दलित वोटों को लेकर आजाद समाज पार्टी और बसपा में खींचतान हरियाणा तक पहुंच गई है। चंद्रशेखर आजाद और आकाश आनंद खूब पसीना बहा रहे हैं। हरियाणा में बसपा ने इनेलोपा और आजाद समाज पार्टी ने जेजेपी के साथ समझौता किया है। बसपा 36 सीटों पर चुनाव लड़ रही, जबकि आजाद समाज पार्टी 40 सीटों पर। हरियाणा का नतीजा बताएगा कि उनका करियर किस ओर जाएगा। इधर, यूपी की 10 सीटों पर उपचुनाव के लिए घोषणा कभी भी हो सकती है। सभी राजनीतिक दल इसकी तैयारी में जुटे हैं। भाजपा, सपा, कांग्रेस, बसपा सभी इन सीटों पर अपने अपने दावे कर रहे हैं। बसपा अरसे बाद यूपी में उपचुनाव लड़ने जा रही है। उसने प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं। आजाद समाज पार्टी इन तमाम पाटियों का खेल बिगाड़ने के लिए तैयार है। यूपी की लड़ाई फिलहाल सपा और भाजपा के बीच ही नजर आ रही है। ऐसे में बसपा और आजाद समाज पार्टी किसे फायदा पहुंचाएंगी और किसे नुकसान, इसका अभी सिर्फ अंदाजा भर लगाया जा सकता है। पश्चिमी यूपी में आजाद समाज पार्टी का रुतबा बढ़ा
चंद्रशेखर आजाद की जीत के बाद खासकर पश्चिमी यूपी में आजाद समाज पार्टी का रुतबा बढ़ा है। कुछ लोग आजाद समाज पार्टी को बसपा के विकल्प के रूप में भी देखने लगे हैं। वहीं, बसपा ने लोकसभा चुनाव में बुरी तरह विफल रहे आकाश आनंद को दोबारा जिम्मेदारी दी है। बसपा और आजाद समाज पार्टी, दोनों ही दलित वोट बैंक की राजनीति करती हैं। दोनों पार्टी के प्रमुखों का अंदाज बिल्कुल अलग-अलग है। चंद्रशेखर आजाद आक्रामक राजनीति और धरने-प्रदर्शन वाली राजनीति में विश्वास रखते हैं। चुनाव में वह हेलिकॉप्टर लेकर प्रचार में उतरे हुए हैं। एक-एक दिन में कई-कई सभाएं कर रहे हैं। आकाश आनंद जमीन पर संघर्ष करने की बजाय सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहते हैं। वह भी चुनावों के दौरान सभाएं करते हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो यूपी में असल लड़ाई दलित वोटों को लेकर आकाश आनंद और चंद्रशेखर आजाद में होनी है। आकाश आनंद को इस बात का एहसास है कि चंद्रशेखर उनके मूल वोट बैंक में सेंध लगा चुके हैं। नगीना चुनाव इसका प्रमाण है। लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश आनंद ने इस विधानसभा क्षेत्र में चंद्रशेखर पर सीधा हमला किया था। दलितों के साथ होने वाले उत्पीड़न के मामलों में मौके पर पहुंचना और पीड़ित के साथ खड़े हो जाने के मामले में चंद्रशेखर आकाश से कहीं आगे हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं- आकाश मायावती के उत्तराधिकारी जरूर घोषित हो गए हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव में उनके साथ जो बर्ताव हुआ, उसे लेकर उनके चाहने वालों में संशय है। चंद्रशेखर का सपना बहुजनों के नए कांशीराम बनने का है। चंद्रशेखर सबसे पहले उस वक्त चर्चा में आए, जब 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलितों और राजपूतों के बीच हुए संघर्ष के बाद दलितों के साथ खड़े नजर आए और जेल भी गए। उन्होंने पहले भीम आर्मी बनाई और बाद में आजाद समाज पार्टी का गठन किया। वे गोरखपुर से 2022 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भी लड़ चुके हैं। आकाश और आजाद की सक्रियता से किसे नुकसान
यूपी में आकाश और आजाद की सक्रियता से नुकसान किसे होगा? इसका अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जब अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण खत्म करने का मुद्दा उठाया, तो बड़ी संख्या में वोटबैंक बसपा से सपा में शिफ्ट हुआ। बसपा की पहली कोशिश इसी वोटबैंक काे वापस लेने की है। जबकि चंद्रशेखर नगीना के बाहर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होंने उपचुनाव के लिए मीरापुर सीट से जाहिद हुसैन को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। वहीं, बसपा ने यहां से शाह नजर को प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी या राष्ट्रीय लोकदल ने अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। बसपा और आजाद समाज पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर यह जता दिया है कि दोनों ही पार्टियां दलित और मुस्लिम वोटबैंक के समीकरण के जरिए राजनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा। समाजवादी पार्टी मायावती के करीबी रहे नेताओं के सहारे और अपने पीडीए के फार्मूले के भरोसे दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश करेगी। इसीलिए सपा लगातार जिलों में पीडीए सम्मेलन कर रही है। पंचायत स्तर पर लोगों को जोड़ने की जिम्मेदारी स्थानीय नेताओं को दी गई है। अम्बेडकर वाहिनी की मदद से युवाओं में भी पार्टी अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है। बसपा से सपा में आए नेताओं का भी सपा भरपूर इस्तेमाल कर रही है। 2027 के लिए जिम्मेदारियां अभी से फिक्स की जा रही है। आकाश आनंद और चंद्रशेखर में कौन मजबूत?
दलित राजनीति को करीब से देखने वाले और राजनीतिक विश्लेषक सैयद कासिम कहते हैं- दलितों की राजनीति के लिए कई नेता समय समय पर आए, लेकिन वह अपनी छाप नहीं छोड़ सके। मायावती इकलौती नेता रहीं, जिन्होंने अपने दम पर सरकार बनाई। आज भी बसपा का एक निश्चित वोट बैंक अपनी जगह पर मौजूद है। आकाश आनंद के लिए नीला झंडा हाथी निशान ही बहुत है। जबकि चंद्रशेखर आजाद के पक्ष में कुछ युवा हैं। मीडिया का एक हिस्सा है, जो उन्हें आगे बढ़ाता है। हरियाणा से लेकर जम्मू-कश्मीर तक चंद्रशेखर हेलिकॉप्टर से जो तूफानी चुनावी दौरा कर रहे हैं, वह कुछ और ही इशारा करता है। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं- चंद्रशेखर और आकाश आनंद एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में लगे हैं। आकाश आनंद की राह का सबसे बड़ा रोड़ा चंद्रशेखर हैं। आकाश को बड़ी राजनीतिक विरासत मिली है, लेकिन वह इस अवसर को भुना नहीं सके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती ने उन्हें किनारे कर लिया। उनकी इमेज वह नहीं बन पाई, जो बननी चाहिए थी। वहीं, चंद्रशेखर दलित समाज के ओवैसी बनना चाहते हैं। उनकी गिनती एक लड़ाकू नेता के रूप में होती है। जबकि कांशीराम की राजनीति समाज को किसी लड़ाई में झोंकने की नहीं रही, बल्कि समाज को साथ लेकर राजनीति करने की रही है। चंद्रशेखर इसके विपरीत हैं। यह खबर भी पढ़ें योगी बोले-यूपी में दंगाई जहन्नुम की यात्रा पर, 370 हटने के बाद मौलवी राम-राम कहते हैं; कांग्रेस ‘समस्या’ का नाम सीएम योगी ने हरियाणा के फरीदाबाद में जनसभा को संबोधित किया। सीएम ने कहा- यूपी में साढ़े सात साल में एक भी दंगा नहीं हुआ। दंगाई अब जेल में हैं, या जहन्नुम की यात्रा पर। विभाजन और आतंकवाद कांग्रेस की देन है। पहले जो भारत की संप्रभुता को चुनौती देते थे, आज उनके मुंह से भी ‘राम-राम’ निकल रहा है। यहां पढ़ें पूरी खबर

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