राम राज्य का एक दृश्य है। श्री राम, हनुमान जी और अपने भाइयों के साथ एक सुंदर उपवन में बैठे थे और उसी समय सनकादि मुनि आए। यह लोग देखने में तो बालक लगते हैं, पर इनकी बहुत आयु है। ऐसा कहते हैं, इनको देखकर लगता है जैसे चारों वेद ही बालक का रूप धरकर आए हों। अब उनके लिए तुलसीदास जी ने पंक्ति लिखी- ‘आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहं सुनहीं’ ‘दिशाएं ही उनके वस्त्र हैं। उनको एक ही व्यसन है कि जहां रघुनाथजी की चरित्र कथा होती है वहां जाकर वे उसे अवश्य सुनते हैं’। अब इस पंक्ति में व्यसन शब्द ध्यान देने जैसा है। हम मनुष्य तीन गुणों से बने हैं। सत्व, रज और तम। तीनों गुण ऊपर-नीचे होते रहते हैं। थोड़े-थोड़े सभी में रहते हैं। कोई दावा नहीं कर सकता कि मुझमें एक ही गुण रहेगा। जब तमोगुण हावी होता है तो व्यसन जाग जाता है। बड़ा मुश्किल है कि तमोगुण पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए, संसार में रहते हुए। इसलिए तमोगुण अगर हावी हों और व्यसन जाग जाएं तो अपने व्यसन की दिशा मोड़ने और ईश्वर के चरित्र को सुनने का व्यसन पैदा करिए। सत्संग का मतलब होता है, एक ऐसे आचरण की तैयारी, जिसमें ईमानदारी, निष्ठा, परिश्रम, सफलता, परिवार, राष्ट्र सबकुछ समाहित है। व्यसन की नौबत आ जाए तो सत्संग करिएगा और यह मानकर करिएगा कि सौभाग्य से सत्संग मिलता है।