वेस्ट यूपी में तीसरे फेज में 10 सीटें हैं। इनमें 5 पर हवा का रुख देखें तो 2 सीट बरेली और एटा पर भाजपा को बढ़त, जबकि 3 पर सपा से सीधी टक्कर दिख रही है। ये सीटें बदायूं, आंवला और संभल हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा 5 में से 4 सीट जीती थी। सबसे टफ फाइट बदायूं में है। यहां शिवपाल के सीट छोड़ने के बाद उनके बेटे आदित्य चुनाव मैदान में हैं। भाजपा सांसद संघमित्रा पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की बगावत का खामियाजा उठा चुकी हैं। उनका टिकट कट गया। भाजपा ने ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय सिंह शाक्य को कैंडिडेट बनाया। बदायूं में उनका खुद का जनाधार नहीं है, उन्हें भाजपा संगठन का सपोर्ट है। मुस्लिम और यादव वोटर्स के सहारे आदित्य भाजपा के लिए चुनौती बढ़ा रहे हैं। आंवला में भाजपा के लिए चुनाव फंसा है। यहां भाजपा के खिलाफ मुस्लिम, यादव और मौर्य बिरादरी का गठजोड़ हो चुका है। जिनका झुकाव सपा कैंडिडेट नीरज मौर्य की तरफ है। शाहजहांपुर के नीरज दलित-ओबीसी की राजनीति करते हैं। भाजपा से धर्मेंद्र कश्यप आंवला से मौजूदा सांसद हैं। एटा सीट पर डेढ़ दशक से भाजपा कैंडिडेट जीत रहा है। सपा ने शाक्य और बसपा ने मुस्लिम दांव खेला है। मगर भाजपा के लिए यह सेफ सीट मानी जाती है। बरेली में भाजपा ने 8 बार के सांसद संतोष गंगवार का टिकट काटकर छत्रपाल को कैंडिडेट बनाया। यहां एंटी इनकम्बेंसी का डर था, मगर वोटिंग से पहले समीकरण बदलते दिख रहे हैं। भाजपा मजबूत दिख रही है। 50% मुस्लिम आबादी वाले संभल में शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद उनके पोते जियाउर रहमान बर्क चुनाव मैदान में हैं। उन्हें भाजपा के परमेश्वर लाल सैनी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। एक्सपर्ट और पब्लिक के इनपुट पर 3 बातें समझ आती हैं… पहले संभल की हवा… संभल में 2 तरह का माहौल, पहला मोदी हटाओ, दूसरा मोदी लाओ
पब्लिक और नेताओं से बात करके हवा का रुख समझने का सिलसिला संभल से शुरू हुआ। यहां हमें 2 तरह के लोग मिले। पहला वो तबका जो मोदी को लाना चाहता था, यानी हिंदू। दूसरा वह, जो मोदी को हटाना चाहता था, यानी मुस्लिम। सीनियर जर्नलिस्ट भीष्म सिंह देवल कहते हैं- पर्दे के पीछे चुनाव हिंदू-मुस्लिम में बंटा दिख रहा है। मुस्लिम I.N.D.I गठबंधन और बाकी ज्यादातर हिंदू वोटर भाजपा के साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा- इस चुनाव में दलित अहम भूमिका निभाने वाले हैं। अगर बसपा का कोर वोटर दलित भाजपा की तरफ आता है, तो चुनाव में कमल मजबूत दिखने लगेगा। ऐसा नहीं होने पर सपा प्रत्याशी की राह आसान हो जाएगी। मुस्लिम एकजुट हैं और BJP को हराने के लिए एकतरफा गठबंधन के साथ जाते दिखाई दे रहे हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट चुनाव में क्या अग्निवीर और रोजगार जैसे मुद्दे हावी हैं?
भीष्म सिंह कहा- अग्निवीर जैसे मुद्दे बहुत छोटे हैं, जो यहां कहीं नहीं टिकते। यह मुद्दा सिर्फ यादव वोटर्स के बीच है, क्योंकि संभल में उन्हीं के बच्चे फौज में जाते हैं। भाजपा यादव बिरादरी को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। इसलिए मध्यप्रदेश के CM मोहन यादव को यहां रैली के दौरान लाया गया। देवल कहते हैं- बसपा ने संभल से शौलत अली को मैदान में उतारा है। वह मुस्लिम बिरादरी में माहौल बना रहे हैं, मगर आखिरी वक्त में वह दौड़ से बाहर हो जाएंगे। चुनाव हिंदू-मुस्लिम ही होगा। पॉलिटिकल लीडर सपा सांसद बर्क की मौत के बाद क्या संभल में चुनावी सीन बदला है?
सपा प्रत्याशी जियाउर्रहमान बर्क कहते हैं- सपा का एजेंडा डेवलपमेंट रहा है। शफीकुर्रहमान बर्क ​​​​​​लोगों की पहली पसंद रहे हैं। उनके ​इंतकाल के बाद लोग ही हमको चुनाव लड़वा रहे हैं। भाजपा के कैंडिडेट हवाई दावे करते हैं, मगर पोलिंग डे पर सब क्लियर हो जाएगा। संभल में 2 लोकसभा चुनाव का गणित बरेली में ध्रुवीकरण, भाजपा की स्थिति मजबूत
क्या बरेली में मौजूदा सांसद संतोष गंगवार का टिकट कटना बड़ा मुद्दा है? सीनियर जर्नलिस्ट अशोक शर्मा कहते हैं- संतोष गंगवार का टिकट कटना बड़ा मुद्दा नहीं रहा। शुरुआत में टिकट कटने के बाद गंगवार बिरादरी 2 फाड़ दिखी। लेकिन प्रधानमंत्री के रोड शो ने इस बिरादरी को फिर एक खेमे में कर दिया। इस सीट पर युवाओं की बेरोजगारी, खराब सड़कें, बकाया गन्ना भुगतान और छुट्टा पशु बड़ा मुद्दा है। लोगों में भाजपा के लिए गुस्सा है, मगर हिंदुत्व की बात आते ही यह मुद्दे हवा-हवाई दिखाई दे रहे। उन्होंने कहा- बरेली भाजपा का गढ़ रहा है। इस चुनाव में भी भाजपा के छत्रपाल गंगवार मजबूत चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने कांग्रेस के पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन हैं। ऐरन को मुस्लिम-यादव बिरादरी का सपोर्ट है, मगर भाजपा यहां मजबूत दिख रही है। वोटिंग से पहले तक बिखरी नजर आने वाली हिंदू बिरादरी भाजपा के लिए एकमुश्त वोट कर सकती है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बसपा प्रत्याशी का पर्चा कैंसिल होने के बाद कोर वोटर्स किस तरफ रुख करेंगे?
सीनियर जर्नलिस्ट अनुरोध भारद्वाज कहते हैं- बरेली में दलित बिरादरी साइलेंट है। बसपा किसे समर्थन देगी, ये साफ नहीं। इसका फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है। अब भाजपा का पूरा फोकस बसपा के कोर वोटर दलित पर है। ये बिरादरी करीब पौने दो लाख है। पॉलिटिकल लीडर बरेली में सपा कितना मजबूत चुनाव लड़ रही है?
सपा प्रवक्ता मयंक शुक्ला कहते हैं- प्रवीण सिंह ऐरन 2009 के कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे हैं। उन्होंने बरेली का डेवलपमेंट किया। कई प्लान उनके बनाए हुए हैं, जिन पर आज भाजपा काम कर रही है। लोगों में उनकी अच्छी पैठ है। सपा का खुद का बरेली सीट पर कैडर है। इसलिए हमारी स्थिति भाजपा के सामने मजबूत है। हम ये चुनाव जीतने के लिए लड़ रहे हैं। बरेली में 2 लोकसभा चुनाव का गणित आंवला में मौर्य-कश्यप बिरादरी भाजपा के खिलाफ, सीट फंसी
2014, फिर 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद आंवला लोकसभा सीट पर भाजपा के खिलाफ समीकरण बने हैं। ढाई लाख मौर्य और 3 लाख कश्यप वोटर्स का सपोर्ट सपा को मिल रहा है। 5 लाख मुस्लिम और 2 लाख यादव पहले से सपा के कोर वोटर हैं। इन हालात में भाजपा के 2 बार के सांसद धर्मेंद्र कश्यप के लिए चुनाव चैलेंजिंग हो गया है। सपा ने दलित और पिछड़ों की राजनीति करने वाले नीरज मौर्य को कैंडिडेट बनाकर फाइट कड़ी कर दी है। बसपा के आबिद अली की वजह से ध्रुवीकरण हो सकता है, मगर भाजपा को बहुत ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्या समीकरण भाजपा के फेवर में दिख रहे हैं?
सीनियर जर्नलिस्ट अनुरोध भारद्वाज बताते हैं- आंवला सीट बरेली और बदायूं 2 जिलों में बंटी है। भाजपा ने 2 बार के सांसद धर्मेंद्र कश्यप पर भरोसा जताया। सपा गठबंधन ने शाहजहांपुर के रहने वाले पूर्व विधायक नीरज मौर्य को मैदान में उतारा, जो कभी बसपा से विधायक थे। बसपा ने आंवला के मौजूदा चेयरमैन सैयद आबिद अली को प्रत्याशी बनाया। आबिद अली कभी सपा का बड़ा चेहरा हुआ करते थे। नीरज पिछड़ों और दलितों के बीच अच्छी पैठ रखते हैं। उनके चुनाव में आने के बाद धर्मेंद्र कश्यप की मुश्किल बढ़ी है। फिलहाल सीट फंसी है। पॉलिटिकल लीडर क्या भाजपा के सामने सपा चुनौती बन रही है?
कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह कहते हैं- सपा मुस्लिम और यादव बिरादरी के दम पर चुनाव लड़ रही है। जब कोई पार्टी किसी दायरे में सिमटने लगे, समझिए उसका भविष्य नहीं है। भाजपा डेवलपमेंट के मुद्दे पर काम करती है। हमारे काम क्षेत्र में दिखते हैं। लोग भी सपा-बसपा के काम के ढर्रे को समझ चुके हैं। हम अच्छे मार्जिन से चुनाव जीत रहे। आंवला में 2 लोकसभा चुनाव का गणित बदायूं में शिवपाल ने बेटे के लिए समीकरण सेट किए, भाजपा के लिए चैलेंज
बदायूं में हवा का रुख किधर है? बदायूं के सीनियर जर्नलिस्ट अंशुल जैन कहते हैं- बदायूं में मुस्लिम बिरादरी करीब 3.75 लाख है। 2014 में मुस्लिम बिरादरी ने एक तरफा वोट करके धर्मेंद्र यादव को जिताया, मगर 2019 तक समीकरण बदल गए। मुस्लिमों के एक हिस्से ने भाजपा को वोट किया। ओबीसी, जनरल वोटर्स के सपोर्ट से संघमित्रा मौर्य सांसद बनीं। 2024 के चुनाव में जब शिवपाल को यहां कैंडिडेट बनाया गया, उन्होंने पहला काम नाराज मुस्लिम बिरादरी के बड़े नेताओं को मनाने का किया। अब शिवपाल भले ही बदायूं से नहीं लड़ रहे, मगर वह आदित्य की राह आसान कर चुके हैं। दूसरी तरफ बदायूं में संघमित्रा का टिकट कटने के साथ सियासत तेज हो गई। भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य पहली बार चुनाव मैदान में हैं। 2019 में भाजपा कैंडिडेट संघमित्रा मौर्य सिर्फ 18 हजार वोट से जीती थीं। इसलिए भाजपा के लिए बदायूं का चुनाव उतना आसान नजर नहीं आ रहा है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट सपा ने तीन बार प्रत्याशी बदला, आम वोटर्स पर इसका क्या असर दिखता है?
अंशुल कहते हैं- आपस की गुटबाजी के चलते यहां पर टिकट का बदलाव हुआ। पहले धर्मेंद्र यादव और फिर शिवपाल को प्रत्याशी बनाया। जब शिवपाल बदायूं आए, तभी लगने लगा कि उनके बेटे आदित्य यादव चुनाव लड़ेंगे। बार-बार टिकट बदलने का कोई असर तो नहीं दिखता, लेकिन बीजेपी को इस बदलाव का कुछ फायदा हो सकता है। धर्मेंद्र यादव यहां से प्रत्याशी रहते तो आदित्य से बेहतर चुनाव लड़ सकते थे। वह कहते हैं- बसपा ने आखिरी वक्त में अपना प्रत्याशी घोषित किया। इससे बसपा प्रत्याशी प्रचार पूरा भी नहीं कर पाए हैं। बसपा का अपना जो कोर वोटर्स है, वो तो मिल सकता है। लेकिन मुस्लिम वोटर्स में सेंध लगा पाएंगे, इसकी कोई उम्मीद अब दिखाई नहीं पड़ती। पॉलिटिकल लीडर आदित्य यादव के चुनाव मैदान में आने के बाद कितना चैलेंज मानते हैं?
भाजपा कैंडिडेट दुर्विजय शाक्य कहते हैं- चुनाव में सपा कैंडिडेट कही टक्कर में भी नहीं है। भाजपा ने बदायूं के लोगों को एक लोकल चेहरा दिया। हम क्षेत्र के लोगों की जरूरत को समझते हैं। सपा को यही समझ नहीं आ रहा है कि चुनाव किसे लड़वाए। 3 बार टिकट बदल दिए। आप समझिए, भाजपा चुनाव जीत रही है। बदायूं में 2 लोकसभा चुनाव का गणित एटा में सपा के PDA से सवर्णों में नाराजगी, फायदा भाजपा को
कल्याण सिंह के बेटे राजवीर तीसरी बार एटा से चुनाव लड़ रहे। सपा देवेश शाक्य को चुनाव में लाई है। बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मुहम्मद इरफान को उतार कर सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाई। सपा PDA फॉर्मूला पर चुनाव लड़ रही। उसने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक का मुद्दा उछालकर 2 लाख सवर्णों में नाराजगी पैदा कर दी है। भाजपा जातिवाद से इतर हटकर राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रही। सीनियर जर्नलिस्ट दीपक शर्मा बताते हैं- यह चुनाव भाजपा और सपा के बीच लड़ा जा रहा है। वोटर्स जानते हैं कि भाजपा के लिए चुनाव मोदी-योगी के चेहरे पर लड़ा जा रहा। कैंडिडेट का अपना खुद का कुछ नहीं है। सपा ने बिरादरी पॉलिटिक्स खेली है। शाक्य कैंडिडेट उतारने से भाजपा के कोर वोट बैंक बंटने के आसार बन गए हैं। यही वजह है कि भाजपा यहां यादव वोट को टारगेट करते हुए रैली कर रही है। उन्होंने कहा- 2009 के लोकसभा चुनाव में कल्याण सिंह की एंट्री हुई। इसके बाद यह भाजपा का अभेद्य किला बन गया। पिछले दो चुनावों में राजवीर सिंह के प्रतिद्वंद्वी रहे सपा के देवेंद्र अब भाजपा में हैं। इसका फायदा भाजपा को मिलना तय है। एटा में 2 लोकसभा चुनाव का गणित स्लाइड में 5 लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे धुरंधर ……………………………………………………………………………. पीलीभीत में क्या हैं टॉप इश्यू, पढ़िए ये स्टोरी टॉप इश्यू : राम मंदिर और आवारा पशु पीलीभीत का बड़ा मुद्दा:यहां BJP मैटर करती है; पब्लिक के लिए जितिन नया फेस; किसान बदल सकते हैं समीकरण ग्राउंड रिपोर्ट : नेपाल बॉर्डर पर हिंदुस्तान के आखिरी गांव में चुनावी माहौल:न बैनर, न होर्डिंग; पब्लिक को प्रत्याशी पता नहीं; महिला बोली-सिर पर गठरी ही हमारी जिंदगी सहारनपुर लोकसभा चुनाव की ताजा खबरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऐप डाउनलोड करें। इस लोकसभा सीट पर क्या हैं जनता के मुद्दे और क्या है चुनावी हवा। चुनाव का सबसे सटीक और डीटेल एनालिसिस।

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