यूपी के तीन जिलों मुरादाबाद, बरेली और प्रयागराज में हुए बुलडोजर एक्शन को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। कोर्ट से कहा है कि बुलडोजर कार्रवाई से लोग डरे-सहमे हुए हैं। जमीयत उन सभी लोगों के लिए न्याय चाहती है, जिन के घरों पर बुलडोजर चला। हमें उम्मीद है कि अंतिम निर्णय पीड़ितों के पक्ष में होगा। जमीयत ने इस याचिका में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, असम, गुजरात और दिल्ली के मामलों का हवाला दिया है। बताया है कि कैसे सिर्फ आरोपों के बल पर पुलिस-प्रशासन ने FIR में नामजद आरोपियों के घर बुलडोजर से ढहा दिए। इस याचिका में एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इन पांच राज्यों में बुलडोजर एक्शन की 128 घटनाओं की फैक्ट फाइंडिंग है। दो सितंबर को हुई सुनवाई में SC ने टिप्पणी करते हुए कहा- अगर कोई सिर्फ आरोपी है तो प्रॉपर्टी गिराने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है? हालांकि SC ने ये भी कहा है कि हम अवैध अतिक्रमण के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। इस याचिका पर अब 17 सितंबर को अगली सुनवाई होगी। आइए आपको सिलसिलेवार ढंग से बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के किन तीन मामलों को जमीयत ने बुलडोजर एक्शन के खिलाफ आधार बनाया है। उस पर क्या कुछ कहा है. .. रिपोर्ट में माना- मकान ढहाने में उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई, ज्यादातर शिकार मुसलमान हुए
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यूपी, दिल्ली, एमपी, असम और गुजरात में बुलडोजर एक्शन के शिकार हुए लोगों सहित वकीलों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विशेषज्ञों से बातचीत की। गुजरात में 19, मध्यप्रदेश में 37, असम में तीन, दिल्ली में 14 और उत्तर प्रदेश में दो लोगों के इंटरव्यू लिए। अप्रैल-2022 से अगस्त 2023 के बीच प्रकाशित हुई 50 से ज्यादा मीडिया रिपोर्ट का भी अध्ययन किया। रिपोर्ट के अनुसार- इन पांच राज्यों में साल 2022 में 15 दिन के दौरान करीब 128 संपत्तियों को बुलडोजर से ढहाया गया। इसमें यूपी के प्रयागराज में एक और सहारनपुर में दो संपत्तियां ढहाई गई थीं। इन 128 में से 63 मामलों की फाइंडिंग एमनेस्टी इंटरनेशनल ने की। रिपोर्ट में माना कि मुसलमानों के प्रति भेदभाव को रोकने के बजाय नेताओं और अधिकारियों ने इसे सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया। इस भेदभाव की शुरुआत साल-2020 में CAA विरोध प्रदर्शन से हुई। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों को निशाना बनाया गया। रिपोर्ट में माना है कि इन सभी मकानों को ढहाने में सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बिना किसी पूर्व नोटिस और बिना वैकल्पिक पुर्नवास किए ये बुलडोजर चलाया। घर-दुकान खाली करने का भी लोगों को टाइम नहीं दिया गया। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दावा किया गया है कि इस कार्रवाई का शिकार मुस्लिम आबादी वाले इलाके हुए। भेदभावपूर्ण तरीके से मुसलमानों की संपत्ति ध्वस्त की गई, जबकि पड़ोसी हिंदुओं की संपत्ति छोड़ दी गई। पांचों राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई का यही पैटर्न था। किसी की संपत्ति पर बुलडोजर नहीं चलना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा- जमीयत उन सभी लोगों के लिए न्याय चाहती है, जिन पर बुलडोजर चला। वहां के लोग डरे-सहमे हुए हैं। पीड़ित लोगों के अनुरोध पर जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के रूख का हम स्वागत करते हैं। बुलडोजर नीति पर सुप्रीम कोर्ट दिशा-निर्देश तैयार करेगी तो निश्चित रूप से राज्य सरकारें उसे लागू करने के लिए बाध्य होंगी। हमें उम्मीद है कि अंतिम निर्णय भी पीड़ितों के पक्ष में होगा। याचिका में हमने कोर्ट से अनुरोध किया था कि किसी की संपत्ति पर बुलडोजर नहीं चलना चाहिए। राज्य सरकार समेत सभी पक्षकार 13 सितंबर तक रखेंगे अपना पक्ष
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सेक्रेटरी नियाज ए फारुकी ने 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस याचिका में नॉर्थ दिल्ली मुंसिपल कॉरपारेशन (NDMC) व अन्य को पार्टी बनाया गया है। 107 पेज की याचिका में बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के वकील फारुख रशीद ने बताया- सुनवाई के दौरान जमीयत की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह मौजूद रहे। उन्होंने बुलडोजर नीति के शिकार हुए लोगों का मजबूती से पक्ष रखा। सीयू सिंह ने कोर्ट से अनुरोध किया कि बुलडोजर परिचालन पर रोक लगाने के लिए सभी राज्यों के लिए दिशा-निर्देश तैयार होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार समेत सभी पक्षों को 13 सितंबर तक अपनी दलीलें पेश करने का आदेश दिया है। 17 सितंबर की दोपहर 2 बजे इस मामले की अगली सुनवाई होगी।

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