कैसरगंज लोकसभा सीट पर सस्पेंस खत्म हो गया है। दो सालों से चल रहे महिला खिलाड़ियों के आरोप में घिरे 6 बार के सांसद बृजभूषण सिंह का टिकट काट कर भाजपा ने उनके छोटे बेटे करण सिंह को उतारा है। कैसरगंज से मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के दो बेटे, प्रतीक भूषण सिंह और करण भूषण सिंह हैं। बड़े बेटे प्रतीक भूषण गोंडा से विधायक हैं। वहीं करण भूषण सिंह की राजनीतिक में अब तक भागीदारी नहीं रही है। फिलहाल करण भूषण सिंह उत्तर प्रदेश कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। वह पहले 2018 में यूपी कुश्ती संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रह चुके हैं। 7 बार लोकसभा लड़े बृजभूषण, 6 बार मिली जीत और एक बार हार
बृजभूषण शरण सिंह अब तक सात बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और छह बार जीत चुके हैं। 1991 में उन्होंने गोंडा सीट से जीत दर्ज की लेकिन 1998 में उन्हें हर का सामना करना पड़ा। 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने गोंडा सीट से जीत दर्ज की। 2004 में बीजेपी ने उन्हें बलरामपुर से टिकट दिया और उन्होंने जीत दर्ज की। 2008 में कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर क्रॉस वोटिंग के कारण उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। 2009 का लोकसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर कैसरगंज लोकसभा सीट से लड़ा और जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वह फिर से बीजेपी में शामिल हो गए। बृजभूषण ने कैसरगंज से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2019 में भी वह कैसरगंज से ही सांसद चुने गए। महिला खिलाड़ियों के शोषण के मामले में फंसे बृजभूषण
लगभग दो साल पहले गोंडा से मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला खिलाड़ी साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट जैसे रेसलरों ने मुहिम शुरू की थी, जोर देकर कहा गया था कि बीजेपी नेता और तत्कालीन भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण ने महिला रेसलरों के साथ यौन शोषण किया। उस विवाद को लेकर ही कई रेसलरों ने अपने मेडल वापस किए थे, कई दिनों तक धरना भी दिया। विपक्ष ने भी मांग की थी कि बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई की जाए। अब तक बीजेपी ने कार्रवाई तो नहीं की, लेकिन हरियाणा की लोकसभा सीटों पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को देखते हुए बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काट दिया गया। अब आपको बताते हैं बीजेपी ने किन कारणों से बृजभूषण शरण सिंह के परिवार में ही दिया टिकट… बृजभूषण के टिकट काट कर उन्हीं के छोटे बेटे करण सिंह को टिकट देने के पीछे का सबसे बड़ा कारण इस सीट पर चुनाव में जीत का बढ़ता अंतर के साथ बृजभूषण शरण सिंह का कैसरगंज सीट के बाहर प्रभाव भी है। बृजभूषण कैसरगंज के पहले गोंडा और बलरामपुर लोकसभा सीट से भी सांसद रह चुके हैं। उनका बहराइच, कैसरगंज, अयोध्या, गोंडा, श्रावस्ती, बलरामपुर में भी अच्छा प्रभाव है। क्योंकि पूर्वांचल के राजपूत वोटर्स पर भी बृजभूषण का अच्छा वोट माना जाता है। यही कारण है कि भाजपा उनके परिवार से इतर किसी और को टिकट नहीं दे पाई। अब आपको बताते हैं कि आसपास के लोकसभा सीटों पर क्यों पड़ेगा असर
भाजपा अगर बृजभूषण शरण सिंह के परिवार के सदस्य को टिकट न देकर कहीं और जाती तो उसका आसपास की लगभग 6 लोकसभा सीट ऐसी हैं जिस पर साफ तौर पर असर देखने को मिलता। उन 6 सीटों को आगे बताते हैं- कैसरगंज: यहां पांच विधानसभा सीटें हैं, जिनमें तीन गोंडा में और दो सीटें बहराइच जिले की हैं। गोंडा जिले का जो हिस्सा इस क्षेत्र में आता है, वह ब्राह्मण बाहुल्य है। वहीं बहराइच के इलाके में राजपूत मतदाता ज्यादा हैं। ब्राह्मण भाजपा के कोर वोटर माने जाते हैं, जबकि राजपूत वोटर्स बृजभूषण का बड़ा आधार है। करीब 25% क्षत्रिय वोटर, 20% ब्राह्मण वोटर, 27% मुस्लिम वोटर, 15%​​​​​​​ कुर्मी वोटर और 13% में एससी एसटी वोटर शामिल हैं। श्रावस्ती: बृजभूषण शरण सिंह का प्रभाव यहां पर भी काफी हद तक है। अगर श्रावस्ती लोकसभा सीट के जातीय समीकरण को देखें तो लगभग 20% क्षत्रिय वोटर, 35% ब्राह्मण वोटर, 15%​​​​​​​ कुर्मी वोटर, 10% यादव वोटर, 15%​​​​​​​ मुस्लिम वोटर और 5% एससी एसटी वोटर हैं। बहराइच: यहां पर भी राजपूत वोटर की अच्छी तादात है। कैसरगंज लोकसभा सीट में दो विधानसभाएं बहराइच जिले से आती हैं। ऐसे में बृजभूषण शरण सिंह बहराइच के राजपूत वोटरों पर काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है और बीजेपी अगर उनके परिवार को टिकट नहीं देती तो इसका सीधा प्रभाव इन वोटो पर भी मिल सकता था। गोंडा लोकसभा
बृजभूषण शरण सिंह गोंडा से भी सांसद रह चुके हैं उन्होंने 1991 में इसी लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी। और कैसरगंज लोकसभा सीट में तीन विधानसभाएं गोंडा जनपद से आती है। ऐसे में अगर बृजभूषण शरण सिंह के परिवार को टिकट नहीं दिया जाता तो निश्चित तौर पर उसका असर इस सीट पर भी देखने को मिलता। अयोध्या लोकसभा
अयोध्या में भी बृजभूषण शरण सिंह का काफी प्रभाव माना जाता है बीते दिनों बृजभूषण शरण सिंह के टिकट काटने की चर्चाओं के बीच उन्होंने अयोध्या में जन चेतना महारैली बुलाई थी । हालांकि प्रशासन की तरफ से उसकी मंजूरी नहीं मिली लेकिन फिर भी बृजभूषण शरण सिंह अयोध्या तक गए और भारी तादाद में साधु संतों ने उनका स्वागत भी किया था। वहीं राजनीतिकार बताते हैं कि बृजभूषण शरण सिंह का न सिर्फ राजपूतों में बल्कि साधु संतो में भी अच्छी खासी पकड़ है। बलरामपुर लोकसभा सीट बलरामपुर लोकसभा सीट 2004 में बृजभूषण शरण सिंह ने जीत हासिल की थी बलरामपुर लोकसभा सीट पर बृजभूषण शरण सिंह का होल्ड माना जाता है। आज भी राजपूत वोटर बृजभूषण शरण सिंह के कहने पर ही एक तरफ और वोट डालते हैं जो की हार जीत का फैसला तय करते हैं ऐसे में अगर बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह के परिवार के सदस्यों को टिकट नहीं देती तो इस सीट पर भी उसको खामियाजा भुगतना पड़ सकता था। पॉलीटिकल एनालिस्ट का बयान कैसरगंज में कुछ इलाके क्षत्रिय बहुल के हैं। जबकि गोंडा वाला हिस्सा ब्राह्मण बहुल माना जाता है। कहा जाता है कि क्षत्रिय और ब्राहमणों के वोट एकमुश्त पड़ना मुश्किल है। वरिष्ठ पत्रकार रतीभान 2009 के पहले कुर्मी बहुल होने की वजह से यहां बेनी प्रसाद वर्मा का दबदबा रहा लेकिन नए परिसीमन ने जातिगत समीकरणों को काफी हद तक बदल दिया। और भाजपा के सामने मजबूरी थी कि अगर वह बृजभूषण शरण सिंह के परिवार के सदस्य को टिकट नहीं देते हैं तो इसका खामियाजा कई पूर्वांचल की सीटों पर भुगतना पड़ सकता था।

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