मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा चुनौती बनता जा रहा है। इसे इस तरह समझें। लैला-मजनू सबके भीतर रहते हैं। लैला-मजनू का अर्थ है, अपना बनाने की जिद में भले ही बरबाद हो जाएंगे पर करेंगे वही जो सोचा है। आज भी हम लोगों के साथ ऐसा ही होता है। किसी की मंजिल की तलाश खत्म हो जाती है और कोई मंजिल तलाशते खुद खत्म हो जाता है। लैला-मजनू के समय मनोविज्ञान इतना जागृत नहीं था, लेकिन ये तय है कि वो भी डिप्रेशन और एंग्जाइटी से गुजरे होंगे। शुरुआत में एंग्जाइटी होती है, लोग चिड़चिड़े-बेचैन होने लगते हैं। लेकिन धीरे-धीरे अगर इसका समय पर इलाज न किया गया तो ये डिप्रेशन में बदल जाती है। अगर हम समय पर सोएं, समय पर उठें तो एंग्जाइटी में 70% सुधार हो जाता है। और ये अपने आप में डिप्रेशन का इलाज बन जाता है। हमें अपने बच्चों को सिखाना चाहिए कि शरीर को नींद, भोजन और विलास के मामले में अभी से संभाल कर चलें। वरना एक दिन उनके माता, पिता जब बूढ़े हो जाएंगे या इस संसार से चले जाएंगे तो इन बच्चों को मेंटल हेल्थ के मामले में कोई संभाल नहीं सकेगा।

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