भारत के अधिकांश राज्यों में मार्च में ही तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच चुका था। देश में अप्रैल महीने का औसत तापमान 37.7 डिग्री सेल्सियस रहा। पिछले एक दशक में यह सर्वाधिक है। हालांकि 2014 में औसत तापमान 37.8 रहा था। बहरहाल, अब इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगले एक-दो महीने गर्मी जानलेवा साबित होगी। जैसे-जैसे पारा ऊपर चढ़ रहा है, उसके साथ ही कांक्रीट के जंगल बने नगरों में बिजली की मांग भी बढ़ रही है। कूलर, पंखे, एसी रात-दिन चलाने की जरूरत से हर शहर में बिजली की मांग बढ़ रही है। इसकी आपूर्ति के लिए जरूरी है कि हर राज्य-शहर अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) अपनाएं। अपनी बिजली की जरूरत को साफ-सुथरी रिन्यूएबल एनर्जी से पूरा करने के मामले में कर्नाटक और गुजरात भारत में सबसे आगे नजर आ रहे हैं। यह दो राज्य क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन यानी थर्मल पॉवर प्लांट्स के जरिए भारी पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन करने वाली, कोयला जलाकर पैदा की बिजली की जगह साफ रिन्यूएबल एनर्जी को तेजी से और व्यापक पैमाने पर अपना रहे हैं। यानी गर्मी का सामना करने के लिए ये दो राज्य पूरी तरह से कमर कसे हैं। ये राज्य न केवल अपने विद्युत उत्पादन क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं बल्कि गर्मी में बढ़ती बिजली की मांग को भी पूरा करने में पूरी तरह समर्थ हैं। इस बात का खुलासा हाल ही में प्रकाशित इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस और एम्बर की एक संयुक्त रिपोर्ट में हुआ। इसने भारत के 21 राज्यों की ऊर्जा की जरूरत से जुड़े हर पहलू का आकलन किया। हालांकि हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, केरल और आंध्र प्रदेश अपनी बिजली आपूर्ति को कम कार्बन उत्सर्जन की तरफ ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, मगर बाजार के साथ के अभाव में उनकी यह कोशिश परवान नहीं चढ़ पा रही है। झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अभी बहुत कोशिश करने की जरूरत है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी इन राज्यों की बिजली के पारंपरिक स्रोत यानी थर्मल पॉवर प्लांट्स पर निर्भरता कमोबेश पूरी तरह बनी हुई है और इसमें बदलाव की गति इन राज्यों में काफी धीमी रही है। यह रिपोर्ट झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रगति की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है, जहां एनर्जी ट्रांजिशन पर बहुत उल्लेखनीय काम नहीं हुआ है। वहीं, ओडिशा का उदाहरण भी है, जहां ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पर्याप्त ढांचा और बाजारगत व्यवस्था तो है, लेकिन फिर भी यह राज्य इस ढांचे के अनुरूप साफ ऊर्जा को अपनाने में पर्याप्त काम नहीं कर पाया है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में भारत के लिए कई चिंताएं सामने आई हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत उन स्थानों में से है, जो जलवायु परिवर्तन के चलते असहनीय परिस्थितियों का सामना करेगा। भारत के मैदानी शहर जैसे दिल्ली, पटना, लखनऊ, हैदराबाद में जलवायु परिवर्तन के चलते लोग गर्मियों में असहनीय तपिश और जानलेवा गर्मी झेलेंगे। देश के ग्रामीण इलाकों में बिजली की आपूर्ति बाधित होने से हालात बद से बदतर हो सकते हैं। साफ जाहिर है कि मैदानी इलाकों सहित भारत के ज्यादातर राज्यों को गर्मी से निपटने के लिए ज्यादा बिजली की जरूरत पेश आएगी और रिन्यूएबल एनर्जी के अभाव में उन्हें तपती गर्मी में बिजली कटौती का सामना करना पड़ सकता है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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