यूपी में कुछ सरकारी टीचर ईंट-भट्ठा, ट्रांसपोर्ट और हॉस्पिटल चलाने से लेकर डिग्री कॉलेज खोलकर नकल कराने का ठेका ले रहे हैं। रसूख और पैसों के आगे सारे सरकारी कायदे-कानून ताक पर रख दिए। जिस पढ़ाई के लिए सरकार से सैलरी ले रहे, सिर्फ वही काम नहीं कर रहे। मतलब, टीचर की जगह बिजनेसमैन बन गए हैं। इसको लेकर एटा के DM ऑफिस में अगस्त के आखिरी हफ्ते में एक गुमनाम लेटर पहुंचा। इसमें लिखा है- कई टीचर महीनों से स्कूल नहीं आ रहे। डिग्री कॉलेज और दूसरे बिजनेस कर रहे हैं। वही एटा, जिसके प्रभारी खुद बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह हैं। सरकारी स्कूलों के टीचर की सच्चाई जानने के लिए दैनिक भास्कर एटा और उसके पड़ोसी जिले कासगंज पहुंचा, यहां इंवेस्टिगेशन किया। इसमें जो निकलकर सामने आया, वह चौंकाने वाला था। जानिए सरकारी शिक्षक पढ़ाना छोड़कर क्या-क्या कर रहे… हम एटा के अलीगंज तहसील के कुढ़ा प्राथमिक विद्यालय में 4 सितंबर, 2024 को दोपहर करीब 12 बजे पहुंचे। गेट पर ताला लगा मिला। सवा घंटे बाद भागे-भागे शिक्षामित्र उमेश चंद्र आए। हमने हिडन कैमरे पर उनसे बात की। उन्होंने कहा- स्कूल में केवल तीन अध्यापक तैनात हैं। हेडमास्टर बसंत कुमार यादव हफ्ता-पंद्रह दिनों में एक बार स्कूल आते हैं। हाजिरी लगाकर चले जाते हैं, क्योंकि एटा में उनका मलखान सिंह पीजी कॉलेज और स्कूल भी हैं। 28 अगस्त को एबीएसए साहब ने स्कूल चेक किया था, ये तब भी नहीं मिले थे। फिर बसंत 31 तारीख को साइन करके चले गए और आज तक नहीं आए। टीचर स्कूल नहीं आते, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती? इस सवाल पर शिक्षामित्र ने कहा कि 15 हजार रुपए ऊपर पहुंच जाते हैं। हम अगले दिन गांव (कुढ़ा) से करीब 75 किमी दूर बसंत के मलखान सिंह पीजी कॉलेज, रुद्रपुर एटा पहुंचे। पहले कॉलेज से बाहर रहकर आसपास के लोगों से बातचीत की। पता चला कि बसंत कुमार यादव का हरिदेवी इंटर कॉलेज, मलखान सिंह पीजी कॉलेज, एक हॉस्पिटल और एक ईंट-भट्ठा है। ट्रांसपोर्ट का भी काम है। हम स्टूडेंट बनकर मलखान सिंह पीजी कॉलेज के अंदर पहुंचे। मेन गेट से घुसते ही कुछ कमरों में हॉस्पिटल में यूज होने वाले बेड पड़े थे। हमने BSc में एडमिशन लेने की बात कही। यहां हमारी मुलाकात कॉलेज के कर्मचारी महाराज सिंह से हुई। महाराज सिंह ने बताया- कॉलेज बसंत यादव का है। वो कुढ़ा के सरकारी स्कूल में हेडमास्टर हैं। कॉलेज में एडमिशन के लिए आपको 3 हजार रुपए देने होंगे। प्रैक्टिकल के 500 और व्यवस्था (नकल) के 1000 लगेंगे। पेपर देने के लिए खुद आना पड़ेगा। कोई दिक्कत नहीं है, पास हो जाओगे। इस बातचीत के दौरान हमने महाराज सिंह से बसंत कुमार यादव का मोबाइल नंबर मांगा। उसने हमें बताया कि प्रॉस्पेक्टस पर संस्थापक/सचिव ओमेंद्र यादव के नाम के नीचे मोबाइल नंबर है, यही उनका नंबर है। जब हमने इस नंबर पर फोन मिलाया, तो बसंत यादव ने फोन उठाया। कर्मचारी ने भी बसंत यादव की आवाज की पुष्टि की। हमने एक एडमिशन फॉर्म खरीद लिया, जिसके प्रॉस्पेक्टस पर बसंत कुमार यादव का कोई फोटो नहीं था। हमने पूछा, इसमें बसंत सर की कोई फोटो क्यों नहीं है? महाराज सिंह ने कहा- वो सरकारी शिक्षक हैं, इसलिए उनकी फोटो नहीं छपी है। हमारा पीछा किया गया, धमकी दी गई
इसी दौरान बसंत कुमार यादव को शक हो गया। उसने अपने दूसरे कर्मचारी को फोन कर दिया। इसके बाद हमें घेरने की कोशिश की गई। भास्कर टीम किसी तरह निकलकर अपनी गाड़ी के पास आई और वहां से निकल गई। थोड़ी देर बाद हमें फोन पर खबर नहीं छापने की धमकी दी गई। एक CCTV का फुटेज हमारी तलाश करने के लिए वायरल कर दिया गया। हमारी पड़ताल में दूसरा नाम दिनेंद्र प्रताप सिंह का सामने आया। हमें पता चला कि दिनेंद्र एटा के जैथरा विकासखंड के नगला सुमित गांव में हेडमास्टर के पद पर तैनात हैं। हम स्टूडेंट बनकर इनके कॉलेज रामदुलारी रघुवीर दयाल डिग्री कॉलेज पहुंचे। कॉलेज में ताला लगा था। वहां से 7 किमी पहले जैथरा कस्बे में इस कॉलेज का सिटी ऑफिस दिनेंद्र प्रताप सिंह ने अपने ही घर में बना रखा है। हम जब वहां पहुंचे, तो सबसे पहले उनके भाई प्रमोद सिंह से मुलाकात हुई। प्रमोद सिंह भाजपा नेता हैं। हमने उनसे दिनकर मास्टर साहब के बारे में पूछा और बीएससी में एडमिशन लेने की इच्छा जताई। 10 मिनट बाद दिनेंद्र प्रताप सिंह (दिनकर) बाहर आए। हमने छिपे कैमरे पर बातचीत रिकॉर्ड की। अगले दिन हम दिनेंद्र प्रताप सिंह के तैनाती वाले प्राइमरी स्कूल नगला सुमित पहुंचे। यहां पहुंचकर हमें पता चला कि जहां दिनेंद्र की तैनाती है, वहां से उसका डिग्री कॉलेज सिर्फ एक से डेढ़ किमी ही दूर है। जब हम स्कूल में दाखिल हुए तो वहां हमें दिनेंद्र प्रताप सिंह बच्चों को पढ़ाते मिले। वहां पता चला, इस स्कूल में शिक्षामित्र मिलाकर 3 टीचर, 51 बच्चे हैं। 3 टीचरों में एक महिला टीचर मैटरनिटी लीव पर बताई गईं, जबकि शिक्षामित्र किसी ट्रेनिंग में गए हैं। इसलिए दिनेंद्र स्कूल आए थे। 7 सितंबर को सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर हमारी टीम कासगंज जिले के पटियाली तहसील के ग्राम झाउजोर के उच्च प्राथमिक कम्पोजिट विद्यालय पहुंची। स्कूल में बच्चे खेल रहे थे। एक अध्यापक स्कूल में मौजूद मिले। हमने स्कूल में तैनात अध्यापकों के बारे में पूछा, जिसमें गोविंद गुप्ता का नाम सामने आया। गोविंद गुप्ता इसी स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात हैं। उनका रामसरन डिग्री कॉलेज अलीगंज में राई रोड पर है। हमें बताया गया, 20 मिनट इंतजार कर लीजिए, हो सकता आ जाएं। हमने करीब 30 मिनट तक इंतजार किया, लेकिन वह नहीं आए। फिर हम एटा के अलीगंज कस्बा से करीब 2.5 किमी दूर राई रोड पर स्थित रामसरन डिग्री कॉलेज में गोविंद गुप्ता की तलाश में पहुंचे। यहां एडमिशन कार्यालय में बैठे बाबू से बातचीत हुई। मैंने गोविंद गुप्ता के बारे में पूछा। उन्होंने बताया, 2 बजे के बाद मुलाकात होगी। अब यहां सरकारी स्कूल के अध्यापक और डिग्री कॉलेज के कर्मचारी की बातचीत से क्लियर हो चुका था कि ये कॉलेज गोविंद गुप्ता का है। यहां पर भी नकल करवा कर छात्र पास करवाए जाते हैं। कॉलेज के कार्ड पर साफतौर से स्कूल का कोड (2564) और नाम श्री रामसरन महाविद्यालय, राई रॉड अलीगंज, एटा लिखा था। निदेशक डॉ. गोविंद गुप्ता और सचिव के नाम के नीचे ऋतु गुप्ता लिखा था। समझिए कैसे मैनेज करते हैं सरकारी स्कूल और डिग्री कॉलेज: श्री रामसरन महाविद्यालय अलीगंज और सरकारी कम्पोजिट विद्यालय झाउजोर की दूरी करीब 15 किमी है। झाउजोर एटा और कासगंज, फर्रुखाबाद जनपद की सीमा पर स्थित है। कासगंज का बॉर्डर क्षेत्र होने की वजह से अधिकारियों का निरीक्षण कम ही हो पाता है। अलीगंज विकास खंड क्षेत्र के ग्राम लुहारी का प्राइमरी स्कूल। हम 7 सितंबर की दोपहर 1 बजकर 55 मिनट पर यहां पहुंचे। छुट्टी होने के बाद बच्चे स्कूल से निकल रहे थे। स्कूल में हमारी मुलाकात इंचार्ज पातीराम और शिक्षामित्र से हुई। पातीराम ने बताया- प्रधानाध्यापक सुरेश मलानी महीने में एक या दो बार ही स्कूल आते हैं। आखिरी बार वह 2 सितंबर को आए थे। रजिस्टर पर पिछले दिनों की हाजिरी लगाकर चले गए। उसके बाद से वो स्कूल नहीं आए हैं। वह जिस दिन भी स्कूल आते हैं, पहले से खाली पड़े कॉलम में हाजिरी लगा कर चले जाते हैं। ये एटा की तत्कालीन डायट प्राचार्य शिवकुमारी राव के नजदीकी रिश्तेदार हैं। साथी टीचर बताते हैं, अधिकारी जब हमसे रिपोर्ट मांगते हैं तो हम उनको देते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। आइए अब आपको बताते हैं कैसे ये नेक्सस काम करता है
अध्यापक महीने में एक या दो बार स्कूल जाकर पूरे महीने की हाजिरी लगाकर वेतन कैसे निकाल लेते हैं? पड़ताल में सामने आया कि ये शिक्षक अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा, यानी करीब 15 से 20 हजार रुपए महीने बीआरसी या बीएसए के बाबुओं को देते हैं। इस वसूली का एक हिस्सा ऊपर बैठे अधिकारियों के पास भी जाता है। ऐसे अध्यापक हाजिरी रजिस्टर में उच्चाधिकारियों के नाम से छुट्टी की एप्लिकेशन छोड़ कर चले जाते हैं। जब कोई अन्य अधिकारी निरीक्षण करने जाता है, तो शिक्षक अपने आपको इस लेटर के माध्यम से सुरक्षित कर लेते हैं। किसी भी लीव के लिए शिक्षकों को अब प्रेरणा एप पर अप्लाई करना होता है। लेकिन दलील दी जाती है कि अचानक जरूरत पड़ी तो वो लिखित में दे गए। हमने इस बारे में प्रदेश की शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा और बेसिक शिक्षा डायरेक्टर प्रताप सिंह बघेल से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन नहीं उठा। एटा के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी दिनेश कुमार ने कहा कि 30 मिनट समय दीजिए, हम फोन करके बताते हैं। लेकिन, उनका फोन नहीं आया।