आपने छोले-भटूरे खाए होंगे। छोले-चावल भी टेस्ट किए होंगे। लेकिन क्या कभी छोला-कचौड़ी का स्वाद चखा है? छोला भी ऐसा जो प्योर काबुली चने से तैयार हुआ हो! आप में बहुत सारे लोग कहेंगे कि ऐसा तो नहीं चखा। असल में हमारे आसपास छोला-कचौड़ी का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं। लेकिन इसी लखनऊ में पिछले 25 सालों से एक व्यक्ति ने छोला-कचौड़ी की ऐसी थ्योरी भिड़ाई कि आज वह मशहूर हो गई। दूर-दूर से लोग खाने आ रहे। दैनिक भास्कर की जायका सीरीज में आज हम इसी छोला-कचौड़ी की बात करने वाले हैं। इसके स्वाद की, मसालों की और बनाने के तरीकों की बात करने वाले हैं। इसके लिए हम सीधे दुकान ही पहुंचे और सब कुछ कैमरे में रिकॉर्ड कर लिया। वीडियो ऊपर लगा है, उसे देख सकते हैं। बाकी पूरी खबर आइए यहां पढ़ते हैं… 26 साल पहले शुरू की थी दुकान
लखनऊ के अशोक कुमार गुप्ता ने 1998 में अपने घर के पास खाने-पीने की दुकान खोली। उन्होंने छोले-भटूरे के साथ छोला कचौड़ी बनाने की भी शुरुआत की। शुरू में लोगों को लगा कि ये क्या नया कॉन्सेप्ट है? अशोक ने लोगों से कहा कि एक बार खाइए तो सही। लोगों ने खाया, उन्हें पसंद आया और उसके बाद दुकान चल पड़ी। दुकान पहले किराए पर थी, लेकिन कुछ वक्त के बाद आवास विकास योजना के जरिए दुकान एलॉट हो गई और मुंशी पुलिया चौराहे पर दुकान खोल ली। हम दुकान पर पहुंचे, तो हमें अशोक के बेटे प्रिंस गुप्ता मिले। प्रिंस ही इस वक्त दुकान देखते हैं। हमने पूछा कि दुकान की खासियत क्या है जो यहां लोग खिंचे चले आते हैं। प्रिंस कहते हैं कि आपको हमारे यहां वाला छोला कहीं नहीं मिलेगा। ज्यादातर जगहों पर मटर या फिर आलू के छोले मिलेंगे लेकिन हमारे यहां प्योर काबुली चने का छोला मिलेगा। यह भी आज से नहीं जब से दुकान है, तब से हम लोगों को यही खिला रहे हैं। दुकान पर नहीं, बल्कि घर पर बनता है छोला
प्रिंस कहते हैं कि हम बाहर के पिसे हुए मसाले इस्तेमाल नहीं करते। हम मार्केट से खड़े मसाले लाते हैं। पिता जी उसे अपने हिसाब से पिसवाते हैं और फिर छोला तैयार करते हैं। हमने पूछा कि छोला कौन बनाता है? प्रिंस बताते हैं कि छोला दुकान पर नहीं बनता। उसे घर पर मां नीलम गुप्ता तैयार करती हैं। सुबह एक भगोना तैयार होकर यहां आ जाता है, दोपहर में भी एक भगोना तैयार होता है और शाम 5 बजे तक सब खत्म हो जाता है। अशोक गुप्ता की दुकान के ही एक कारीगर बताते हैं कि रात में काबुली चने को पानी में भिगो देते हैं। सुबह उसे अच्छे से धोकर कुकर में थोड़े से पानी के बीच उबाल लेते हैं। इसके बाद कड़ाई में सरसों का तेल डालते हैं। तेल में जीरा, प्याज, टमाटर, कस्तूरी मेथी डालकर भूनते हैं। इसके साथ नमक और हल्दी डाल देते हैं, ताकि अच्छे से गल जाए। कुछ देर के बाद हम अपने यहां तैयार किए गए मसालों को डालते हैं और फिर अच्छी तरह पकाने के बाद उसमें काबुली चने को डाल देते हैं। करीब 10 मिनट बाद हमारा छोला तैयार हो जाता है। दाल वाली कचौड़ी के साथ सर्व होता है छोला
छोले के साथ यहां जो कचौड़ी दी जाती है, वह भी खास होती है। पिछले 11 सालों से यहां कचौड़ी बना रहे पंकज बताते हैं कि हम आटे को गूथते वक्त उसमें इतना मोयन डालते हैं कि तैयार होने के बाद एकदम मुलायम बने। आटे की लोई के बीच जो मसाले भरे जाते हैं उसे बेहतर ढंग से तैयार करते हैं। रात में ही उड़द की दाल को पानी में भिगो दिया जाता है। सुबह उसे पीस लिया जाता है। पीसी हुई दाल में सौंफ और हींग डालते हैं। सौंफ-हींग की क्वालिटी ऐसी होती है कि कचौड़ी स्वादिष्ट बनती है। इसे ग्राफिक के जरिए समझिए। यहां एक चीज और अच्छी है। रेट आज भी इतना कम रखा गया है कि हर व्यक्ति खा सकता है। दो बड़ी कचौड़ी के साथ छोला, चटनी और प्याज दिया जाता है। इसकी कीमत मात्र 30 रुपए है। अगर आपको छोला और भी लेना है तो ले लीजिए, उसका पैसा नहीं लगेगा। हमने यहां आए कुछ ग्राहकों से स्वाद के बारे में पूछा। अंकित कहते हैं कि यहां की छोला-कचौड़ी बहुत सही लगती है। बाकी जो भी चीजें हैं वह भी शानदार लगती है। उन्हीं के साथ कचौड़ी खा रहे राहुल भी कहते हैं कि हम पिछले 5 सालों से जब भी इधर आते हैं कचौड़ी-छोला जरूर खाते हैं। कुल मिलाकर 25 सालों से चल रही इस दुकान पर स्वाद आज भी पहले वाला ही बरकरार है। कचौड़ी के शौकीन ग्राहकों के लिए यह दुकान फिक्स हो गई है। आपको भी अवसर मिले तो जा सकते हैं। 85 साल पुरानी दुकान में काली-गाजर के हलवे का स्वाद:डिश इतनी पॉपुलर कि विदेशों से भी आते ऑर्डर आपने सूजी, सिंघाड़ा, काजू-बादाम, लौकी और लाल गाजर का हलवा खाया ही होगा। लेकिन क्या कभी काली गाजर, सेब, काले अंगूर, खजूर, नारियल की मलाई का हलवा खाया है? आपको यकीन करना मुश्किल होगा कि इसका भी हलवा बनता है क्या! जी हां। नवाबों के शहर लखनऊ में एक चर्चित दुकान है तरह-तरह के हलवे मिलते हैं। काली गाजर का हलवा तो इतना प्रसिद्ध है कि दूर-दूर से लोग खाने आते हैं। दैनिक भास्कर की ‘जायका’ सीरीज के लिए हम पहुंचे चौक की हाजी अब्दुल शकूर स्वीट शॉप। काली गाजर के हलवे के बारे में जाना। इसके स्वाद को चखा। आइडिया पर बात की। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें…