, सोनभद्र के रजखड़, महोबा के लेवा गांवों में ऐसी ही स्थिति देखने को मिली। हमारी टीम मिर्जापुर के भैसोड़ बलाय पहाड़ गांव पहुंची। यहां जल जीवन मिशन की टोंटियां तो लगी हैं, लेकिन किसी के घर से 300 मीटर दूर, तो किसी के घर से 200 मीटर दूर। गांव के जगलाल यादव कहते हैं- मेरे घर का नल मेरे रिश्तेदार की जमीन पर लगा दिया गया। वहां से मेरा घर 200 मीटर दूर है। अभी तो पानी नहीं आ रहा, लेकिन जब पानी आएगा तो दिक्कत शुरू हो जाएगी। हमारी घरवाली को इतनी दूर पानी लेने जाना होगा। गांव में किसी की जमीन पर एक लाइन से 5 नल लगा दिए गए। गांव के अरुण यादव कहते हैं- चार से पांच परिवारों की टोंटियां मेरी ही जमीन पर लगा दी गई हैं। यह गांव का इलाका है। कभी भी लड़ाई-झगड़ा हो सकता है, लेकिन अधिकारी यह नहीं जानते। हीरामणि यादव बताते हैं- हम लोगों ने ऐसे कनेक्शन पर सवाल उठाया। इस पर ठेकेदार कहते हैं, सरकार ने हमें इतनी लंबी पाइप नहीं दी, जो हम आपके घर तक कनेक्शन पहुंचा सकें। घर तक पाइप पहुंचाने की एवज में रुपए की मांग भी की गई। हीरामणि कहते हैं- आने वाले दिनों में अगर दो परिवारों में लड़ाई होती है, तो पानी की समस्या फिर खड़ी हो जाएगी। आखिर काम में फर्जीवाड़ा किस तरह से हो रहा, इसका खुलासा मिर्जापुर के लहुरियादह गांव में हुआ। यहां हमारी मुलाकात पन्नालाल से हुई। उन्होंने बताया- गांव में घरों के सामने टोंटियां तो लगा दी गईं, लेकिन पानी नहीं आ रहा। दरअसल, कंपनियों के कर्मचारियों ने टोंटी लगाकर हम लोगों से कागज पर अंगूठा लगवा लिया। हमारे आधार कार्ड की फोटो खींच कर चले गए। इस तरह की शिकायत हमें लहुरियादह, देवहट, कमला गहरवार जैसे कई गांवों में मिली। इस खेल को समझने के लिए हमने जब जल जीवन मिशन से जुड़े ठेकेदारों से बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया- जिलों में काम जल्दी पूरा करने का दबाव है। मान लीजिए कि एक गांव में 100 घर हैं, तो हम 100 में से 20-30 घर तक पाइप पहुंचा कर टोंटी लगा रहे हैं। शुरुआत में पानी भी आ जाता है। इसके बाद उनसे कंसेंट फार्म पर साइन करा लेते हैं। उसी को दिखाकर बाकी गांव वालों से कहा जाता है कि इन्होंने आधार कार्ड दे दिया, इसलिए इनके पास पानी पहुंच गया। नल की चाहत में गांव वालों से आधार कार्ड की फोटो ले ली जाती है। इसी आधार पर सरकारी कागजों पर आंकड़े भर दिए जाते हैं। अब हमारा सवाल था कि इसका मतलब काम वहां कभी पूरा ही नहीं होगा? ठेकेदार बताते हैं- ऐसा नहीं है कि काम नहीं पूरा होगा, पूरा किया जाएगा। हमें बस एक्स्ट्रा समय मिल जाता है। क्योंकि लोकल अधिकारी को तो मैनेज किया जा सकता है, लेकिन अगर ऊपर से जांच आ गई तो मुश्किल होगी। नल में पानी नहीं, ऐसे करते हैं जुगाड़, पढ़ाई छोड़नी पड़ी… 1- बारिश का पानी इकट्‌ठा करते हैं, कीड़े पड़ जाते हैं: मिर्जापुर के लहुरियादह गांव में पेयजल का संकट इस कदर है कि लोग बरसात वाला कीड़े का पानी पीने को मजबूर हैं। गांव की बुजुर्ग महिला धनपतिया बताती हैं- इतनी अवस्था हो गई कि अब दूर से पानी लाने की ताकत नहीं रही। मजबूरी में छप्पर से गिरने वाला बरसात का पानी डिब्बे में बाहर कर रख लेते हैं। फिर वही पानी छान कर पीते हैं। इस गांव के कई घरों में हमें छप्पर के नीचे बरसात का पानी भरने के लिए डिब्बे रखे हुए भी मिले। गांव में पेयजल के लिए एक-दो हैंडपंप हैं, जो गर्मियां आते ही खराब हो जाते हैं। लोगों को तकरीबन 150 फीट पहाड़ी से नीचे उतर कर झरने से गिर रहे पानी को पीने के लिए लाना पड़ता है। गांव के लोगों ने ये भी बताया कि यहां विभाग के लोग आते हैं और उनसे पानी आने का झूठा वादा करके अंगूठे लगवाते हैं। आधार कार्ड की फोटो खींचते हैं। फिर चले जाते हैं, लौट कर नहीं आते। 2- अभी हैंडपंप से पानी, फिर 2 से 3 KM का सफर: भास्कर की टीम मिर्जापुर से लगे मध्यप्रदेश बॉर्डर के पास आखिरी गांव भैसोड़ बलाय पहाड़ पहुंची। यह गांव पत्थर के पहाड़ों के बीच बसा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हर घर में पानी आ रहा है। गांव में हमें सरकारी हैंडपंप के पास 15 साल की सपना यादव कपड़े धोते मिली। उसने कहा- पाइप में टोटियां लगी हैं, लेकिन कभी पानी नहीं आया। अभी तो बरसात का मौसम है तो यह हैंडपंप पानी दे रहा है। गर्मी में यह भी पानी नहीं देता। तब 2 से 3 किमी दूर जाकर पानी लाना पड़ता है। स्कूल जाने से पहले सुबह 4 बजे तक उठते हैं, उसके बाद शाम तक के लिए पानी स्टोर करते हैं। स्कूल से आने के बाद फिर यही करते हैं। 3- बच्चों की पढ़ाई छूट रही: महोबा के कबरई ब्लॉक का गांव बिलबई। यहां पानी को लेकर काफी समस्या है। गांव के बाहर सड़क किनारे लाइन से पानी भरने के लिए स्टील के मटके रखे थे। हमने वहां रुक कर जब महिलाओं से इसके बारे में पूछा, तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। पशुओं का चारा लेकर जा रही रामश्री से कहा- न तो पीने और नहाने-धोने के लिए पानी है, न ही पशुओं के लिए। जल जीवन मिशन वाले आकर केवल खुदाई कर चले गए। कहते हैं, पाइप लाइन डाल दी है। जब पाइप लाइन डाल दी है, तो पानी क्यों नहीं दे रहे? नल पर ही पानी भरने के लिए अपने नंबर का इंतजार कर रही पूजा ने बताया- इस साल पढ़ाई छोड़ दी। एक साल पहले तक स्कूल जाती थी। इसी पानी के कारण कभी समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाई। हमेशा लंबी लाइन में लग कर इंतजार करने में ही देर हो जाती थी। सबसे बड़ा डर- पुरानी योजनाओं जैसा हाल न हो जाए
बुंदेलखंड और विंध्य का क्षेत्र हमेशा से ही प्यासा रहा है। पहले भी योजनाएं बनती रही हैं, लेकिन कभी गांव वालों को पानी नहीं मिला। अब जल जीवन मिशन योजना आई तो उम्मीद थी, लेकिन यह भी टूटती जा रही है। हम चित्रकूट जिले के गांव रैपुरा पहुंचे। रैपुरा में जल निगम का पुराना प्रोजेक्ट लगा हुआ है। तकरीबन 4 साल पहले यहां जल निगम ने कुछ घरों में पाइप लाइन डालकर पानी पहुंचाया था। अब फिर से जल जीवन मिशन के तहत यहां दोबारा काम हो रहा है। गांव में छूटे हुए करीब 25% घरों को आस जगी कि अब यहां इस नई योजना के तहत पानी पहुंच जाएगा। लेकिन, काम करने वाली कंपनी ने फर्जी रिपोर्टिंग करके जल जीवन मिशन की सरकारी वेबसाइट में यहां 100 फीसदी काम पूरा होना बताया। हकीकत में सिर्फ गांव में इधर-उधर खुदाई करके पाइप लाइन डाली गई, बाकी वैसे ही छोड़ दिया गया। हम गांव में अंदर पहुंचे तो हमें विष्णु कुमार मिले। अपने घर ले गए, जहां उन्होंने दिखाया कि कैसे पाइप लाइन डालकर छोड़ दिया गया। पिछले 6 महीने से काम बंद है। ये खबर भी पढ़ें… यूपी के जल जीवन मिशन में छल-कपट:सरकारी रिकॉर्ड में 100% घरों में पानी, हकीकत- बस टोटियां लगीं, पानी कभी आया नहीं 2023 में महोबा को जल जीवन मिशन के कार्य प्रगति के क्षेत्र में देश में दूसरी रैंक भी मिल चुकी है। दैनिक भास्कर की टीम ने 10 दिन तक चित्रकूट और महोबा के 50 गांवों में पड़ताल की। क्या हर घर, नल से पानी मिल रहा? क्या इन जिलों में जल जीवन मिशन के प्रोजेक्ट को पूरा दिखाने के लिए आंकड़ों में हेर-फेर किया गया? पूरी खबर पढ़ें…

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