काशी का लोलार्क कुंड में 9 सितंबर को पुत्र-रत्न की प्राप्ति के मनोकामना के उद्देश्य से 10 राज्यों से करीब 1 लाख लाख श्रद्धालु स्नान करने पहुंचेंगे। काशी के लक्खा मेलों में शुमार लोलार्क षष्ठी स्नान की मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना लेकर आने वाले दंपतियों की मनोकामना लोलार्केश्वर महादेव पूरी कर देते हैं। सर्वे में सामने आया है कि यहां स्नान से 60% लोगों को संतान सुख मिला है। UNESCO ने भी कल्चरल एस्ट्रोनॉमी साइट बताया है। मिस्र के उल्टे पिरामिड जैसे आकार वाले 50 फीट गहरे और 15 फीट चौड़े इस कुंड में महिलाएं सूनी कोख भरने का वरदान पाती हैं। दैनिक भास्कर की टीम इस कुंड के बारे में अधिक जानकारी लेने बीएचयू के प्रोफेसर प्रवीण राणा के पहुंचा..आइए जानते हैं उन्होंने क्या बताया… प्रोफेसर प्रवीण राणा ने बताया कि लोलार्क कुंड की मान्यता और इसके साइंटिफिक कनेक्शन पर 40 साल से स्टडी चल रही हैं। उन्होंने कहा, “इस कुंड का आकार, सूरज की किरणें और गंगाजल सब कुछ एक खास संयोग बनाते हैं। उन्होंने बताया कि सर्वे के दौरान यह पता चला है कि इस कुंड में स्नान करने के बाद 60% लोगों की गोद भरी है। कुएं से जुड़ा है लोलार्क कुंड प्रोफेसर राणा ने बताया कि लोलार्क एक खड़े कुएं से जुड़ा हुआ है, जिस तक तीन तरफ से पहुंचा जा सकता है। उन्होंने दावा किया है कि आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व के पाठ, शतपथ ब्राह्मण में मिलता है, जिसमें बारह सौर महीनों से जुड़े बारह सूर्यों का वर्णन किया गया है। उन्होंने बताया कि हमारे रिसर्च में बताया कि उन्होंने कहां कि यहां पर गंगा मां को लोलार्क कुंड के पानी को और सूर्य को मेल शक्ति के रूप में मानते हैं। उन्होंने बताया कि 1995 में हुए सर्वे के दौरान यह पता चला है कि इस कुंड में स्नान करने के बाद 60% लोगों की गोद भरी है। आइए अब जानते हैं पूर्व जियो साइंटिस्ट राणा पीवी सिंह ने क्या कहा… प्रो.पीवी राणा सिंह बताते हैं कि 19वीं सदी से पहले वाराणसी में कभी किसी को हैजा, कालरा, बांझपन या चर्म रोग नहीं होता था। यहां के कुंड और तालाबों में पहुंचा गंगाजल सचमुच में आयुर्वेदिक बूटियों का काम करता था। 1822 में जेम्स प्रिंसेप ने भी लिखा है कि काशी का लोलार्क कुंड गर्भधारण कराने में मदद करता है। इसके बाद डायना अक और खुद प्रो. सिंह ने अपनी किताब में इस जगह फर्टिलिटी कल्ट के रूप में संबोधित किया है। उन्होंने अपने ठीम के साथ 2009 में रिसर्च पेपर भी पब्लिश किया। रिसर्च में क्या निकला आइए जानते हैं रिसर्च पेपर के अनुसार उन्होने कुंड पर होने वाली खगोलीय घटना की स्टडी करके बताया कि – कुंड की जियोमेट्री ऐसी है कि लोगों की मनोकामना पूरी होती है। यह भारत का एकमात्र ऐसा कुंड है, जिसकी चारों दिशा पूरी तरह से खगोलीय मानकों पर आधारित है। इसके उत्तर की ओर स्थित पोल कॉस्मिक नॉर्थ है। यानी कि खगोल विज्ञान के मानकों पर इक्जैक्ट उत्तर की दिशा है। लोलार्क छठ के दिन सूर्य की किरण इसके उत्तरी पोल से ही गुजरती हैं। किरणें उल्टे पिरामिड के आकार की सीढ़ियों और पोल से जैसे-जैसे नीचे जाती हैं, उसकी इंटेनसिटी बढ़ती ही जाती है। गंगा के पानी और किरणों की ओज से शरीर को जो ऊर्जा मिलती है, वह गर्भाधान में सबसे ज्यादा फायदेमंद होती है।” गुप्तकाल से जुड़ा है लोलार्क कुंड का इतिहास लोलार्क कुंड चौथी शताब्दी के दौरान गुप्तकाल में बनाया गया लगता है। मगर, 10वीं शताब्दी में गहड़वाल वंश के राजा गोविंद चंद ने कुंड के आसपास दोबारा निर्माण कराया। इसी के बाद से देश भर के लोगों को इस कुंड से मिलने वाले फायदे के बारे में जानकारियां मिलीं। उनके बाद इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस कुंड के चारों ओर कीमती पत्थर से सजावट करवाई थी। आज इस कुंड के आसपास का सुंदरीकरण रख उत्तर प्रदेश पर्यटन कर रहा हैं। 9 सितंबर की रात से होगा स्नान मंदिर के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडेय बताया कि जिन विवाहित महिलाओं की गोद सूनी होती है, उन दंपति को लोलार्क छठ के दिन काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करना चाहिए। कुंड में स्नान के बाद दंपति को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए। इस दौरान दम्पति को अपने भीगे कपड़े भी यहीं छोड़ देना चाहिए। कुंड में स्नान के बाद दम्पति को लोलाकेश्वर महादेव का दर्शन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि कुंड में सिर्फ एक रास्ते‌ से स्नान कराया जाएगा। 5 किलोमीटर लंबी वेरीकेटिंग की गई है पुजारी ने अनुमान लगाया है कि बार करीब 1 लाख से अधिक लोग स्नान करने आ सकते हैं।

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