अगर कोई टीम रेस जीतने का लक्ष्य रखती है तो उसके लिए रेस में शामिल हर धावक महत्वपूर्ण हो जाता है। धावकों को भी रेस जीतने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने की जरूरत होती है। यही बात सात चरणों वाले लोकसभा चुनाव पर भी लागू होती है। चुनाव में सभी चरण महत्वपूर्ण थे। आज सातवें और आखिरी चरण का मतदान होगा और कोई भी दल इसे हल्के में नहीं ले सकता। इस चरण में 57 सीटों पर वोट पड़ेंगे। यूपी और पंजाब की 13, बंगाल की 9, बिहार की 8, ओडिशा की 6, हिमाचल की 4, झारखंड की 3 सीटों और चंडीगढ़ की एकमात्र सीट पर चुनाव लड़ रही पार्टियों द्वारा किया गया सघन-प्रचार इस बात का संकेत है कि ये सीटें कितनी महत्वपूर्ण हैं। जैसे किसी रिले दौड़ में टीम का अंतिम धावक- चाहे वह दौड़ में आगे चल रहा हो या पीछे- अपने प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त को अधिकतम करने या बढ़​त बनाए रखने या प्रतिद्वंद्वी द्वारा पहले ही ली जा चुकी बढ़त को कवर करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करता है, उसी प्रकार दलों ने इस अंतिम चरण में अपने चुनावी लाभ को अधिकतम करने के लिए पूरा दम झोंक दिया है। इस चरण में हिमाचल प्रदेश की छह विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव भी हो रहे हैं, जो राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के सदस्यों के पास थीं। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार का भाग्य इन छह सीटों के नतीजों पर टिका है। अंतिम चरण में अधिकांश दल इसलिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, क्योंकि सभी दलों का कुछ न कुछ इसमें दांव पर लगा है। इस चरण में कांग्रेस 2019 में पंजाब में जीती गई आठ सीटों का बचाव करेगी। उसके सहयोगी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और आप भी पंजाब में तीन सीटों का बचाव करेंगे। इनमें से संगरूर सीट आप ने उपचुनाव में खो दी थी, जिसे अकाली दल के सिमरनजीत सिंह मान ने जीता था। इस चरण में भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर है और वह 34.7% वोटों के साथ 57 में से केवल 25 सीटों का बचाव कर रही है, जबकि उसके सहयोगी जदयू, राष्ट्रीय लोक मंच, अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 4 सीटों का बचाव कर रहे हैं। यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि टीएमसी और बीजद जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का भी अंतिम चरण में बहुत कुछ दांव पर लगा है, क्योंकि टीएमसी इस चरण में अपनी 9 सीटों का बचाव करेगी, जबकि बीजद पर ओडिशा की 6 में से 4 सीटों को बचाने की जिम्मेदारी है। अकाली दल ने 2019 का चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ा था और वह भी पंजाब में अपनी 2 सीटों को बचाने के लिए कशमकश करेगी। पंजाब की 13 सीटों पर आप और कांग्रेस की मजबूत उपस्थिति को देखते हुए अकाली दल के लिए उन 2 सीटों को बचाना आसान नहीं होगा। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि अंतिम चरण के मतदान में कौन-सी पार्टी बढ़त हासिल कर रही है और कौन-सी जमीन गंवा रही है, लेकिन पंजाब में मुकाबले की प्रकृति पूरी तरह से बदल गई है। 2019 में वहां कांग्रेस और अकाली-भाजपा गठबंधन के बीच संघर्ष था, अब वहां आप-कांग्रेस की लड़ाई है। भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद अकाली दल इस चुनाव में मौका खोता दिख रहा है। बंगाल में आज जिन 9 सीटों पर मतदान हो रहा है, वहां टीएमसी सबसे मजबूत है, जिसने 2019 में इन सीटों पर 50% से अधिक वोटों के साथ जीत हासिल की थी। लेकिन भाजपा ने बंगाल में टीएमसी का गणित बिगाड़ने के बहुत प्रयास किए हैं। ऐसे में वहां कड़ी लड़ाई होने वाली है। एनडीए के लिए बिहार में अपनी सभी 8 सीटों को बचाना भी आसान नहीं होगा, क्योंकि वहां पर भाजपा की सहयोगी जदयू ने अपनी जमीन खो दी है। ओडिशा में इस चरण में जिन 6 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 4 पर बीजद आसानी से आगे चल रही है। इनमें से सिर्फ 2 पर बीजेपी ने अतीत में जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार ओडिशा में भी चुनावी मैदान बदला हुआ लग रहा है। तमाम राजनीतिक दलों ने पूरा जोर लगा दिया है…
पार्टियों द्वारा किया गया सघन-प्रचार इस बात का संकेत है कि ये सीटें कितनी महत्वपूर्ण हैं। तमाम राजनीतिक दलों ने इस सातवें और अंतिम चरण में अपने चुनावी लाभ को अधिकतम करने के लिए पूरा दम झोंक दिया है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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