इन दिनों एआई पर बहुत चर्चा होती है। इस पर जितनी जानकारी निकालो, कम है। उसको समझना आसान नहीं। अब एआई को हमारे बच्चों से जोड़िए। इन दिनों हमारे बच्चे एआई की तरह हैं, इन्हें समझना मुश्किल है। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का आपातकाल चल रहा है। हमारे आसपास के बच्चे और युवा मानसिक रोग से ग्रसित हैं और हमें पता भी नहीं लगता। आए-दिन युवाओं की आत्महत्या की खबरें सुनते हैं। कई युवकों में शिक्षा के लिए रुझान घटा है। माता-पिता को बच्चों की भाषा-आचरण को लेकर अत्यधिक सावधानी रखनी होगी। कोशिश करिए कि नौ बजे के बाद मोबाइल को ‘नो’ कह सकें। इस समय जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं, उसमें मोबाइल देखने की लत एक बहुत बड़ा कारण है। और दिक्कत यह है कि माता-पिता खुद उस लत के शिकार हैं। कोशिश की जाए, मानवीय संबंधों में अब यांत्रिक बाधाएं दूर हो। अन्यथा हमारे बच्चे हमारे ही सामने रहते हुए ऐसे कदम उठा लेंगे, जिन्हें हम जान भी नहीं पाएंगे।

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