1970 के लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने जीत गए। वह गोरखपुर की मानीराम सीट से विधायक थे। जीत के बाद उन्होंने विधायकी से इस्तीफा दे दिया। मानीराम सीट खाली हुई, तो उपचुनाव की घोषणा हो गई। यूपी के सीएम त्रिभुवन नारायण (टीएन) सिंह ने यहां से चुनाव लड़ने फैसला किया। टीएन सिंह के लिए प्रचार-प्रसार शुरू हो गया। बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और देश की राजनीति के पावर पिलर राज नारायण ने जमकर प्रचार किया। सांसद बने महंत अवैद्यनाथ ने भी पूरी ताकत लगा दी। लेकिन, वोटिंग के बाद आए रिजल्ट ने सभी को चौंका दिया। देश की राजनीति में पहली बार किसी उपचुनाव में मुख्यमंत्री को हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी ने जिस पत्रकार को टिकट दिया था, वो मानीराम सीट से विधायक चुने गए। टीएन सिंह क्यों चुनाव हारे? इसके बाद क्या हुआ? दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज चुनावी किस्सा में आज जानते हैं… चुनाव आते ही गोरखपुर में 53 साल पुराना यह वाकया चर्चा में रहता है। टीएन सिंह वाराणसी के रहने वाले थे। आजादी के बाद हुए 1952 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर चंदौली से लड़े। इसी सीट से उन्होंने 1957 में डॉ. राम मनोहर लोहिया को हराया। केंद्र सरकार में उद्योग और फिर लौह-इस्पात मंत्री रहे। 1969 में कांग्रेस के दो हिस्से हो गए। टीएन सिंह कांग्रेस (ओ) के साथ हो लिए। इसी साल यूपी में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्त प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन, एक साल के अंदर उन्हें भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह के लिए गद्दी छोड़नी पड़ी। यूपी में 17 दिन का राष्ट्रपति शासन, मिला नया सीएम
चौधरी चरण सिंह 7 महीने तक ही यूपी के सीएम रहे। उन्होंने बहुमत खो दिया और विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। लेकिन, तत्कालीन राज्यपाल बी गोपाला रेड्डी ने सिफारिश नहीं मानी और इस्तीफा देने के लिए कह दिया। यूपी में 17 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 18 अक्टूबर, 1970 को टीएन सिंह को संयुक्त विधायक दल का नेता चुना गया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। टीएन सिंह को भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस (ओ) के 257 विधायकों ने समर्थन दिया। उपचुनाव लड़ना जरूरी था, लेकिन प्रचार करने भी नहीं आए
जब टीएन सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने, राज्यसभा के सांसद थे। यूपी विधानसभा में किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। यही वजह थी कि उन्होंने खाली पड़ी मानीराम विधानसभा सीट को चुना। गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय कहते हैं- टीएन सिंह अपनी जीत के लिए बहुत ज्यादा आश्वस्त थे। वह नामांकन करने तो यहां आए, लेकिन प्रचार नहीं किया। न ही क्षेत्र में विजिट किया। महंत अवैद्यनाथ ने इस सीट पर इंदिरा गांधी के प्रत्याशी रामकृष्ण द्विवेदी को मात्र 3 हजार वोटों से हराया था। उपचुनाव में इंदिरा गांधी ने इन्हीं आंकड़ों को देखते हुए रामकृष्ण द्विवेदी को दोबारा उम्मीदवार बना दिया। वह पेशे से पत्रकार थे। उन्हें मानीराम विधानसभा सीट के समीकरण भी मालूम थे। दूसरा प्लस प्वाइंट था कि इंदिरा गांधी खुद उनका प्रचार करने मानीराम आ गईं। इंदिरा गांधी पर किए गए कमेंट से हार गए टीएन सिंह
वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय कहते हैं- इंदिरा गांधी कतई नहीं चाहती थीं कि टीएन सिंह मुख्यमंत्री बनें। वह गोरखपुर में जमकर प्रचार कर रही थीं। दूसरी तरफ कर्पूरी ठाकुर और राज नारायण जैसे दिग्गज नेता टीएन सिंह के लिए प्रचार कर रहे थे। दयानंद पांडेय ने कहा- राज नारायण सिंह भूमिहार समाज से आते थे। वह न्यूसेंस क्रिएट करने में माहिर थे। उनके भाषण और बयान काफी व्यक्तिगत हो जाते थे। मानीराम में प्रचार के दौरान ऐसी ही एक घटना हो गई। राज नारायण ने इंदिरा गांधी के लिए भद्दा कमेंट कर दिया। यह कमेंट गोरखपुर में जोर पकड़ चुका था। इंदिरा गांधी ने इस मौके को भुना लिया। इंदिरा गांधी ने इसे दुर्व्यवहार बताते हुए जमकर जन संवेदना हासिल की। टीएन सिंह की जीत के लगाए जा रहे कयास उल्टे हो गए। चुनावी हवा का रुख बदल गया। इंदिरा गांधी के कैंडिडेट रामकृष्ण द्विवेदी ने टीएन सिंह को 15 हजार वोटों से हरा दिया। टीएन सिंह ने भरे सदन में दिया इस्तीफा
4 अप्रैल, 1971 को चुनाव का रिजल्ट आया। सीएम टीएन सिंह यूपी विधानसभा में थे। राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था। इसी दौरान टीएन सिंह उठे। उन्होंने कहा- सॉरी फॉर डिस्टर्बिंग…मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देता हूं। उनकी इस घोषणा पर सभी चौंक गए। इस तरह टीएन सिंह की सरकार मात्र 5 महीने 18 दिन ही चल सकी। उनके बाद कमलापति त्रिपाठी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग के प्रवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रजनीश चतुर्वेदी ने कहा- एक मुख्यमंत्री के लिए उपचुनाव जीतना बड़ी बात नहीं है। शासन-प्रशासन चाह कर भी ईमानदार नहीं रह सकता। लेकिन, 1971 का उपचुनाव शुचिता और ईमानदारी से लड़ा गया। लोकतंत्र की वह विशेषता दिखी, जिसमें जनता के सर्वोच्च होने की बात कही गई है। डॉ. रजनीश चतुर्वेदी कहते हैं- चुनाव हारने के बाद टीएन सिंह राज्यसभा चले गए। 1976 तक यहां सदस्य रहे। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बना दिए गए। अब गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट अस्तित्व में नहीं है। परिसीमन के बाद यह गोरखपुर सदर और पिपराइच विधानसभा का हिस्सा बन गई है। 1. जब पंडित नेहरू ने कहा- मैं प्रचार नहीं करूंगा:फूलपुर के चुनाव में डॉ. लोहिया की हवा बनी, तो प्रधानमंत्री को तोड़ना पड़ा वादा 2. जब यूपी को मिला 31 घंटे का मुख्यमंत्री:मायावती ने गिराई कल्याण सिंह की सरकार, अटल बिहारी को करना पड़ा था अनशन 3. कांशीराम ने 47 प्रत्याशियों को हराया, मुलायम ने सपा बनाई: साइकिल से प्रचार करके पहली बार इटावा से सांसद बने कांशीराम की कहानी 4. जब खून से बनी तस्वीर देख भावुक हुईं इंदिरा गांधी:बोलीं- हम हारे हैं, तो जीतेंगे भी; इस हुंकार ने दिलाई उपचुनाव में जीत 5. जब कट्टर विरोधी मुलायम-कल्याण ने हाथ मिलाया:नेताजी ने मुस्लिमों से माफी मांगी, कहा-मस्जिद गिराने के जिम्मेदारों का साथ नहीं देंगे 6. जब लालू बुआ से मिलने पहुंचे अटल:बोलीं- बड़े दिन बाद आए अटलू? जवाब दिया- यहां गड्ढे में सड़क है इसलिए देर हुई 7. जब पंडित नेहरू ने चमगादड़ों को डांट दिया:बोले-कीप साइलेंस, पहले अपनी बात कह लूं, फिर आपकी सुनेंगे

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