राम मंदिर आंदोलन आजादी की लड़ाई से कम नहीं था। अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ कर इस देश और हिंदू समाज और राष्ट्र का अपमान किया गया। फिर से मंदिर बनाना हमारी अस्मिता से जुड़ा था, क्योंकि गुलामी की निशानियां चिपका कर नहीं रखी जाती है। यह लड़ाई देश हित के लिए की गई। राम मंदिर फिर से बनाना हिंदुस्तान की मूंछ का सवाल था। राम मंदिर हिंदुस्तान के अपमान का परिमार्जन है। ये कहना है राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का। वे सोमवार को इंदौर के दौरे पर रहे। इस दौरान इंदौर के सामाजिक, धार्मिक, व्यपारिक और कई अन्य संगठनों ने उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से राधे राधे बाबा, अण्णा महाराज, अमृत राम महाराज, प्रवीणानंद महाराज, स्वामी सत्यानंद महाराज के साथ कई संतों ने समस्त हिन्दू समाज और आयोजन समिति की ओर से चंपत राय का अभिनंदन किया। चंपत राय ने कहा- हजारों संतों ने राम मंदिर के प्रति जागरण किया। ये किसी एक व्यक्ति से संभव नहीं है। 500 साल में कितने लोगों का जीवन गया, ये कोई नहीं जानता। पिछला पैर तभी उठाएं, जब अगला जम जाए इससे पहले उन्होंने विश्वम संस्था के कार्यक्रम श्रीराम जन्मभूमि गौरव यात्रा को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने अयोध्या राम मंदिर की तरह मथुरा-काशी में मंदिर निर्माण और दर्शन के सवाल पर बयान दिया। अयोध्या के लिए एक हजार साल चले संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा- हमें उतना ही खाना चाहिए, जितना पच जाए। तभी खाना चाहिए, जब पहला पच जाए। वरना डाइजेशन की समस्या हो जाएगी। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा- जब आंदोलन से जुड़ा तब मेरी उम्र 39 साल थी। अब मथुरा-काशी के लिए आज जो लोग 39 साल के हैं, वे आगे आएं। इस दौरान उनसे पूछा गया- आपको अब जाकर राम मंदिर के दर्शन हो पाए हैं। सरकार हमारी है। क्या फिर भी मथुरा-काशी के दर्शन तीसरी पीढ़ी में हो पाएंगे, क्या इतनी देर लगनी चाहिए? उन्होंने कहा- चलते समय पिछला पैर तब उठाना चाहिए, जब अगला जम जाए। अगर अगला पैर जमे नहीं और पिछला उठा देंगे, तो फिसलने का डर रहता है। एक काम संपन्न हो जाने दो, उसकी समाज में पूरी स्वीकार्यता हो जाने दो, फिर आगे भी हो जाएगा। यह मामला हिंदुस्तान की एक हजार साल गंभीर बीमारी का है। क्या पांच-सात साल में ही इसे हल करना चाहते हो। काम ऐसा करना चाहिए, ताकि समाज का हर वर्ग स्वीकार करे कि जो हो रहा है, सही हो रहा है। वरना दुर्घटना हो सकती है। राम मंदिर आंदोलन के किस्से भी सुनाए ऐसे तय हुआ मंदिर का पहला आर्किटेक्ट चंपत राय ने कहा कि 1986 में जो पीढ़ी काम कर रही थी, उसमें अशोक सिंघल, मोरपंख पिंगले, देवकी नंदन अग्रवाल, परमहंस रामचंद्र दास समेत कई लोग शामिल थे। उस समय यह बात आई कि ऐसा मंदिर बनाओ कि कोई तोड़ न सके। बात पत्थरों पर आकर रुकी। उस समय आर्किटेक्ट कौन हो, इस पर चर्चा हुई तो गंगा प्रसाद बिरला ने चंद्रकांत भाई सोमपुरा का परिचय अशोक सिंघल करवाया। गंगा प्रसाद बिरला ने कभी जन जागरण देख अशोक जी को बुलाया था। तब बिरला जी ने उनसे कहा था कि तुम लोग क्या कहते हो कि मंदिर वहीं बनाएंगे। कभी ऐसा हुआ है कि लोगों ने जिसे मस्जिद कह दिया हो उसे तोड़ा गया हो। तब अशोक सिंघल ने बेबाकी से कहा था कि बाबूजी आप हमें तोड़ने के लिए उकसा रहे हैं क्या? इसी दौरान चंद्रकांत भाई सोमपुरा का परिचय कराया गया, तब उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की बात कही। यह बात आई कि पत्थर कहां से लाया जाए? राजस्थान से विशेष किस्म का पत्थर लाने का तय किया गया। उन्होंने बताया कि यह पत्थर एक हजार साल तक धूप-पानी को आसानी से सह सकेंगे। उसके बाद वैज्ञानिकों की बात भी माननी पड़ी। राम मंदिर का पहला मॉडल 1989 में बनाया राय ने मंदिर के मॉडल का जिक्र करते हुए कहा- हमने जनवरी, 1989 में मंदिर का लकड़ी का मॉडल बनाकर जनता को दिखा दिया था। तब मंदिर निर्माण के लिए खर्च होने वाली राशि के लिए जनता से सवा रुपए मांगा गया। तभी से यह अभियान चल पड़ा। 1991 से पत्थरों की नक्काशी भी शुरू कर दी गई। मुझे इसी काम में लगने के लिए कहा गया। साल 2006 आते-आते इतने पत्थर तैयार हो गए कि इन्हें रखने के लिए भी जगह नहीं थी। 1992 में ढांचा गिर गया तो अदालती प्रक्रिया शुरू हो गई। इसमें काफी समय लग गया। कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने हमारी बात मानी कई अलग-अलग जगहों से पत्थर खरीदा गया। इन पत्थरों को राजस्थान के सिरोही और मकराना में नक्काशी के लिए भेजा। वहां से इन पत्थरों को अयोध्या लाया गया। अलग-अलग स्थानों पर सब काम होते रहे। इसी बीच सरकार ने पत्थर वाली जमीन को वन क्षेत्र घोषित कर दिया। अब हमें वहां से पत्थर लाने की अनुमति नहीं थी। तब यह बात आई कि चोरी का पत्थर तो वैसे भी मिल रहा है, क्या किया जाए? हमने फैसला लिया कि राम काज में चोरी का काम बिल्कुल नहीं होने देंगे। हम लोगों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की। उन्हें राम मंदिर की पूरी बात समझाई। वे मान गए और उन्होंने तत्काल सभी सचिवों को बुलवाया। पत्थर वाली जगह को छोड़कर दूसरी जगह को वन क्षेत्र घोषित कर दिया। बाद में पर्यावरण से जुड़ी अनुमति केंद्र सरकार से भी ली गई। मंदिर में भी एक भी विदेश दिमाग नहीं लगने दिया मंदिर निर्माण में IIT दिल्ली, बॉम्बे, गुवाहाटी, NIT सूरत सहित कई बड़े संस्थानों के डायरेक्टर और इंजीनियरों का मिला-जुला काम है। मैं पहले दिन से ही इस बात पर अड़ा हूं कि हमें मंदिर निर्माण में विदेशी ब्रेन नहीं चाहिए। हमारे हिंदुस्तान के चार सामान्य बुद्धि के लोग जो तय करेंगे, वही मान्य होगा। इसलिए निर्माण कार्य में किसी विदेशी निर्माण एजेंसी की हवा तक नहीं लगने दी। भारत के विश्वगुरु बनने के सवाल पर यह दिया जवाब उन्होंने कहा कि इसके लिए मंत्र है कि जो आचरण सबको सिखाना चाहते हैं, वह पहले खुद पर लागू करें। 1965 तक भारत के पेट भरने के लिए अमेरिका से लाल गेहूं आता था। जिस देश को पेट भरने के लिए भोजन नहीं है। शिक्षा के लिए लोग बाहर जा रहे हैं। पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है, सुरक्षा के लिए दूसरे देशों से हथियार लाने पड़ रहे हैं। जब हम छोटी-छोटी बातों पर दुनिया का मुंह ताकते रहेंगे तो ये बात बहुत दूर की है। विश्वगुरु बनने के लिए देश की आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था को ठीक करना होगा। केवल सत्ता के परिवर्तन से गुरु नहीं बन सकेंगे, समय आने पर ही बन सकेंगे। यह खबर भी पढ़ें 69 हजार शिक्षक भर्ती की नई मेरिट लिस्ट पर सुप्रीम कोर्ट की रोक; अब 23 सितंबर को सुनवाई उत्तर प्रदेश 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त को आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और दोनों पक्षों- अनुसूचित जाति व ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों और कार्यरत शिक्षकों से कहा कि लिखित दलीलें पेश करें। हम इस पर फाइनल सुनवाई करेंगे। अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी। यहां पढ़ें पूरी खबर

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